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जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी : जीएसटी का सच (पार्ट 1 से 12 तक)

जीएसटी का सच (पार्ट 1) : जीएसटी यानि छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन

संजय कुमार सिंह
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जीएसटी के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं पर यह छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन है। मेरे कुछ ग्राहकों ने कहा कि अंतरराज्यीय “कारोबार” करने वालों के लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है और कायदे से वे काम कराना तो दूर जो काम करा चुके उसका भुगतान भी नहीं कर सकते। शुरू में तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ पर अब लगता है कि वे सही ही कर रहे हैं। वैसे भी नौकरी करने वाले क्यों जोखिम उठाएं। वे काम नहीं कराएंगे, गलत हो तो क्यों करें। तनख्वाह तो मिलनी ही है। पर यह सब कितने दिन कैसे चलेगा भविष्य बताएगा।

जीएसटी का सच (3) : सेवाएं महंगी होंगी, प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पाएंगे

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संजय कुमार सिंह
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अब तक आप जान चुके हैं कि जीएसटी पंजीकरण कराना किसके लिए जरूरी है और किसके लिए नहीं। कम काम (कारोबार) होने पर भी कुछ खास लोगों (या पेशे वालों) को इससे मुक्ति नहीं दी गई है जबकि कुछ खास पेशे वालों को असीमित काम होने पर भी मुक्ति दी गई है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब सोच समझ कर किया गया होगा। लेकिन उसपर बाद में। मैं लिख चुका हूं कि जीएसटी पंजीकरण आसान नहीं है। मैं किसी छूट की उम्मीद भी नहीं करता पर पंजीकरण कराने से पहले आपको बता देना चाहता हूं कि यह है क्या और कैसे इच्छा या पसंद का पेशा अपनाना भी अब मुश्किल हो गया है। पंजीकरण कराने में क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं वह तो बताउंगा ही।

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कारोबार कम होने के बावजूद नियमानुसार जरूरी होने के कारण पंजीकरण के बिना आपको काम नहीं मिलेगा और अगर आपने पंजीकरण करा लिया तो आपको टैक्स जो लागू है वह वसूलकर जमा कराना होगा भले ही वार्षिक कारोबार की कुल रकम के लिहाज से आपके लिए पंजीकरण आवश्यक न हो। इससे आपकी सेवा महंगी हो जाएगी। सर्विस टैक्स 18 प्रतिशत है तो कम से कम 18 प्रतिशत और ऊपर से आपके खर्चे। मेरे जो खर्चे बढ़ेंगे वह कुल कारोबार का 25 प्रतिशत होने का अनुमान है तो इस 18 प्रतिशत पर 25 प्रतिशत जोड़ दीजिए। कुल हो गया 43 प्रतिशत। इससे क्या सेवाएं महंगी नहीं होंगी? और दूसरे, क्या आप प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे? ऐसा नहीं है कि प्रतिस्पर्धा है ही नहीं।

जो लोग अपने ही राज्य में काम करते हैं और यह दिखा-बता सकते हैं कि वे ग्राहक के यहां जाकर काम करते हैं या ग्राहक उनके यहां से काम करा ले जाता है तो जीएसटी पंजीकरण जरूरी नहीं है। यानी दिल्ली में बैठकर अगर मैं बैंगलोर के किसी क्लाइंट के लिए काम करता हूं तो वहां के किसी गैर पंजीकृत सेवा प्रदाता की तुलना में मेरी सेवा 43 प्रतिशत महंगी होगी। इसमें मुझे कुछ नहीं मिलेगा। हां, एक व्यक्ति के मासिक वेतन, ऑफिस की जगह का किराया आदि मुझे देना ही होगा। चाहे मैं कारोबार न करूं, न कर पाऊं। इस तरह, गाजियाबाद यानी उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों से मुझे जो काम मिलता है वह बंद हो जाएगा।

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दूसरी ओर उस राज्य के मेरे जैसे सेवा प्रदाता को कुछ नहीं करना है – सिर्फ झूठ बोलना है। कारोबार चूंकि पहले ही कम है इसलिए यह किसी की नजर में नहीं आएगा और कारोबार चलता रहेगा। ऐसे में सेवा लेने वाले के पास विकल्प नहीं है – काम की गुणवत्ता कैसी भी हो वह दिल्ली में मुझसे काम नहीं करा पाएगा क्योंकि मेरे पास जीएसटी पंजीकरण नहीं है और उसे स्थानीय सेवा प्रदाता से सस्ते में सेवा मिल जाएगी। गुणवत्ता का कोई मतलब नहीं रह गया।

ऐसा नहीं है कि झूठ बोल कर मैं यह सुविधा नहीं प्राप्त कर सकता। असल में मैं यही बताना चाहता हूं कि भारत के कई कानूनों की तरह जीएसटी में पंजीकरण कराने का यह नियम भी आपको गलत करने के लिए प्रेरित करता है। और अगर आप गलत करते हैं, जोखिम उठाते हैं, फंसाए जाने का डर झेलते हैं। तो छोटे स्तर पर काम पाते रहेंगे। यह सांप छुछूंदर वाली स्थिति है। ना काम करके कमा पाएंगे ना बंद कर पाएंगे। वह भी किसलिए? किसी खास लाभ के लिए नहीं। लाभ बहुत मामूली है। और आप किसी भी समय ब्लैकमेल किए जाने का जोखिम ले लेते हैं। इसलिए मैं तो यह सब करने से रहा।

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