जीएसटी का सच (14) : जीएसटी का झुनझुना कंपोजिट स्कीम
संजय कुमार सिंह
sanjaya_singh@hotmail.com
जीएसटी का झुनझुना इसकी कंपोजिट स्कीम है। सबसे ज्यादा चर्चा इसी की है। मुझसे कई लोगों ने इसका लाभ लेने की सिफारिश की पर यह मेरे काम की नहीं है। दरअसल इसे इतना आकर्षक बना कर पेश किया गया है कि हर कोई इसे जीएसटी की बीमारी दूर करने की अचूक दवा बता रहा है। सच्चाई यह है कि, यह बहुत राहत नहीं देती है और जो राहत देती है उसके बदले ग्राहकों से टैक्स वसूले बगैर कुल कारोबार का एक से लेकर ढाई प्रतिशत टैक्स जमा कराने की शर्त लगाती है। अगर कारोबारी टैक्स वसूलेगा नहीं तो जाहिर है, अपने मुनाफे से देगा। फिर यह अच्छा कैसे हुआ। यही नहीं, इसे अच्छा बनाने के लिए 50 लाख रुपए वार्षिक के कारोबार की मौजूदा सीमा को एक करोड़ रुपए कर दिए जाने की संभावना बताई जा रही है। यानी अगर कहीं और किसी कारण से छूट भी है तो इस अच्छी स्कीम का लाभ उठाने के लिए जीएसटी पंजीकरण करा लीजिए, सरकार को अपने कारोबार का एक निश्चित प्रतिशत अपने मुनाफे से दीजिए और निश्चिंत रहिए। यह सरकारी जबरदस्ती है।
यही नहीं, जीएसटी की खासियत है कि वह टैक्स किसी ना किसी से ले ही लेगा। जीएसटी के पक्ष में प्रचार यह किया गया है कि पहले एक ही वस्तु पर कई बार टैक्स लग जाता था, अब एक ही बार लगेगा। जोर-शोर से यह प्रचार किया गया कि अगर आपने एक बार टैक्स दे दिया तो अगली बार उसे क्लेम कर सकेंगे। ठीक है। पर क्लेम करना आसान नहीं है और कितने लोग इसका लाभ उठा पाएंगे। दूसरे, जिन सेवाओं पर टैक्स नहीं लगता था उनपर भी जीएसटी लगा दिया गया है। अब आप रेल टिकट कटाते हैं तो जीएसटी रीफंड क्लेम कर सकते हैं। बशर्ते आप कारोबार के लिए यात्रा कर रहे हों। अव्वल तो यह सब छोटे-छोटे रीफंड कौन क्लेम करे और कौन हिसाब रखे। आम आदमी या छोटे-मोटे पेशेवरों, कारोबारियों के लिए यह वैसे ही मुश्किल है और अगर आपने टैक्स क्लेम कर लिया औऱ किसी की शादी में भी चले गए तो शादी का वीडियो इस बात का सबूत रहेगा कि आपने टैक्स रीफंड क्लेम किया कि कारोबार के काम से यात्रा करने गए थे पर यह रहा शादी में शामिल होने का सबूत। अब देते रहिए सफाई (या रिश्वत)।
यहां एक कहानी याद आती है। केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रिय, देश के 11वें नियंत्रक और लेखा परीक्षक वीएन राय ने कांग्रेस के बहुत सारे “घोटालों” की जानकारी सार्वजनिक की थी और विपक्ष में रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने इन तथ्यों का उपयोग कांग्रेस की छवि खराब करने के लिए खुल कर किया। दूसरी ओर, इससे श्री राय की छवि एक बेहद ईमानदार ऑफिसर की बनी और रिटायर होने पर सरकार ने श्री राय को बैंक्स बोर्ड ब्यूरो का चेयरमैन बना दिया था। बाद में उन्होंने सरकारी पैसे से अधिकारियों की विदेश यात्रा का बचाव किया और यह स्वीकार किया कि, “…. एक सहकर्मी की बेटी की शादी में जाने के लिए विमान के टिकट पर पैसे नहीं खर्च सकता था …. जब नौकरी में था तो निश्चित रूप से नहीं…. मैंने वहां एक ड्यूटी तैयार की और चला गया। शादी में भी शामिल हो लिया और आप मेरे यात्रा भत्ता बिल को देखने में समय खराब कर रहे हैं।”
जीएसटी की एक और खासियत है। अगर आपने किसी गैरपंजीकृत सेवा प्रदाता से सेवा ली तो जाहिर है वह टैक्स ना लेगा ना जमा कराएगा। पर यही होता था और गैर पंजीकृत या छोटे विक्रेताओं, सेवा प्रदाताओं से सेवा सस्ती पड़ती थी। पर अब यह जिम्मेदारी सेवा लेने वाले पर डाल दी गई है कि वह जीएसटी अपने पास से जमा कराए (और रीफंड बने तो क्लेम कर ले)। आप समझ सकते हैं कि यह सब कितना अव्यावहारिक औऱ झंझट वाला है। दूसरी ओर, जीएसटी के बाद शायद ही कोई उत्पाद या सेवा हो जिसपर एक बार टैक्स न लगे।
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