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जीएसटी का सच (पार्ट 13 से 23 तक) : जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी

जीएसटी का सच (20) : अकाउंटैंट का काम जरूर बढ़ा है पर कितने दिन?

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संजय कुमार सिंह
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मैं शुरू से कह रहा हूं कि जीएसटी स्वतंत्र रूप से काम करने वाले पेशेवरों को अकाउंटैंट की सेवाएं लेने के लिए मजबूर कर रहा है और यह पेशेवरों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ है। जो ज्यादा कमाता है या कमाना चाहता है उसके लिए यह और ज्यादा कमाने का प्रोत्साहन भी हो सकता है। पर कोई जरूरत भर कमा कर शांति से जी रहा हो तो उसपर यह बोझ क्यों डालना? कल मैंने एक पाठक के कमेंट की चर्चा की थी जो पेशे से अकाउंटैंट हैं और उनकी बात से स्पष्ट है कि जीएसटी लागू होने से अकाउंटैंट की बन आई है। लोगों की मजबूरी है कि पूर्णकालिक या अंशकालिक अकाउंटैंट की सेवा लें। और अगर कंप्यूटर पर उपलब्ध डाटा से रिटर्न दाखिल करने के ही पैसे मिलें तो इसे खराब कौन कहेगा। इसलिए, इसमें शक नहीं है कि कुछ लोग जीएसटी से खुश हैं।

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आज मैं इसी पर बात करना चाहता हूं। मैं पहले लिख चुका हूं अकाउंट का काम करने और एक खास सॉफ्टवेयर पर काम कर सकने वाले लोग आपके घर या ऑफिस आकर काम करने के 6,000 रुपए रोज (यह आना-जाना ही है, कुल काम आठ घंटे का भी नहीं है) जीएसटी से पहले लेते थे। जीएसटी में जो काम और मुश्किलें बढ़ी हैं उसमें इसके 10-12,000 रुपए महीने (एक बार आने और अपने ब्रॉडबैंड लैपटॉप से आवश्यक रिटर्न फाइल करने के) जायज हैं। यह व्यक्ति रोज आठ-दस घंटे काम करने के लिए तैयार हो तो कम से कम 10 ग्राहकों के लिए आराम से काम कर सकता है और चूंकि काम की प्रकृति ऐसी है कि उसे ग्राहक के पास जाना ही पड़ेगा। वह यह पैसा नकद लेकर कोई टैक्स न दे यह भी संभव है। ऐसे लोग जीएसटी की तारीफ क्यों न करें।

इसमें कोई शक नहीं है कि देश में कंप्यूटर आने और उसपर कई तरह के काम करना संभव होने के बाद से कई तरह के काम अब बहुत आसान हो गए हैं और जो काम पहले कई लोग मिलकर कई-कई घंटे में करते थे वह अब चुटकी बजाकर किया जा सकता है। इसमें न जाने कितने लोग बेरोजगार हुए पर कुछ नए लोगों को जरूर काम मिला है। इसलिए जिनकी नौकरी गई उसपर शोर नहीं मचा और ऐसे पुराने लोगों ने अपना काम कंप्यूटर से करना सीख लिया तो कहीं ना कहीं खप भी गए। पर आने वाला समय मुश्किल होने वाला है। कई-कई लोगों के काम अब मशीनें आराम से कर ले रही हैं और ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं है कि कम पढ़े लिखे लोग (छोटे-मोटे दुकानदार भी) आराम से कंप्यूटर पर काम कर सकेंगे और जीएसटी रीटर्न भी फाइल कर लेंगे।

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कहने की जरूरत नहीं है कि अभी अकाउंटेंट का काम बढ़ने से जो लोग खुश हैं वो सब बेरोजगार हो जाएंगे। लगभग एक झटके में। यह कोई मुश्किल नहीं है और मैंने कंप्यूटर के जो करामात देखे हैं उसके मद्देनजर यह बहुत जल्दी और आसानी से संभव है। इसलिए, मेरा कहना है कि सरकार को कोई भी काम सोच समझकर, योजना बनाकर, भविष्य की जरूरतों और संभावनाओं का ख्याल रखते हुए करना चाहिए। अभी तो सरकार ने जल्दबाजी में, जबरदस्ती, जीएसटी को लागू कर दिया है। उसका जमकर विरोध हो रहा है पर जो लोग अभी समर्थन कर करे हैं, कब तक करते रहेंगे। और सरकार ने ना तो ऐसी कोशिश की है और ना यह संभव है कि इन्हें लगातार समर्थक बनाए रखा जाए। एक सॉफ्टवेयर सबको बेरोजगार कर सकता है। और फिर कैरियर के बीच में ये लोग कहां जाएंगे, क्या करेंगे। ये कौन सोंचेगा? उन्हें तो समझ नहीं है, पर सरकार?

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