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जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी : जीएसटी का सच (पार्ट 1 से 12 तक)

जीएसटी का सच (पार्ट 1) : जीएसटी यानि छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन

संजय कुमार सिंह
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जीएसटी के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं पर यह छोटे और नए कारोबारों का दुश्मन है। मेरे कुछ ग्राहकों ने कहा कि अंतरराज्यीय “कारोबार” करने वालों के लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है और कायदे से वे काम कराना तो दूर जो काम करा चुके उसका भुगतान भी नहीं कर सकते। शुरू में तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ पर अब लगता है कि वे सही ही कर रहे हैं। वैसे भी नौकरी करने वाले क्यों जोखिम उठाएं। वे काम नहीं कराएंगे, गलत हो तो क्यों करें। तनख्वाह तो मिलनी ही है। पर यह सब कितने दिन कैसे चलेगा भविष्य बताएगा।

जीएसटी का सच (सात) : जो है जैसे है डंडे के बल पर

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संजय कुमार सिंह
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मैंने कल बताया कि जीएसटी की सारा खेल कंप्यूटर, इंटरनेट और पोर्टल के जरिए होना है। अगर एक बढ़िया, कार्यकुशल सहज अनुभूति वाला (इंट्यूटिव) पोर्टल होता तो ना अखबारों में विज्ञापन देकर इसके बारे में बताने-जगाने की जरूरत होती ना धमकी देने के लिए विज्ञापनों का सहारा लेना पड़ता। सब कुछ कंप्यूटर पर ईमेल के जरिए किया जा सकता है। रिटर्न फाइल हुआ कि नहीं यह जाने बगैर अखबार में विज्ञापन छपवाकर सरकार काम कर रही है, जगी है – बताना आसान है। वरना कंप्यूटर से यह व्यवस्था की जा सकती थी कि समय पर रिटर्न फाइल नहीं करने वाले को अलग-अलग ई-मेल समय निकलते ही भेज दिया जाए। पर शून्य रिटर्न फाइल कराने की दादागिरी में रिटर्न देखने की व्यवस्था कहां की गई होगी?

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हजारों लोग शून्य रिटर्न देखने के लिए लगाए जाएंगे तो सरकार का खर्चा कैसे चलेगा। विज्ञापन नहीं दिए जाएंगे तो अखबार वाले सरकार में छवि बना देंगे कि जीएसटी बेकार है। इसलिए जो है जैसे है डंडे के बल पर लागू कर दिया गया। भुगतेगी जनता। राजस्व कम आए या ज्यादा – क्या फर्क पड़ना है। जरूरत होगी तो कोई और टैक्स लगा दिया जाएगा या दर बढ़ा दी जाएगी। इसलिए, सरकार को और बाबुओं को भी इससे कोई मतलब नहीं है कि काम कायदे से किया जाए, जनता को असुविधा ना हो। उल्टे उनके कमाने-खाने का रास्ता खुला रहे। उलझन इतना बढ़ा दो कि कोई समझ ही न पाए। नियम इतने सख्त बना दो कि हर कोई गलती करे। डर कर रहे।

पंजीकरण से लेकर रिटर्न फाइल करने तक का काम कंप्यूटर पर होना है तो एक ट्रायल वर्जन भी बनाया जा सकता था। रिटर्न में क्या फाइल करना है, क्या जानकारी देनी है – यह सब पहले बताया जा सकता है या पंजीकरण कराने वाले को खुद देखने समझने की सुविधा मिलनी चाहिए। ऐसा कुछ मुझे मिला नहीं। बिना जाने-समझे कैसे भर दूं? इसके लिए कहां जाऊं। जितने लोगों से पूछ सकता था पूछ लिया। सबने यही कहा कि पंजीकरण कराना ही पड़ेगा और उससे कोई फायदा नहीं होगा। जाहिर है कुछ नहीं करने और बेरोजगार रहने से बेहतर होगा कि मैं खुद कर लूं। पर कर सकूंगा कि नहीं यह कैसे सुनिश्चित होगा। बिना जाने ही ओखली में सिर डाल दूं?

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अगर आपने इंटरनेट पर फॉर्म भरा हो तो आपको पता होगा कि कई बार तकनीकी कारणों से और कई बार आवश्यक बताई गई सूचना उपलब्ध नहीं होने से फॉर्म भरना मुश्किल होता है और एक बार में संभव नहीं होता है। ऐसे में पंजीकरण और रिटर्न दाखिल करने का ट्रायल वर्जन भी बनाया जाना चाहिए था। इससे कंप्यूटर पर तंग हाथ वालों को भी यह सब करने की प्रेरणा मिलती सरकार का काम आसानी से होता सो अलग। सरकार को सिर्फ एक पोर्टल आईडी बताना होता और यह कहना होता कि आप जो कुछ भी करते हैं – उसके लिए जीएसटी पंजीकरण आवश्यक है कि नहीं यहां (इस लिंक पर) देखें और अगर आवश्यक है तो जल्दी से जल्दी पंजीकरण कराएं। आपको इस दैर से टैक्स देना होगा और इस हिसाब से रिटर्न दाखिल करना होगा। आदमी खुद तय करता कि उसे क्या करना है।

जीएसटी लागू होने के बाद मुझे लग रहा है कि मैं अपना काम कम और सरकार का काम ज्यादा करूंगा और उसके बदले अपने लिए कम, सरकार के लिए ज्यादा कमाने को मजबूर होउंगा। मैं यह जानना चाहता हूं कि यही काम मैं सिंगापुर, दुबई, हांग कांग से करने लगूं और अगर किसी को यह असंभव लगता हो तो सीमापार नेपाल के किसी गांव से कर ही सकता हूं। मेरे ग्राहक वही रहेंगे। ई मेल आईडी वही रहेगा और काम उसी से होना है। तब जीएसटी? कौन बताएगा?  कल से सरकारी एफएक्यू का पोस्टमार्टम।

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