आपने अभी एक वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया था। इसके ठीक कुछ दिनों बाद आपने फिर एक त्रिकोणीय सीरिज रख दी। आप देखेंगे कि जो भीड़ वर्ल्ड कप में आई थी, जो उत्साह लोगों ने वर्ल्ड कप में दिखाया था वो त्रिकोणीय सीरिज में नज़र नही आ रहा। चाहे वो दर्शकों से जुड़ा मसला हो, विज्ञापनदाताओं से या फिर टीवी वालों से, सबने रूचि कम कर दी।
बिहार विधानसभा उपचुनाव को भी इसी रूप में लेने की दरकार है। जनता अभी हाल ही में लोकसभा चुनाव से आई है उसे अब इतनी जल्दी ये दोहराव पसंद नही आ रहा। बार-बार चावल-दाल और आलू की भुजिया खाकर कल को आप भी बोर हो जायेंगे।
चुनाव का एक माहौल होता है। तैयार किया जाता है। वो रवानी न हो तो सब फीका सा लगता है। इस चुनाव में आप देख सकते हैं वोट प्रतिशत कितना कम रहा। लगभग 44 फीसदी। साफ़ है लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा नही लिया। परिणाम भी कोई ख़ास असरदार नही रहा। हाँ, इस रिजल्ट से उन्हें ज्यादा ख़ुशी होगी जो बिहार में नेस्तानाबूद हो गये थे। जिन्हें इस चुनावी परिणाम ने एक आक्सीजन देने का काम किया है। लगभग अपनी अंतिम साँसें गिन रहा नवजात अब जीने लगेगा। आज की जीत उनके लिए भी हर्ष का विषय है जो लोकसभा चुनाव में भाजपा की आंधी में उड़ गए थे। ये जीत उन्हें ज्यादा सुकून देने वाली है क्योंकि 16 मई को मिला गहरा ज़ख्म यहाँ मरहम का काम करेगा।
इस चुनाव को सेमीफाइनल कहने वालों से भी मैं इत्तेफाक नही रखता, क्योंकि जहाँ 243 सीटें हो वहां #पांच फीसदी से भी कम सीटों पर हुए उपचुनाव को सेमीफाइनल कहना कुछ ज्यादा ही मंडित करना हो गया| ये सेमीफाइनल इसलिए भी नही कहा जा सकता क्योंकि सेमीफाइनल के कुछ ही दिन बाद फाइनल होता है| जबकि बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से भी ज्यादा का समय है| इस बीच लोग इस तथाकथित महागठबंधन को जाचेंगे- परखेंगे, जानेंगे फिर अपनी राय बनायेंगे| यानी कि परिस्तिथियाँ बदलेंगी, हालात बदलेंगे| और ये निर्भर करेगा आने वाले चुनाव तक गठबंधन के कामकाज के आंकलन को देखकर| इसी तरह का कुछ हाल भाजपा का होगा, जिसमे लोग नरेन्द्र मोदी के काम-काज को देखकर भी लोगों की अपनी राय बनेगी| वैसे राज्य के चुनाव में ज्यादातर तो स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं लेकिन ये फैक्टर भी देखा जाएगा| क्योंकि अच्छे दिनों का सपना देश ने अपनी आँखों में संजोये रखा है|
इस चुनाव को ‘मोदी इफ़ेक्ट’ से भी जोड़कर नही देखा जा सकता| क्योंकि इसके प्रचार-प्रसार में मोदी ने भाग नहीं लिया था| कहने की दरकार नहीं है कि विधानसभा चुनाव हर लिहाज़ से लोकसभा चुनाव से अलग होता है| एक ही चश्मे से दोनों को देखना मूर्खता होगी| यहाँ जात-पात, उम्मीदवारों का चयन, एक एरिया विशेष से उनका ताल्लुकात, लोगों के बीच की भागीदारी, ये सारे मुद्दे हावी रहते हैं| जनता के ज़हन में पटना रहता है, न कि दिल्ली| लोग विधानसभा के प्रत्याशी से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं MP के अपेक्षा।
तो फिर ये जीत किसकी? यहाँ हार किसकी? ये जीत कुछ हद तक गठबंधन की और हार भी इसी अनुपात में भाजपा की| सबसे ज्यादा फ़ायदा राजद को और नुकसान नीतीश को| ये परिणामों भाजपा के लिए ज्यादा चिंता का सबब तो नही हैं, लेकिन हाँ, इस पर मंथन करने का वक़्त जरुर है| इस जीत के बाद गठबंधन वाली पार्टियों को ज्यादा इतराने की भी जरुरत नही है, क्योंकि ट्रेलर कुछ हद तक चल जाने से फ़िल्में चल जाए ये जरुरी नहीं| नही तो, गर ऐसा होता तो सभी फ़िल्में हिट ही हो जाती कोई पिटती क्यों?…….इसीलिए पिक्चर अभी बाकि है…
नितेश त्रिपाठी
पत्रकार, ईटीवी
गोपालगंज।
संपर्कः 09849004108