जीएसटी का सच (21) : जॉब वर्क को ‘आपूर्ति’ मान लिया गया
संजय कुमार सिंह
sanjaya_singh@hotmail.com
जीएसटी को अभी तक मैंने जितना जाना है उसमें दो चीजें दिलचस्प मिली हैं। पहला जॉब वर्क को आपूर्ति माना जाना और दूसरा अपना काम खुद आपसी सहयोग से करने वाली सोसाइटी की सेवा को सेवा मान लेना और इनपर भी सर्विस टैक्स ठोंक देना। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने जीएसटी से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के जो जवाब दिए हैं उसके मुताबिक जॉब वर्क की परिभाषा अधिसूचना संख्या 214/86-सीई दिनांक 23.03.1986 में दी गई परिभाषा से अधिक व्यापक है। इस परिभाषा के मुताबिक, जॉब वर्क का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे पंजीकृत कराधीन व्यक्ति के सामान/माल पर कोई अन्य शोधन या प्रसंस्करण करने का दायित्व लेना। वह व्यक्ति जो दूसरे व्यक्ति के माल का शोधन या प्रसंस्करण करता है, उसे जॉब वर्कर कहा जाता है और वह व्यक्ति जिससे माल मूल रूप से संबंधित है, उसे प्रधान, प्रमुख या प्रिंसिपल कहते हैं।
जॉब वर्क के बारे में मेरी समझ एक वास्तविक अनुभव से है। बचपन में कभी बैंक गया था तो देखा कि वहां एक आदमी सुई जैसी बड़ी चीज (बाद में पता चला उसे सुआ कहा जाता है) और हथौड़ी आदि की सहायता से बैंकों में रोज काम आने वाले चेक, पर्चियां आदि सिलकर कवर लगाकर रखने का काम कर रहा था। बाद में पता चला इसे बाइंडिंग कहते हैं। बैंक में ये बंडल तारीख के साथ लिखकर रखे भी दिखे। यह बैंकों में कंप्यूटर आने से पहले की बात है और तब बैंकों में ऐसा दृश्य आम होता था। तब बताया गया था कि वह बैंक का जॉब वर्क है और चूंकि वह आदमी एक कोने में जमीन पर बैठकर काम कर रहा था इसलिए बताया गया था जो बाद में समझ में आया कि बैंक जॉब वर्क कराने के लिए उस व्यक्ति की सेवा आउटसोर्स करता है। जाहिर है, बैंक की एक शाखा के काम के लिहाज से बाइंडिग का यह जॉब वर्क कितना मामूली था। अब इसे किसी कंपनी में तैयार मोबाइल फोन को डिब्बे में पैक करना मान लीजिए। यह भी जॉब वर्क है। इस साधारण से काम पर जीएसटी लगेगा और यह तमाम नियमों के तहत है और खास परिस्थितियों में जॉब वर्क को आपूर्ति माना जाएगा।
वैसे तो 20 लाख रुपए प्रतिवर्ष के कारोबार को यहां भी जीएसटी से छूट है लेकिन जीएसटी ने जॉबवर्क के लिए भेजे गए सामान की परिभाषा बदल दी है। खास स्थिति में इसे आपूर्ति माना जाएगा। कोई प्रिंसिपल, किसी निर्माता, किसी जॉब वर्कर से अपना काम कराने के लिए उसे सामान भेज सकता है। इसमें शुरुआती, बीच की कोई प्रक्रिया, असेम्बली, पैकिंग या ऐसा ही कोई और काम शामिल है। काम करने के बाद इसे निर्माता की ओर से ग्राहक को भेजा जा सकता है या फिर आगे की किसी और प्रक्रिया (या जॉब वर्क) के लिए किसी और को भेजा जा सकता है। जॉब वर्क के लिए भेजा जाने वाला सामान कच्चा माल, कोई पुर्जा, आधा तैयार सामान या तैयार सामान भी हो सकता है। तैयार होने के बाद सामान की खासियतें वही रह सकती हैं या बदल भी सकती हैं। पर सरकार को इसपर जीएसटी भी चाहिए। दो लोगों के बीच सुविधा और जरूरत के अनुसार किए जाने वाले काम तथा उसके भुगतान में सरकार भी घुस गई है। तय कर दिया है कि जॉब वर्क के लिए भेजा गया सामान कब वापस आना है। ऐसे सामान को तीन श्रेणी में बांटा गया है। यही नहीं, अगर ये सामान समय पर वापस नहीं आए तो सरकार इन्हें काम कराने वाले द्वारा काम करने वाले को की गई सप्लाई मान लेगी। इससे उस सामान पर टैक्स बढ़ जाएगा।
सामान भेजने वाला (प्रिंसिपल) अपनी जरूरत के अनुसार काम करा सकता है। जॉब वर्क के दौरान जो सामान बेकार होगा या रद्दी निकलेगी उसे बेचा जा सकता है और इसपर भी टैक्स चुकाना होगा। अगर जॉब वर्क करने वाला पंजीकृत हुआ तो टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी उसकी होगी। नहीं तो टैक्स सामान भेजने वाला चुकाएगा। सरकार को दोनों स्थितियों में टैक्स चाहिए। यही नहीं, अगर सामान जॉब वर्क करने वाले के पास पड़ा रह जाए तो टैक्स नहीं देना होगा पर उसमें भी शर्तें हैं। जो सामान पड़ा रह गया है उसकी घोषणा जॉब वर्क करने वाले को करनी होगी और उसका भी निर्दिष्ट फॉर्म और तरीका है। सामान बनाकर भेजना हो तो टैक्स देना ही होगा। निर्यात के मामले में यह यह तय तारीख से छह महीने के अंदर (इसे दो महीने से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता है)। यही नहीं, अगर पड़े हुए सामान को छह महीने या बढ़ाई गई अवधि के अंदर वापस नहीं किया गया तो इनपुट टैक्स का जो लाभ लिया गया होगा उसकी वसूली होगी।
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