कवियत्री मधुरिमा सिंह नहीं रहीं

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सुप्रसिद्ध कवियत्री डॉ. मधुरिमा सिंह नहीं रहीं। लगभग 59 वर्ष की आयु में मंगलवार को उनका लखनऊ में निधन हो गया। दोपहर बाद यहां गोमती तट पर ‘वैकुण्ठ धाम’ स्थित श्मशान घाट पर उनका अन्तिम संस्कार किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, प्रशासनिक अधिकारी एवं अन्य गणमान्य लोगों ने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अन्तिम विदाई दी। मुखाग्नि पति जगन्नाथ सिंह ने दी। डॉ. मधुरिमा के एक पुत्र और पुत्री हैं। 

 

उनका जन्म 9 मई 1956 को हुआ था। आशुतोष उनके पुत्र तथा अस्मिता पुत्री हैं। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पीएचडी की थी। कबीर-पन्थी सोच की डॉ.सिंह का हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी, उर्दू सहित कई भाषाओँ पर समान अधिकार था। उनकी करीब डेढ़ दर्जन कृतियां अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के लिए अनेक सम्मान मिले थे। ‘स्वयंसिद्धा यशोधरा’, ‘पाषाणी’ ‘बांसुरी में फूल आ गये’ जैसी श्रेष्ठतम कृतियों की रचनाकार डॉ. मधुरिमा पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं। उन्हें ब्रेन हेमरेज के बाद 25 जनवरी को ग्रेटर नॉएडा के कैलाश हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। ठीक होने के बाद से वह गोमती नगर के विजय-खण्ड स्थित अपने आवास ‘अभिव्यक्ति’ में परिजनों के साथ स्वास्थ्य-लाभ कर रही थीं। सुबह करीब सवा आठ बजे उन्हें दिल का तेज दौरा पड़ा। परिजन कुछ समझ पाते, इसके पहले ही उनका देहावसान हो गया। उनके पति जगन्नाथ सिंह उत्तर प्रदेश में गृह विभाग के सचिव रहे हैं। 

 

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