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हथकड़ी पहनाए गए पत्रकार को मिला दो लाख रुपए मुआवजा

शासन से अंतरिम राहत के रूप में मिला है मुआवजा, एनएचआरसी के आदेश पर यूपी सरकार ने दिया मुआवजा, सपा सरकार में पुलिस ने पत्रकार को झूठे मुकदमे में भेज दिया था जेल

एटा: जैथरा निवासी पत्रकार सुनील कुमार ने झूठे मुकदमे में अवैधानिक गिरफ्तारी एवं हथकड़ी लगाकर जेल भेजने के विरुद्ध आवाज उठाई। एनएचआरसी में 6 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सफलता हासिल की। आयोग ने न सिर्फ उनकी दलीलों को स्वीकार किया, अपितु मानवाधिकार हनन पर प्रदेश सरकार को मुआवजा देने का भी आदेश दिया।

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राज्यपाल की स्वीकृति के बाद शासन ने पीड़ित पत्रकार को दो लाख मुआवजा प्रदान कर भुगतान के साक्ष्य उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं।एसएसपी ने मुआवजा की कार्यवाही शीघ्र पूर्ण कराकर पीड़ित के खाते में ट्रेजरी से भुगतान करा दिया है। पीड़ित को उक्त राशि अंतरिम राहत के रूप में प्रदान की है। प्रदेश में इस तरह का ये पहला मामला है।

बता दें, जैथरा के तत्कालीन थानाध्यक्ष कैलाश चन्द्र दुबे ने 22 जून 2016 की कथित छेड़खानी की घटना में कस्बा जैथरा के मोहल्ला नेहरू नगर निवासी पत्रकार सुनील कुमार को साजिश के तहत झूठा फंसाते हुए 23 जून को अवैधानिक तरीके से गिरफ्तार कराकर अगले दिन 24 जून को हथकड़ी में ले जाकर जेल भेज दिया था।

जेल से छूटने के बाद पीड़ित ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली में पूरे प्रकरण की शिकायत करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की थी। साथ ही हथकड़ी लगाकर ले जाने को गरिमामय जीवन जीने के अधिकार के हनन पर मुआवजा की मांग उठाई। आयोग ने तत्समय एसएसपी, एटा को नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की। पुलिस की रिपोर्ट के बाद आयोग ने पूरे प्रकरण की जांच अपनी टीम से कराई।

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पीड़ित पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के कई महत्वपूर्ण आदेशों के साथ दलील देकर पुलिस के कृत्य को संवैधानिक एवं मानवाधिकार के प्रतिकूल बताया। छह साल चली लंबी जांच के बाद आयोग ने जिले के तत्कालीन एसएसपी अजयशंकर राय, उस समय जैथरा में तैनात रहे थानाध्यक्ष कैलाश चंद्र दुबे, विवेचक मदन मुरारी द्विवेदी को दोषी पाते हुए सम्बन्धितों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए डीजीपी आदेश दिया। साथ ही, प्रदेश के मुख्य सचिव को पीड़ित पत्रकार को दो लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया था।

राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद शासन ने एसएसपी को मुआवजा राशि का बजट भेजते हुए पीड़ित पत्रकार को 10 दिवस में मुआवजा राशि का भुगतान कर, साक्ष्य उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उदय शंकर सिंह ने 22 मार्च को पीड़ित के खाते में दो लाख रुपये की राशि का ट्रेजरी से भुगतान करा दिया है।

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आयोग ने मुख्य सचिव की तलबी को भेजा था सशर्त समन

आदेश एवं रिमाइंडर के बाद भी पीड़ित पत्रकार को मुआवजा राशि का भुगतना न करने से खफा आयोग ने 29 दिसम्बर को सशर्त समन जारी कर प्रदेश के मुख्य सचिव को अग्रिम तिथि 4 अप्रेल, 2022 को पूर्वाह्न 11 बजे आयोग के समक्ष उपस्थित होकर पीड़ित को मुआवजा प्रदान करने का साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। यदि नियत तिथि से एक सप्ताह पूर्व आयोग को आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट प्राप्त हो जाती है, तो मुख्य सचिव को व्यक्तिगत पेशी से छूट होगी। व्यक्तिगत तलबी को नियत तिथि से पूर्व ही एसएसपी ने मुआवजा राशि का भुगतान करा दिया है।

दोषी पुलिसकर्मियों से होगी मुआवजा राशि की वसूली

पीड़ित पत्रकार को प्रदान की गई मुआवजा राशि की भरपाई शासन दोषी पुलिसकर्मियों के वेतन से करेगा। इसके शासन ने एसएसपी को आदेश दे दिए हैं।

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पत्रकार की रिहाई को प्रदेशभर में हुआ था आंदोलन

इस घटना के बाद निर्दोष पत्रकार की रिहाई के लिए प्रदेशभर में जगह-जगह पत्रकारों ने प्रदर्शन किए थे। अधिकारियों को ज्ञापन सौंप कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही मांग उठाई थी। एटा जनपद मुख्यालय पर जिलेभर के पत्रकारों ने प्रदर्शन कर तत्कालीन एसओ का पुतला तक फूंका था।

भाजपा सांसद ने किया था पैदल मार्च

निर्दोष पत्रकार की रिहाई के लिए साथी पत्रकारों के साथ-साथ जिले की जनता ने भी सड़क पर उतर कर न्याय के लिए आवाज बुलंद करते हुए पैदल मार्च निकाला था। भाजपा सांसद मुकेश राजपूत, वर्तमान भजपा विधायक सत्यपाल सिंह राठौर ने सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ पैदल मार्च कर पत्रकार के साथ न्याय को आवाज उठाई थी। वहीं कांग्रेस पार्टी ने ज्ञापन सौंपकर पत्रकार को झूठे मुकदमे में फंसाने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही मांग उठाई।

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एएसपी कासगंज की जांच में भी हुई थी अवैध गिरफ्तारी एवं हथकड़ी की पुष्टि

पीड़ित पत्रकार सुनील कुमार ने आयोग के साथ-साथ शासन में अपने हक की लड़ाई लड़ी। हुआ यूं कि पीड़ित द्वारा तत्समय की गईं शिकायतों पर जिले के पुलिस अधिकारी गुमराहात्मक आख्या भेजते रहे। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जब एडीजी कानून- व्यवस्था ने इस प्रकरण की जांच गैर जनपद कासगंज के तत्कालीन एएसपी डा. पवित्र मोहन त्रिपाठी से कराई, तो उनकी जांच में पीड़ित द्वारा लगाए गए आरोपों की स्पष्ट पुष्टि हुई।

प्रकरण में एसएसपी सहित फंस चुके हैं 6 पुलिसकर्मी

पत्रकार को झूठे मुकदमे में फंसाने के मामले में अब तक कई पुलिसकर्मी फंस चुके हैं। जिले के तत्कालीन एसएसपी, एसओ व विवेचक पर आयोग कार्यवाही के आदेश दे चुका है। वहीं एसएसपी स्तर से एक हैड मोहर्रिर सहित तीन पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही की जा चुकी है।

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