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सुख-दुख

भड़ास संपादक के खिलाफ मुकदमा लिखने पर दिल से निकली एक भड़ास पढ़ें

के. सत्येन्द्र-

आज…..खुश तो बहुत होंगे तुम….इसलिए खुश होगे तुम क्योंकि बेईमानो और झुटटों को नंगा करने वाले एक कलमकार के खिलाफ एक और मुकदमा लिख गया । लेकिन याद रखना कि तुम जैसे चंद दलालो औऱ जयचंदो ने ही पहले भी इस देश का बेड़ा गर्क किया था और आज भी कर रहे है । लेकिन इस देश ने आज तक न उन जयचंदो को माफ किया है और न तुम्हे करेगा । मुकदमे का क्या है मेरी जान …जब कागज तुम्हारा, कलम तुम्हारा, थाना तुम्हारा, कानून तुम्हारा, जी डी तुम्हारी तो फिर जब चाहे जो चाहे लिख लो क्या फर्क पड़ता है ।

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यह भी याद रखना की तुम झुटटों बेईमानो की तमाम चापलूसी जीहुजुरी और मक्कारी के बावजूद भी तुम्हारे खिलाफ मौका मिलते ही यही पुलिस प्रशासन तुम्हारा बेड़ा गर्क करने से पहले एक बार भी नही सोचेगी । तुम्हे लगता होगा कि उनके साथ चाय की चुस्कियां लेकर, दो चार बाते करके ,उनके साथ त्योहारों में शामिल होकर और उनके साथ दो चार सेल्फी लेकर और उसे फ़े…क…बु…क पर लगाकर और प्रचारित कर, तुम उनके बड़े करीब हो गए हो, तो तुम्हारी यह सोच तुम्हारी निम्न दर्जे की बुद्धि का परिचायक है और कुछ नही ।

यह भी याद रखना कि कोई पुलिस कोई प्रशासन किसी का सगा नही होता । हमेशा उसे सिर्फ कुर्सी पर बैठा व्यक्ति मात्र ही दिखाई देता है जिसके इशारे पर उसे हर हाल में नाचना होता है और वो नाचता रहता है । जब कुर्सी से उतरते ही ये पूर्व आई ए एस, आई पी एस, विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री को नही पहचानते तो तुम्हारी और हमारी औकात ही क्या है ।

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गलत करने वालों को किसी भी स्तर पर कभी न्याय का इतंजार नहीं करना पड़ता क्योंकि झुटटों और बेईमानो की एक पूरी सत्ता और उसका तंत्र उनके साथ खड़ा दिखाई देता है। लेकिन बड़ी विडंबना है कि सच के साथ ऐसा नही होता । सच लिखने दिखाने से लेकर लड़ाई जीतने तक तमाम बेईमानो और झुटटों से अकेले ही जूझना पड़ता है और जब लड़ाई जीत जाते है तो इन्ही बेईमानो और झुटटों की बधाई भी स्वीकार करनी पड़ती है आज ऐसा इसलिये हो रहा है क्योंकि आज हमारे बच्चो के पाठ्यक्रम से नैतिक शिक्षा नाम की वो किताब गायब हो चुकी है जो अपने जमाने मे हुआ करती थी । आज शायद ही कोई पिता अपने बच्चे को यह सीख देता होगा कि बेटा चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन सच का साथ मत छोड़ना । इसलिए यह बात एकदम सोलह आने सच है कि झुटटों की लंबी चौड़ी कतार वाली मित्रता से कही बेहतर एक अकेले सच्चे शख्श की मित्रता है जो हर हाल में सिर्फ सच का ही साथ दे ।

के. सत्येन्द्र

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पत्रकार

गोरखपुर

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