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जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी : जीएसटी का सच (पार्ट 1 से 12 तक)

जीएसटी का सच (पार्ट 1) : जीएसटी यानि छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन

संजय कुमार सिंह
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जीएसटी के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं पर यह छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन है। मेरे कुछ ग्राहकों ने कहा कि अंतरराज्यीय “कारोबार” करने वालों के लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है और कायदे से वे काम कराना तो दूर जो काम करा चुके उसका भुगतान भी नहीं कर सकते। शुरू में तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ पर अब लगता है कि वे सही ही कर रहे हैं। वैसे भी नौकरी करने वाले क्यों जोखिम उठाएं। वे काम नहीं कराएंगे, गलत हो तो क्यों करें। तनख्वाह तो मिलनी ही है। पर यह सब कितने दिन कैसे चलेगा भविष्य बताएगा।

जीएसटी का सच (4) : घड़ियां महंगी हुईं, पार्किंग पर जीएसटी

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संजय कुमार सिंह
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अभी तक आपने नए पंजीकरण से जुड़े झंझटों के बारे में पढ़ा। पुराने पंजीकृत व्यापारी जो पहले बिक्री कर या वैट में पंजीकृत थे उन्हें अचानक जीएसटी में स्थानांतरित होना पड़ा है। बगैर पूरी तैयारी के। तैयारी वह जो सरकार को करनी थी अब भी पूरी नहीं हुई है। ऐसे में पंजीकृत व्यापारियों और उनके पुराने स्टॉक की खासी समस्या रही है पर अगर आप उसे व्यापारियों की समस्या मानकर छोड़ भी दें तो उपभोक्ता के रूप में आप पर उसका क्या असर हुआ वह जान लीजिए।

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मैंने जीएसटी लागू होने से पहले 18 जून को एक घड़ी खरीदी। खरीदी क्या, पसंद आ गई तो दुकानदार से पूछ लिया कितने का देंगे। 5000 रुपए की टाइटन की घड़ी 4650 रुपए में देने को तैयार हो गया। मुझे पसंद थी ही मैंने खरीदने का निर्णय कर लिया। वैसे तो यह छूट 350 रुपए की ही है पर मैंने घड़ी खरीदी इसीलिए। अगर दुकानदार यह छूट नहीं देता तो मैं घड़ी नहीं खरीदता। बिल्कुल भी नहीं। बिल बनाते समय जीएसटी की बात चली तो दुकानदार ने कहा कि एक तारीख के बाद यह घड़ी 5000 की ही मिलेगी।
मुझे मौका मिला तो मैंने पूछ लिया – कोई रीफंड नहीं लेना। बिल नहीं चाहिए आप कुछ और छोड़ सकते हैं तो बताइए। उसने कहा कि नहीं, बेचने के लिए ये घड़ियां खरीदी तो टैक्स देकर ही हैं इसलिए आप बिल लें या नहीं टैक्स में मैं कुछ चोरी नहीं कर सकता ना आपको उसका लाभ दे सकता हूं।

अब जीएसटी पर आते हैं। बिटिया काफी समय से घड़ी की मांग कर रही थी। पिछली बार उसे कोई घड़ी पसंद नहीं आई थी। राखी के दिन बेटे ने बिटिया को घड़ी के लिए 2000 रुपए दिए। हम फिर उसी दुकान पर पहुंचे। इस बार फास्टट्रैक की जो घड़ी पसंद आई उसपर 2395 रुपए एमआरपी लिखा था। मैंने पूछा इसपर छूट? दुकानदार ने कहा, कोई नहीं। फिर वह मेरी हाथ की घड़ी पहचान गया और पिछली बातें उसे लगभग याद आ गईं। उसने बताया कि जीएसटी के कारण वह बहुत परेशान है और पुराने स्टॉक पर भी बढ़ी हुई नई दर से टैक्स देना पड़ रहा है। इसलिए वह कोई छूट नहीं दे सकता।

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अब देखिए 2395 रुपए एमआरपी पर टैक्स कितना लगा। दुकानदार ने इसपर 524 रुपए छूट (जो मुझे नहीं मिले) दिखाया। घड़ी का कुल मूल्य हुआ 1871 रुपए। इसपर 14 प्रतिशत एसजीएसटी और इतना ही सीजीएसटी (एक देश में केंद्र और राज्य के लिए दो बार अलग-अलग टैक्स को कहते हैं जीएसटी) कुल 28 प्रतिशत 524 रुपए। और मैं 2395 रुपए देकर घड़ी ले आया। दोनों बार पैसे डेबिट कार्ड से दिए हैं। पक्की रसीद है। इसलिए दुकानदार ने कोई गड़बड़ी की होगी इसकी संभावना मुझे नहीं लगती है।

इससे पहले मैं लिख चुका हूं कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (अजमेरी गेट की तरफ) पार्किंग ठेकेदार ने जीएसटी पंजीकरण करा लिया है। इसलिए जीएसटी लागू होने से पहले कार पार्किंग का जो न्यूनत्म चार्ज 50 रुपए था वह 18 प्रतिशत जीएसटी लगने के बाद नौ रुपए बढ़ गया है। प्लैटफॉर्म टिकट सरकार ने तीन रुपए से बढ़ाकर 10 रुपए कर दिया गया था और यही बहुत ज्यादा है। स्टेशन के बाहर गाड़ी खड़ी करने के 50 रुपए तो पहले लगते थे जीएसटी के नाम पर सरकार ने नौ रुपए और बढ़ा दिए। गाडी, स्टेशन, पार्किंग जगह सब वही है। सिर्फ जीएशटी लगा है। झेलने के लिए तैयार रहिए।

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