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जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी : जीएसटी का सच (पार्ट 1 से 12 तक)

जीएसटी का सच (पार्ट 1) : जीएसटी यानि छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन

संजय कुमार सिंह
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जीएसटी के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं पर यह छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन है। मेरे कुछ ग्राहकों ने कहा कि अंतरराज्यीय “कारोबार” करने वालों के लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है और कायदे से वे काम कराना तो दूर जो काम करा चुके उसका भुगतान भी नहीं कर सकते। शुरू में तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ पर अब लगता है कि वे सही ही कर रहे हैं। वैसे भी नौकरी करने वाले क्यों जोखिम उठाएं। वे काम नहीं कराएंगे, गलत हो तो क्यों करें। तनख्वाह तो मिलनी ही है। पर यह सब कितने दिन कैसे चलेगा भविष्य बताएगा।

जीएसटी का सच (नौ) : काम देने वालों ने काम देना ही बंद कर दिया है

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संजय कुमार सिंह
[email protected]

कुछ लोगों का मानना है कि मुझे अगर अनुवाद करते रहना है और नियम ऐसे बन गए हैं तो पंजीकरण करा लेना चाहिए या फिर छोड़कर जो कर सकता हूं वह करना चाहिए। इस मामले में मेरा मानना है कि मैं 15 साल से पूर्णकालिक तौर पर यही काम कर रहा हूं और इससे संतुष्ट हूं। सरकार के एक गलत फैसले से मेरा अच्छा-भला काम (या धंधा) गैर कानूनी हो गया है। स्थिति यह है कि मैं गैर कानूनी काम करूं या बगैर किसी धंधे के भूखे मरूं। हालांकि यह विकल्प भी मेरे पास नहीं है। क्योंकि काम देने वालों ने काम देना ही बंद कर दिया है। काम लेने के लिए मुझे जीएसटी पंजीकरण कराना ही पड़ेगा। क्योंकि अब रिटायरमेंट की उम्र के करीब पहुंच कर मैं कुछ और नहीं कर सकता। नहीं करना चाहता। ऐसे में मैं यह बताने का काम भी न करूं कि जीएसटी ने मुझे बर्बाद कर दिया, आपको भी कर सकता है – से मैं सहमत नहीं हूं। इसलिए लिखना जारी रहेगा।

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आज मैं आपको बताऊं कि सरकारी आदेश या नियम को मानकर मैं जीएसटी पंजीकरण करा लूं तो काम करने का मेरा खर्च या लागत तो बढ़ ही जाएगा उसपर 18 प्रतिशत जीएसटी भी लगेगा। जो पंजीकरण नहीं कराने पर नहीं लगेगा और 20 लाख प्रतिवर्ष से कम का कारोबार होने के कारण सरकार के ही नियम के अनुसार लगना जरूरी नहीं है। इससे एक तो काम कम मिलेगा और अगर मैं किसी तरह काम बढ़ा भी लूं तो जीएसटी की औपचारिकताएं पूरी करने में व्यस्त होने के कारण मुझे दूसरों से सहायता लेनी पड़ेगी।

नियमानुसार मैं उनलोगों से काम नहीं करा सकता जो जीएसटी में पंजीकृत नहीं हैं। अब जीएसटी में पंजीकृत अनुवादक मैं कहां तलाशूंगा और जो जीएसटी में पंजीकृत हों उनका अनुवाद संतोषजनक ना हो तो? काम लेकर फंस जाउंगा। जीएसटी पंजीकरण करा लूं तो खर्च निकालने के झंझट में फंसूं और इस चक्कर में बड़ा काम ले लूं तो काम करने वाला ढूंढ़ने के चक्कर में फंसूं। यह स्थिति तब है जब अंग्रेजी से हिन्दी या किसी भी भाषा में अनुवाद का काम लगातार कम हो रहा है। और काम करने वाले लगातार बढ़ रहे हैं क्योंकि अखबारों और मीडिया संस्थानों में ऐसे काम करने वालों को किसी ना किसी बहाने 40-45 की उम्र में बेरोजगार कर दिया जा रहा है।

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इसके अलावा कंप्यूटर सस्ता होने और इंटरनेट की पहुंच बढ़ने से इस तरह, ऐसा काम करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। गांव-देहात में रहकर काम करने वालों की लागत कम होगी। वो कम खर्च में काम कर सकते है पर जीएसटी का भार उसे काम करने नहीं देगा। जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य होने के कारण परोक्ष रूप से काम पाना भी मुश्किल हो जाएगा और यह निश्चित रूप से छोटा रोजगार करने वालों के लिए मुश्किल स्थिति है। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्वरोजगार और रोजगार के मौके बढ़ाने के आश्वासनों के बीच जीएसटी को लेकर यह रुख और सरकारी शैली देश को बर्बाद करने वाली है।

उसपर यह विज्ञापन!! जीएसटी पर दो दिन की ट्रेनिंग 7000 रुपए में। दूसरी ओर, तकनीक के कारण बहुत से काम धंधे वैसे ही बेकार-व्यर्थ होते जा रहे हैं (नए भी बन रहे हैं)। इसलिए कुछ भी नया करने से पहले सोचने-समझने की जरूरत है। मैं नहीं समझता कि अनुवाद का कार्य लंबा चलेगा। एक समय आएगा जब कंप्यूटर काम लायक अनुवाद कर देगा और मामूली संपादन कर उसका उपयोग किया जा सकेगा। ऐसे में ज्यादा लोगों को इस धंधे में आने या इसके लिए पंजीकरण कराने के लिए प्रेरित करना भी उचित नहीं है। 

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