परिवादी की पत्नी श्रीमती गीता देवी के बाऐं ब्रेस्ट तथा आर्मपिट में एक छोटी गॉंठ दिखनेऔर उसमें दर्द होने पर वह कमला नेहरू मेमोरियल हास्पिटल, इलाहाबाद के सर्जन डॉ0 रवीन्द्र नारायण सक्सेना के पास अपनी पत्नी को दिखाने गया जिन्होंने उसे देखकर अल्ट्रासाउण्ड और मेमोग्राफी कराने की सलाह दी।
गीता देवी के उपरोक्त टैस्ट के पश्चात् वह उसे लेकर दिनांक 07-08-2012 को डॉ0 रवीन्द्र नारायण सक्सेना के पास पहुँचा जिन्होंने इसको देखकर कहा कि यह फाइलेरिया के लक्षण हैं और उन्होंने फाइलेरिया का इलाज शुरू कर दिया और उन्होंने 21 दिन की दवाई लिखी जिसे वह लगातार खाती रही। मरीज की हालत बिगड़ती गई और उसके बाऐं बैस्ट पर सूजन बढ़ गई। जिस पर वह दिनांक 28—08-2012 को डॉ0 रवीन्द्र नारायण सक्सेना के पास पुन: पहुँचा और उन्हें दवाईयों से कोई फायदा न होने के बारे में कहा किन्तु डॉ0 रवीन्द्र नारायण सक्सेना ने इन्हीं दवाईयों को आगे लेने के लिए कहा।
इसके पश्चात् बाऐं ब्रैस्ट के साथ-साथ उसके दाहिने ब्रैस्ट में भी सूचना उत्पन्न हो गई और उसकी हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ने लगी और तब पुन: डॉ0 रवीन्द्र नारायण सक्सेना से इस बारे में कहा और उन्होंने पुन: उन्हीं दवाईयों को लेने के लिए कहा किन्तु उसके दोनों ब्रैस्टों में सूजन बढ़ती जा रही थी। इस पर श्रीमती गीता देवी के पति ने किसी अन्य डॉक्टर को सन्दर्भित करने के लिए कहा किन्तु उन्हें सन्दर्भित नहीं किया गया। उसी अस्पताल में डॉ0 बी पाल कैंसर रोग विशेषज्ञ भी थे किन्तु उन्हें यह मामला सन्दर्भित नहीं किया गया।
परिवादी ने इसके पश्चात् मरीज क सर सुन्दर लाल चिकित्सालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में डॉ0 एच0एस0 शुक्ला को दिखाया जिन्होंने तुरन्त टाटा मेमोरियल हास्पिटल मुम्बई जाने को कहा।
परिवादी तुरन्त टाटा मेमोरियल हास्पिटल मुम्बई गया जहॉं पर उसके तरह-तरह के टैस्ट हुए किन्तु प्रारम्भ में गलत दवाऐं चलने के और उचित परीक्षण न होने के कारण उसका रोग असाध्य हो गया तथा कैंसर शरीर के अन्य अंगों में भी फैल गए। बाद में कीमोथिरेपी होते-होते मरीज की हालत अत्यन्त दयनीय और शोचनीय हो गई और दिनांक 08-05-2013 को उसकी मृत्यु हो गई।
परिवादी ने राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ के समक्ष इस सम्बन्ध में एक परिवाद प्रस्तुत किया जिसमें राज्य उपभोक्ता आयोग के प्रिसाइडिंग जज श्री राजेन्द्र सिंह और सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा सुनवाई की गई। निर्णय उदघोषित करते हुए प्रिसाइडिंग जज श्री राजेन्द्र सिंह ने कहा कि इस मामले में प्रारम्भ में ही अल्ट्रासाउण्ड और मेमोग्राफी में ब्रैस्ट और आर्मपिट में लिम्फ नोड तथा बाऐं ब्रैस्ट में बढ़े हुए एक्जिलरी नोड, जो 18 एम.एम. से बड़े हो गए थे, पाए गए जो ब्रैस्ट कैंसर की प्रारम्भिक शंका पैदा करने के लिए पर्याप्त थे किन्तु इसके बाबजूद मरीज को किसी भी कैंसर रोग विशेषज्ञ को नहीं दिखाया गया।
समस्त तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के उपरान्त राज्य उपभोक्ता आयोग ने पाया इस मामले में विपक्षी कमला नेहरू अस्पताल द्वारा निदेशक और डॉ0 रवीन्द्र नारायण सक्सेना की लापरवाही और उपेक्षा स्पष्ट है। विपक्षी सं0-3 डॉ0 एस0 खण्डूजा ने केवल रेडियोलाजी रिपोर्ट दी थी,अत: उनका मरीज से सीधे कोई सम्बन्ध नहीं था।
राज्य उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी सं0-1 व 2 को आदेश दिया कि वे परिवादी को 50.00 लाख रू0 मानसिक उत्पीड़न, शारीरिक कष्ट, अवसाद, चिकित्सीय खर्च व वाद व्यय आदि के रूप में दें और इस पर दिनांक 07-08-2012 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी अदा करें और इसका भुगतान इस निर्णय के 45 दिन के अन्दर किया जाए अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी जो दिनांक 07-08-2012 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगा। यदि आदेश का अनुपालन 45 दिन में नहीं होता है तब परिवादी विपक्षी सं0-1 व 2 के विरूद्ध उनके खर्चे पर निष्पादन कार्यवाही आरम्भ कर सकता है।