सीटू तिवारी-
एक रात घर लौटकर अनीश ने बताया कि पटना शहर से सटे जिस अर्धशहरी इलाके में शादी में गये थे वहां गाना बजाया जा रहा था – हमको मर्द चाहिये भूमिहार!
जाहिर तौर पर किसी भूमिहार जाति के व्यक्ति के यहाँ शादी थी।जो दूसरी जाति की औरते और पुरुष उस शादी में आये थे, जाने वो क्या सोचते होंगे?
बीते कल होली के मौके पर ये गाना हमने भी सुन लिया। एक गाना जो इधर दो दफे सुन चुकी हूँ वो ये है –
“लंदन से लड़की लाएंगे, डी जे रात भर बजायेंगे”
जिन लड़को और नौजवानों को एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले जाने के लिये अपने पिता से पैसे लेने पड़ते हैं, वो लंदन से लड़की लाने की बात कर रहे है। ये गाने सुनने और बजाने वाले कमाते भी है तो भी ये कितना अपमानित महसूस कराने वाला है।
ऐसे गाने सुनते हुए मुझको घृणा महसूस होती है। मैं इसे मनोरंजन और हल्की फुल्की बात तो एकदम नही मान सकती हूँ।
मुझे उस घर के पुरुषों के अलावा घर की स्त्रियों से भी विकर्षण होता है। क्या उनमें इतनी हिम्मत भी नही कि अपने घर के पुरुषों को ऐसे घटिया गाना बजाने से रोके।एक दफे मैंने स्थानीय थाने को इसकी सूचना दी तो फ़ोन उठाने वाले दिक्कत मे थे कि मुझे किसी तरह की परेशानी क्यों है?
हिंदी गानों का पता नही लेकिन जो भोजपुरी गाने सुनने को मिल जाते है उनमें ‘पांडेय यादव तिवारी महतो भूमिहार कुर्मी’ आदि इत्यादि का जातीय बोध हावी है और उसकी सबसे पहली शिकार औरत है।
मुश्किल ये है कि एक जातीय पहचान वाली औरत को दूसरी जातीय पहचान वाली औरत पर लिखे जा रहे इन गीतों को सुनने बजाने से कोई दिक्कत नही है। दरअसल वो इन गानों के वीभत्स नतीज़ों को पहचान ही न पाती है और उनकी कंडीशनिंग ही ऐसी है कि घर के मर्दों की ये ‘अमानवीय पसंद’ उनके लिये ‘मर्दाना’ या ‘बलिष्ठता’ से जुड़ी चीज़े है।
ये ‘मौन’ औरते जिस जातीय खांचे को एन्जॉय कर रही है, उस खांचे मे भी उनके लिये शोषण गुथा हुआ है। ये जातीय पुरुष परंपराओं के नाम पर ऐसी विधियां रचते है जो एक स्त्री के लिये अपमानजनक है। शादी, त्योहार, श्राद्ध में औरते क्या करती है?
मेरे पास तो अब मगध इलाके का अनुभव है जिसमे औरतों को हर मौके पर महज़ एक साड़ी लपेटने का फरमान सुनाया जाता है। साल भर आप औरत को ब्लाउज और पेटीकोट पहनाएंगे और एक दिन इसका निषेध करवा देंगे!
इस पर बात फिर कभी!