कृष्ण कांत-
भास्कर की चिंता मत कीजिए. भारत समाचार वाले बृजेश मिश्रा की भी चिंता मत कीजिए. लेकिन आपको वीरेंद्र सिंह की चिंता करनी चाहिए. वह जो शायराना अंदाज में एक मस्तमौला रिपोर्टर है, क्या वह अरबपति है? क्या कालाधन बटोरकर प्लेन से उड़ता है? क्या वह इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कॉरपोरेट का संदिग्ध फंड लेकर चुनाव लड़ता है? क्या वह भ्रष्टाचारी है? क्या उसने आरबीआई लूटा है? क्या उसने महंगाई के बहाने पब्लिक की जेब काटी है? उसके घर छापा क्यों मारा गया? वीरेंद्र सिंह जैसे तमाम युवाओं की चिंता कीजिए. जो नए-नए उत्साही बच्चे पत्रकारिता करने आ रहे हैं, इस निकृष्ट तानाशाही में उनका क्या भविष्य है?
आप मंत्री की जासूसी होने की चिंता मत कीजिए. मंत्री जी तो सरकार को डिफेंड कर रहे हैं. आप मंत्री जी के उस माली की चिंता कीजिए जिसकी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी जासूसी करवाई गई. आप भारत के अमीरों की चिंता मत कीजिए. आप भारत के आम लोगों की चिंता कीजिए. आप अपनी और अपने बच्चों की चिंता कीजिए.
क्या अब भारत के 140 करोड़ लोग सिर्फ एक आदमी का भजन गाएंगे? क्या भारत के लोगों के दिल-दिमाग, सोच-समझ और लिखने-पढ़ने पर ताला लगा दिया जाएगा?
वीरेंद्र सिंह जैसे फक्कड़ रिपोर्टर को सुनना एक अलहदा अनुभव है. अगर मैं मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री होता तो वीरेंद्र सिंह मुझे हंसाते. कभी उनसे मिलता तो उनकी तारीफ करता. संकीर्ण हृदय का व्यक्ति कभी बड़ा नहीं होता.
जो आज भास्कर की कमियां गिनाकर इस दमन के साथ खड़े हैं, वही कल कहेंगे कि मीडिया बिक गया है. आज जब शूटर विभाग भेजकर भास्कर को शूट किया जा रहा है, तो यह उसे खरीदने की ही कोशिश है. वह बिक जाए तो बिक जाए, हमें उसके लिए नहीं, किसी पार्टी के लिए, हमें अपने लिए बोलना है. यह देश किसी के बाप का नहीं है, यह 140 करोड़ लोगों का लोकतंत्र है जहां सबको बराबर के हुकूक मिले हैं. आप अपने लिए लड़ लीजिए, लोकतंत्र का भी भला हो जाएगा.
भारत नाम का जो देश है, उसके चार स्तंभ हैं. विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस. प्रेस को अलग से कोई संवैधानिक दर्जा नहीं है. प्रेस को वही अधिकार हैं जो भारत के हर नागरिक को हैं. प्रेस को कुचलने का मतलब है कि आम आदमी के अधिकारों को कुचला जा रहा है.
डेढ़ लोगों ने मिलकर इन चारों संस्थाओं को बंधक बना लिया है. सुप्रीम कोर्ट के जज से लेकर विपक्ष के नेता तक, चुनाव आयुक्तों से लेकर आम आदमी तक, हर किसी को कुचलने का प्रयास तेजी से जारी है. किसी की जासूसी, किसी की ब्लैकमेलिंग, किसी को जेल, किसी की हत्या… ये सब घटनाएं नहीं हैं. ये सब हरकतें भारत नाम के देश पर हमला है. यह देश के संविधान पर हमला है. यह भारत की आत्मा पर हमला है.
वे शासक नहीं हैं, वे बर्बर किस्म के आक्रांता हैं जिन्हें किसी भी हद तक जाकर भारत पर कब्जा करना है. अभी वक्त है. संभल जाइए.
ये देश, इसकी संस्थाएं और आपकी आजादी की कीमत का आपको अंदाजा नहीं है. 1857 से लेकर 1947 तक चली लड़ाई में कई पीढ़ियों ने अपना खून बहाया था. ये आजादी बेशकीमती है. बौराइए मत, वरना हमारी आपकी पीढ़ियां पछताएंगी.
पूरे कोरोना काल में दो संस्थानों ने बेहतर काम किया- दैनिक भास्कर और भारत समाचार। आज दोनों के दफ्तरों में छापेमारी हो गई। ये पत्रकारिता का नहीं, लोकतंत्र का दमन है।
जो कुछ हो रहा है वो आपातकाल से बहुत ज्यादा भयानक है। पहले जासूसी कांड और अब भास्कर के दफ्तरों में छापे। ऐसे कुकृत्यों की फेहरिस्त अब अनगिनत हो चुकी है।
दैनिक भास्कर ने कोरोना काल में बेहतरीन काम किया और सरकारी झूठ की धज्जियां उड़ा दीं। झूठ के राष्ट्रीय रैकेट की पोल खुल गई और झूठों के सरताज को ये बात पसंद नहीं आई। सरकार के शूटर विभाग ने आज भास्कर पर छापेमारी कर दी। ऐसे डरपोक हुक्मरानों को जाने कौन अहमक लोग “मजबूत” बताते फिरते हैं।
भारत का लोकतंत्र खतरे में है, अब ये जुमला मात्र विपक्ष का आरोप नहीं है। भारतीय लोकतंत्र को हर रोज बेरहमी से कुचला जा रहा है।
Raj
July 22, 2021 at 10:38 pm
Virendra Singh ek no ka lampat aur bhrashtachari hai…uski chinta karna bekar hai..
Bapu
July 23, 2021 at 5:23 pm
भारतीय लोकतंत्र के केवल तीन स्तंभ है।
स्कूल मे पढ़े लिखे नहीं, कालेज गए नहीं, फिर भी बन गए हिन्दी पत्रकार।
तुम जैसो से क्या ही उम्मीद की जाए बे, बेसिक कांसेप्ट तक सही से बशपता नहीं है।