डॉ अभिलाषा द्विवेदी-
किसी भी मरीज़ से डॉक्टर की कोई व्यक्तिगत दुश्मनी होती है क्या? या मरीज़ को मार देने से उसे कोई व्यक्तिगत लाभ मिल जाता है?
कई मामलों में तो पहले जब तक हालत बहुत बिगड़ चुकी होती है तब मरीज़ हॉस्पिटल पहुंचते हैं। कई मरीजों के घरवाले खुद इलाज कराने में बहुत सक्रियता नहीं दिखाते। लेकिन यदि बिगड़े केस में मरीज़ को बचाया नहीं जा सके तो खूब हंगामा करते हैं
और बाद में लोकल नेता भी आग लगाने का काम करते हैं।
डॉ अर्चना शर्मा ने आत्महत्या नहीं की, उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया। ऐसा ही चलता रहा तो कोई भी डॉक्टर गंभीर केस को हाथ लगाने और अंतिम समय तक मरीज़ को बचाने का प्रयास करने से डरेगा।
आप लोग ही बताएँ, मुझे तो समझ में नहीं आता कि कोई भी डॉक्टर आखिर क्यों चाहेगा कि उसका पेशेंट न बचे? ऐसे किसी भी मामले की विभागीय जांच होती है। वहाँ तो पूरी डिटेल्स के साथ डॉक्टर और स्टाफ को जवाब देना होता है। यदि कोई गलती पायी जाती है तो कार्रवाई भी होती है। लेकिन ऐसे बाहरी नेताओं का धरना प्रदर्शन और डॉक्टर को टॉर्चर करना, इसका क्या अर्थ होता है?
इसके पहले भी अस्पतालों में डॉक्टर्स पर हमले किए जाते रहे हैं।प्रशासन से कई बार डॉक्टर्स की सुरक्षा के इंतजाम की मांग की गई है। पर डॉक्टर्स के कोई सुरक्षा अधिकार नहीं हैं? कोई मानवाधिकार नहीं?
पोस्टपार्टम हैम्रेज PPH का केस था
कुछ मामलों में बच्चे को जन्म देने के बाद यूटरस सिकुड़ना करना बंद कर देता है, जिससे ब्लड वेसल्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है, इस यूटराइन एटोनी से हैम्रेज की संभावना हो सकती है और यह प्राइमरी पीपीएच का एक सामान्य कारण है।
जब प्लेसेंटा के छोटे टुकड़े गर्भाशय में जुड़े हुए रह जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में भी ज्यादा ब्लीडिंग हो सकती है। इसके अलावा अगर PPH में सर्वाइकल या वजाइनल टिशू फट जाए गर्भाशय के ब्लड वेसल्स फट जाए वलवा या वजाइनल रीजन में हेमाटोमा, जो कि पेल्विस में एक बंद टिशू एरिया या खाली जगह में होने वाली ब्लीडिंग से होता है।
वंशानुगत या कॉम्प्लीकेटेड प्रेगनेंसी से होने वाला ब्लड क्लॉटिंग डिस्ऑर्डर भी इसका कारण हो सकता है। इनवर्टेड यूट्रस, प्लेसेंटा एक्रीटा, जिसमें प्लेसेंटा असामान्य रूप से गर्भाशय के निचले हिस्से के साथ जुड़ जाता है। प्लेसेन्टा इंक्रेटा, जिसमें गर्भाशय की मांसपेशियों पर प्लेसेंटा के टिशू अवरोध पैदा करते हैं।
प्लेसेंटा पर्क्रेटा, जिसमें प्लेसेंटल टिशू गर्भाशय की मांसपेशियों के अंदर चले जाते हैं और फट भी सकते हैं। ये सारे कंडीशन ट्रीट करने के लिए अस्पताल में विशेष सुविधाएँ चाहिए होती हैं।
गंभीर मामलों में बिना प्रोसीजर के ब्लीडिंग कंट्रोल नहीं की जा सकती जिससे ब्लड प्रेशर गिरने लगता है। हार्ट रेट हाई हो जाता है। रेड ब्लड सेल काउंट कम हो सकता है। जेनिटल एरिया में सूजन, वजाइना और पेरिनियल रीजन के आसपास के टिशूज में भयंकर दर्द जैसी स्थिति होती है।
मैंने हॉस्पिटल emergency में जो पहला ऐसा केस देखा था, वो भी किसी कस्बे से रिफर हुआ केस था। emergency में 4 डॉक्टर लगे रहे पर blood loss बहुत हो चुका था और शीहन syndrome, accute अनीमिया के चलते 6-7 मिनट में ही पेशेंट नहीं रही।
पुरानी केस समरी में था कि महिला पहले से ही कुपोषित थी।सैकड़ों जच्चा-बच्चा का जीवन बचाने वाली डॉक्टर को आख़िर किसी एक से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो नहीं ही रही होगी न! फिर भी दोष उन्हें ही दिया जाता है और महिला बाल पोषण का पैसा खा जाने वाले लोकल नेता ऐसे मामले में डॉक्टर को टॉर्चर करते हैं।
नवनीत मिश्रा-
“मेरा मरना शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे”
राजस्थान के दौसा जिले की डॉक्टर अर्चना शर्मा का यह सुसाइड नोट रुला देने वाला है। एक प्रसूता की मौत पर अर्चना के खिलाफ हत्या का केस दर्ज हो गया। डॉक्टर अर्चना डिप्रेशन का शिकार हो गईं। डॉक्टर अर्चना कहतीं रहीं कि मौत medical negligance से नहीं बल्कि medical complication से हुई। गलती न होने पर भी प्रताड़ना से तंग आकर अर्चना ने जान दे दी। सुसाइड नोट में परिवार से कहा – मेरा मरना शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे… मेरे बच्चों को मां की कमी महसूस न होने देना।