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जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी : जीएसटी का सच (पार्ट 1 से 12 तक)

जीएसटी का सच (पार्ट 1) : जीएसटी यानि छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन

संजय कुमार सिंह
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जीएसटी के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं पर यह छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन है। मेरे कुछ ग्राहकों ने कहा कि अंतरराज्यीय “कारोबार” करने वालों के लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है और कायदे से वे काम कराना तो दूर जो काम करा चुके उसका भुगतान भी नहीं कर सकते। शुरू में तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ पर अब लगता है कि वे सही ही कर रहे हैं। वैसे भी नौकरी करने वाले क्यों जोखिम उठाएं। वे काम नहीं कराएंगे, गलत हो तो क्यों करें। तनख्वाह तो मिलनी ही है। पर यह सब कितने दिन कैसे चलेगा भविष्य बताएगा।

जीएसटी का सच (5) : कंप्यूटर से काम, सबकुछ अंग्रेजी में

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संजय कुमार सिंह
[email protected]

जीएसटी का सारा काम इंटरनेट के जरिए होना है। एक जुलाई को जीएसटी लागू होने से पहले और बाद में भी इसका पोर्टल ठप होता रहा है। नया है, एक ही समय भार बहुत ज्यादा है तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। पर सब कुछ अंग्रेजी में ही है। अव्वल तो देश भर में हर तरह के कारोबारी कंप्यूटर साक्षर नहीं है और अंग्रेजी सबको आती नहीं है। यानी ऐसे कारोबारी हैं जिन्हें हिन्दी नहीं आती पर कंप्यूटर साक्षर हैं। उसी तरह ऐसे कारोबारी भी हैं जिन्हें अंग्रेजी तो आती है पर वे कंप्यूटर साक्षर नहीं हैं।

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ऐसे लोगों के बारे में सोचे बगैर सबके लिए एक साथ जीएसटी लागू करना क्यों जरूरी था। जिसे अंग्रेजी आती ही नहीं वह ना कायदे कानून समझ पाएगा ना जरूरतें जानेगा तो उनका अनुपालन कैसे कर पाएगा। मैं अंग्रेजी पढ़कर समझ सकता हूं पर अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि पंजीकरण कराना चाहिए कि नहीं और जब 20 लाख तक के कारोबारियों को पंजीकरण से छूट है तो दूसरे राज्य में कारोबार करने के लिए और कंप्यूटर या इंटरनेट से काम करने के कारण पंजीकरण जरूरी करने का क्या मतलब है। मेरी तरह काम करने वालों को अगर पहले बैच में रखा जाता, परीक्षण में सहयोगी बनाया जाता तो बात समझ में आती। इसके उलट, बड़े कारोबारियों से शुरुआत करके धीरे-धीरे विस्तार किया जा सकता था। पर दोनों ही नहीं किया गया।

बिना जाने-समझे अगर मैं पंजीकरण करा लूं तो मैं खुद रिटर्न दाखिल कर सकूंगा कि नहीं – यह मैं अभी तक नहीं समझ पाया हूं। चार्टर्ड अकाउंटैंट से यह काम कराने का विकल्प है पर जो पैसे वो मांग रहे हैं वह मैं अपनी कमाई से नहीं दे सकता और पंजीकरण कराने से काम या कमाई बढ़ने की कोई संभावना नहीं है। उल्टे सरकार के लिए टैक्स बटोर कर खजाने में जमा कराने का काम मैं मुफ्त में करूंगा जो 20 लाख से कम का कारोबार होने के कारण मेरी मजबूरी नहीं होनी चाहिए। मैं इस झमेले में क्यों फंसने जाऊं?

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दूसरी ओर, सख्ती और धमकी का आलम यह है कि जिन लोगों ने काम करा लिया (एक जुलाई से अब तक) वे पैसे देने से मना कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वे नहीं जानते हैं कि पैसे जो काम हुआ है उसके देने हैं, जीएसटी पंजीकरण के नहीं। पर सरकारी कानून और इंस्पेक्टरों का डर ऐसा ही होता है। छोटे-मोटे कारोबारियों पर तो होता ही है बड़े कारोबारी के बाबू को ना अपनी अक्ल लगानी होती है ना उनमें जोखिम लेने का माद्दा होता है। ऐसे में मेरे जैसे लोग जिन्हें पैसे नहीं मिल रहे अपने वर्षों पुराने ग्राहकों से झगड़ा कर लें, मार पीट कर लें, एफआईआर लिखा दें या अदालत में मनी सूट फाइल करें। कुछ हजार या कुछ लाख के बिल के लिए? यह कितने दिनों में निपट जाएगा और इसपर जो खर्चा होगा सो? पैसे जो फंस गए आदि के बारे में किसे सोचना था? कौन सोचेगा?   

मैं कह चुका हूं कि साइट या पोर्टल अंग्रेजी में है उसपर भी बहुत सारी जानकारी नहीं है। मूल अंग्रेजी की सारी सामग्री एक साथ तो अनुवाद नहीं हो सकती। और सिर्फ हिन्दी अनुवाद से क्या होगा। देश भर में कई भाषाओं में अनुवाद होना है पर उसके बिना जीएसटी लागू करने से सरकार की गंभीरता या मनमानी समझ में आती है। सरकार की धमकी और सजा के प्रावधान भी। पर वाजिब मजबूरियों का ख्याल नहीं रखकर सजा देने से हासिल क्या होगा। सरकार का मकसद जीएसटी लागू करना होना चाहिए, न मानने वालों को सजा देना नहीं। इसे किस्तों में भिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग लागू करने में क्या दिक्कत थी। एक साथ लागू करने पर दूसरों को परेशान करने और खुद शर्मिन्दा होने के अलावा क्या हो रहा है।

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