बड़े बड़े तमाम राजनेताओं और समाज के प्रभावशाली पुरुषों को भी छिनरा, गे, “मादर..”कहकर बुलाया जाता है। आप महिला हैं, किसी का भी नाम ले सकती हैं पर मैं चाहूँ तो कई नाम लिख सकता हूँ पर सामाजिक स्वतन्त्रता मुझे ऐसा करने से रोकती है। मर्द भी मर्द को छक्का कहते हैं! इसे आप “घटिया मानसिकता”भी कह सकती हैं वरना मेरी नजर में यह रूढ़िवादिता से जुड़ी आम सामाजिक मानसिकता है। मर्दों को भी नपुंसक ही नहीं, हिजड़ा या छक्का कहा जाता है, मौगा या मेंहरा कहा जाता है।
अब तो एक सम्मानजनक शब्द निकला है “गे” वरना भोजपूरी में लौंडा या देशज में “गां..” कहा जाता है। पुरुषों या किशोरों के लिए भी यह जीवन से पहले मृत्यु देने के समान है, क्योंकि इसका दाग लेकर उसे पूरे जीवनभर समाज में वह जगह नहीं मिलती जिसका वह वास्तविक हकदार है। उसे हमेशा कमतर माना जाता है। ऑनर-किलिंग केवल महिला की ही नहीं होती है बल्कि पुरुष की भी होती है?
‘पुरुष वेश्या’ आज के समाज की हकीकत है. फिर क्यों किसी आईएस की पत्नी अपने पति के ड्राइवर के साथ तो किसी कर्नल साहब की बीवी अपने पति के अर्दली के साथ भाग जाती है. फिर क्यों किसी प्रौढ़ विवाहित महिला का किसी अन्य से यौन सम्बंध स्थापित हो जाता है. क्या समाज में ऐसी महिलाओं की कमी है जो अपने घर परिवार या अपने दायरे में किशोरों, युवकों को पथभ्रष्ट नहीं करतीं.
स्त्री ही छिनाल या कुलटा नहीं कहलाती बल्कि पुरुष भी छिनरा, लम्पट कहे जाते हैं। समाज की सारी सीमा रेखाएं स्त्री के लिए इसलिए हैं कि पति से इतर पैदा बच्चों की जिम्मेदारी कौन लेगा? अब तो डीएनए टेस्ट से पितृत्व भी पता चल जा रहा है। पुरुष यदि यौनाचार में लिप्त है तो किसी स्त्री के साथ ही तो। फिर उसे स्त्री कहाँ से और क्यों मिलती है? स्त्रियाँ भी तो तमाम गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल मौज मस्ती के लिए करती हैं, क्यों? पुरुषों को भी बाँझ की जगह ठूंठ कहा जाता है।
जिगेलो को कौन बुलाता है, किशोरों युवकों को कौन पथभ्रष्ट करता है? पति से इतर क्यों यौनसुख भोगने की लालसा रहती है? नारी निकेतन व्यवस्था का अंग है।
मैं तर्कवादी हूँ। स्त्री और पुरुष दरअसल नर और मादा हैं जिनके भीतर आदिम यौन लालसाएं हैं। जब ये जाग जाती हैं तो सारी वर्जनाएं ध्वस्त हो जाती हैं। मनुष्य के शरीर में दो प्रमुख अंग है, एक पेट दूसरा सेक्स। दोनों को भूख लगना नैसर्गिक है। इसके लिए न तो पुरुष श्रेष्ठ है या अश्रेष्ठ, न ही स्त्री। पेट की भूख के लिए देशी विदेशी दुनियाभर के स्वदिष्ट व्यंजन हैं, लेकिन सेक्स को वर्जनाओं में बांधकर रखा गया है, जिस पर यहाँ बहस सम्भव नहीं है। मुझे स्त्री-पुरुष पर बहस के दौरान दशकों पहले एक वक्ता से सुनने को मिला था कि एक स्त्री नौ महीने में एक बार माँ बन सकती है जबकि एक पुरुष नौ महीने के दौरान कई बार बाप बन सकता है! मैं स्त्री का अनादर करनेवालों को उतना ही विरोधी हूँ जितना पुरुषों का अनादर करने वालों का।
‘नपुंसक पुरुष हुआ, बांझ स्त्री को कहा गया!’ शीर्षक से भड़ास पर प्रकाशित पोस्ट के जवाब में उपरोक्त टिप्पणी इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह ने लिखी है.
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