जीएसटी का सच (23) : सोसाइटी की विशेष स्थिति और कंपोजिशन स्कीम
संजय कुमार सिंह
sanjaya_singh@hotmail.com
कल मैंने लिखा था कि सोसाइटी को जीएसटी के दायरे में लाना जबरदस्ती है। बगैर लिफ्ट और जेनरेटर वाली सोसाइटी भले जीएसटी से बच जाएं बाकी को पंजीकरण कराना ही पड़ेगा। पंजीकरण कराते ही 18 प्रतिशत जीएसटी लगना शुरू हो जाएगा जबकि सोसाइटी के जो मोटे खर्चे हैं उसमें कर्मचारियों के वेतन, जेनरेटर के लिए डीजल, कॉमन जगहों के लिए बिजली का बिल आदि जीएसटी से मुक्त हैं। इसलिए सोसाइटी को जीएसटी के रीवर्स चार्ज मेकैनिज्म (आरसीएम) से कुछ नहीं मिलना है। हालांकि, इस व्यवस्था के बहाने यह बताने की कोशिश की जाती है कि जीएसटी में टैक्स एक ही बार लगेगा और आप जो टैक्स दे देंगे वह फालतू हो तो वापस एडजस्ट भी किया जा सकता है आदि। सोसाइटी के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। सोसाइटी के सदस्य जेनरेटर, पानी के पंप, कर्मचारियों (बिजली मिस्त्री, प्लंबर आदि) और सुरक्षा गार्ड के लिए जो पैसे देते हैं उसपर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा पर वापस कहां होगा? इसकी संभावना नहीं के बराबर है। इसलिए, मुझे लगता है कि सोसाइटी के मामले में कंपोजिशन स्कीम उपयोगी रहेगी।
जीएसटी लागू होने के बाद अभी मोटा-मोटी स्थिति यह है कि जीएसटी पंजीकरण कराना जरूरी है। कारोबारियों और पेशेवरों के लिए ही नहीं, ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी और आरडब्ल्यूए या उत्तर प्रदेश के अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के लिए भी। अभी तक मैंने इसे जितना समझा है उसमें मुझे लग रहा है कि आरडब्ल्यूए – जो कारोबारी संस्था नहीं है और जिसके ज्यादातर खर्चों पर जीएसटी नहीं लगता है और प्रतिमाह सदस्यों के योगदान में आनुपातिक जीएसटी इतना कम होता है कि प्राप्त की जाने वाली सेवाओं पर चुकाए गए जीएसटी की वसूली और उसका हिसाब रखना ज्यादा मुश्किल होगा। दूसरे, आरडब्ल्यूए अपने सदस्यों से पैसे लेकर सेवा या जीएसटी का भुगतान करेगा। इसलिए वह जीएसटी के सामान्य पंजीकरण के तहत 18 प्रतिशत टैक्स ले और फिर वापस लेने और सदस्यों को वापस करने के झंझट में फंसे उससे बेहतर होगा कि कंपोजिशन स्कीम में पंजीकरण करा ले। मैं पहले लिख चुका हूं कि कंपोजिशन स्कीम में पंजीकरण कराने वाले अपने ग्राहकों से टैक्स नहीं वसूल सकते हैं और उन्हें अपने कुल कारोबार का एक निश्चित प्रतिशत (कम से कम एक औऱ शायद अधिकतम 2.5 प्रतिशत) जीएसटी के रूप में सरकार को देना ही है। कुछ मामलों में कारोबारियों के पंजीकरण कराने के बाद ग्राहक उनसे कह रहे हैं कि वे 18 या जो भी सामान्य दर है, लें और वे रीवर्स चार्ज व्यवस्था के तहत वापस प्राप्त कर लेंगे। पर वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। इस मामले में अभी भ्रम और विवाद है। लेकिन आरडब्ल्यूए के लिए यह स्थिति मुझे ठीक लग रही है।
हालांकि, जीएसटी की खासियत है कि राहत वाली बातें जिसे राहत दे सकती हैं उसपर लागू नहीं होती हैं और जिस तरह आरडब्ल्यूए के लिए 5000 रुपए प्रति सदस्य और 20 लाख रुपए प्रति वर्ष के लेन-देन की सीमा ज्यादातर मामलों में निर्रथक है वैसे ही मुमकिन है, कंपोजिट स्कीम आरडब्ल्यूए के लिए हो ही नहीं। क्योंकि अभी वह 18 प्रतिशत जीएसटी जमा करवाकर वापस नहीं ले सकता है और तब एक या ढाई प्रतिशत जीएसटी ही लगेगा। अभी 50 लाख रुपए तक के कारोबार (आरडब्ल्यूए का पता नहीं) जीएसटी से मुक्त हैं और इसे एक करोड़ रुपए कर दिए जाने की चर्चा है। यह कारोबारियों के लिए है पर सेवा प्रदाताओं के लिए नहीं है और इसमें रेस्त्रां की सेवा को मुक्त रखा गया है। इस बारे में आपको कुछ समझ में आए तो मुझे बताइए और मुझे समझ में आया तो फिर कभी चर्चा करूंगा।
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जीएसटी से बेरोजगारी की कगार पर खड़े एक पत्रकार की डायरी : जीएसटी का सच (पार्ट 1 से 12 तक)
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पूरे मामले को समझने के लिए इसे जरूर पढ़ें….