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जीएसटी का सच (पार्ट 13 से 23 तक) : जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी

जीएसटी का सच (22) : सोसाइटी के रूप में अपना काम करना ‘सेवा’ है

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संजय कुमार सिंह
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कल आपने पढ़ा जीएसटी में जॉब वर्क आपूर्ति हो गई है। आज पढ़िए अपना काम खुद आपसी सहयोग से निशुल्क करना ‘सेवा’ है। सर्विस टैक्स के लिए इसे पहले ही सेवा मान लिया गया था। इसलिए इसे जीएसटी के तहत आना ही था। इस हिसाब से सहकारी और ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी – जीएसटी प्रावधानों के तहत आते हैं और अपने सदस्यों से पैसे लेकर उन्हें सेवा मुहैया कराने के बदले सदस्यों से 18 प्रतिशत और वसूलकर सरकार को देने के लिए मजबूर हैं। आप कह सकते हैं कि इस मजबूरी का नाम जीएसटी है। ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी में जहां सर्विस टैक्स लागू था वहां 15.55 प्रतिशत के हिसाब से वसूला जा रहा था पर जीएसटी लागू होते ही इसकी दर 18 प्रतिशत हो गई। इसके बावजूद सरकार ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि वृद्धि नहीं होगी। 2.45 प्रतिशत की वृद्धि शायद नगण्य हो पर 5000 प्रति सदस्य और 20 लाख रुपए प्रतिवर्ष से कम वाले सोसाइटी को छूट होने की बात भी कही गई थी। इस बारे में आगे। 

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सोसाइटी के काम में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और यह कारोबार भी नहीं है। सेवा भी नहीं है। सच पूछिए तो यह अपना काम है और लोग बारी-बारी से यह काम करने के लिए अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। पर सरकार को टैक्स चाहिए। सर्विस टैक्स पर विवाद था। मुकदमे चल रहे थे। कई सोसाइटियां नहीं दे रही थीं पर जीएसटी में जुर्माना और रिटर्न दाखिल करने के सख्त नियमों तथा भारी लेट फाइन आदि के कारण लोगों ने जीएसटी लेना-देना शुरू कर दिया है और इससे सोसाइटी में रहना दूसरों के मुकाबले 18 प्रतिशत महंगा हो गया है। बगैर किसी खास अंतर के। सोसाइटी के जो पदाधिकारी अपना समय लगाकर दूसरे सदस्यों की सेवा करते हैं उन्हें सरकार ने टैक्स वसूलने और जमा करने का भार भी दे दिया है। मुफ्त में, जुर्माना ऊपर से।

इसे ऐसे देखिए कि जो बूढ़े, बुजुर्ग, रिटायर बचत के ब्याज और पेंशन से खर्चा चलाते हैं उनकी आय या तो निश्चित है या ब्याज के मामले में कम हो गई है। पर खर्च अचानक बढ़ गया है। कहने के लिए इसमें 20 लाख रुपए वार्षिक या 5000 रुपए प्रति सदस्य प्रति माह से कम लेने वालों को छूट या मुक्ति है। पर सच यह है कि सिर्फ 84 फ्लैट के एक छोटे से अपार्टमेंट का सालाना खर्चा 20 लाख रुपए से ऊपर है। इसी तरह दक्षिण दिल्ली के किसी एक प्लॉट पर तीन मंजिल में बने तीन फ्लैट में रहने वाले परिवार अगर 24 घंटे सुरक्षा के लिए तीन शिफ्ट में काम करने के लिए सिर्फ तीन गार्ड रखें तो प्रति सदस्य प्रति माह 5000 रुपए से ज्यादा देंगे। ऐसे में स्पष्ट है कि 5,000 रुपए प्रति सदस्य, प्रति माह और 20 लाख प्रति वर्ष तक खर्च वाली सोसाइटी को छूट का कोई खास मतलब नहीं है। जीएसटी से शायद ही कोई सोसाइटी बचें। और फिर जीएसटी के हिसाब रखना चुनाव से चुने जाने वाले कोषाध्यक्ष के वश का नहीं होगा तो हरेक सोसाइटी को अकाउंटैंट और चाटर्टर्ड अकाउंटैंट की सेवाएं लेनी ही होंगी। सोसाइटी का खर्च इस मद में भी बढ़ेगा। कुछ लोगों को उम्मीद है कि प्रति सदस्य 5000 रुपए से कम बिल हो तो वे जीएसटी से बच जाएंगे पर 20 लाख रुपए प्रतिवर्ष के टर्नओवर में ठीक-ठाक कही जा सकने वाली सभी सोसाइटियां आ जाएंगी। जहां जेनरेटर और लिफ्ट न हों उनकी बात अलग है। पर वहां काम भी क्या होता होगा। 

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दूसरी ओर, जीएसटी पंजीकरण के बाद सोसाइटी को रीवर्स चार्ज व्यवस्था के तहत गैरपंजीकृत सेवा प्रदाताओं से प्राप्त सेवाओं और खरीद पर टैक्स भी देना होगा। नई व्यवस्था में नगर निगम द्वारा वसूले जाने वाले संपत्ति कर को खत्म नहीं किया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि जबरदस्ती के इस बोझ के बदले जो वाजिब रियायत मिलनी चाहिए थी वह भी नहीं दी गई है। कहने को सरकार ने कहा है कि जीएसटी लागू होने से सोसाइटी जो जेनरेटर लिफ्ट आदि जैसी बड़ी खरीदारी करेगी उसे रीवर्स चार्ज व्यवस्था में एडजस्ट किया जा सकेगा। पर यह मुश्किल है। क्योंकि ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी के मामले में यह खरीदारी एक साथ, एक बार होती है और बिल्डर के फ्लैट में बिल्डर इसपर छूट ले चुका होगा। भविष्य में संभव है यह सब विवाद का मुद्दा भी बनेगा।

इसके आगे का पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें….

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