Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

धर्मपथ से राजपथ पर हठयोगी

पंचूर से गोरक्षपीठ तक का सफर अजय कुमार विष्ट का योगी आदित्यनाथ में कायांतर और परिवर्तन का सफर है। एक गृहस्थोन्मुख जीवन का, संन्यासी जीवन पथ का वरण, और इस वरण के साथ ही, जीवन की कठोरतम और असाध्य जीवन शैली और साधना पद्धति का भी वरण। नाथ पंथियों के आदि अराध्य गुरू शिव और उनकी शिष्य परंपरा में मत्स्येंद्रनाथ और गुरू गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) सरीखे महायोगी हुए हैं। जिन्होंने अपने तप,जप,योग और हठयोग की कठोर साधना से जीवन के यथार्थ और गूढ़ता के मर्म को समझा है, और जीवन के उद्देश्य व उसके सारभूत तत्वों की विशद मीमांसा की है। गुरू गोरखनाथ से गोरक्षपीठ, गोरखपुर जिला और इसी परंपरा से जुडा नेपाल का गोरखा जिला, देश और दुनिया के नाथपंथियों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। शस्त्र और शास्त्र में निपुण संतों की यह परंपरा मानव जन्म और मृत्यु ही नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रहमाण्ड के शाश्वत सत्य और तत्वज्ञान के गहरे रहस्यों का भी भेद किया है।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p>पंचूर से गोरक्षपीठ तक का सफर अजय कुमार विष्ट का योगी आदित्यनाथ में कायांतर और परिवर्तन का सफर है। एक गृहस्थोन्मुख जीवन का, संन्यासी जीवन पथ का वरण, और इस वरण के साथ ही, जीवन की कठोरतम और असाध्य जीवन शैली और साधना पद्धति का भी वरण। नाथ पंथियों के आदि अराध्य गुरू शिव और उनकी शिष्य परंपरा में मत्स्येंद्रनाथ और गुरू गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) सरीखे महायोगी हुए हैं। जिन्होंने अपने तप,जप,योग और हठयोग की कठोर साधना से जीवन के यथार्थ और गूढ़ता के मर्म को समझा है, और जीवन के उद्देश्य व उसके सारभूत तत्वों की विशद मीमांसा की है। गुरू गोरखनाथ से गोरक्षपीठ, गोरखपुर जिला और इसी परंपरा से जुडा नेपाल का गोरखा जिला, देश और दुनिया के नाथपंथियों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। शस्त्र और शास्त्र में निपुण संतों की यह परंपरा मानव जन्म और मृत्यु ही नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रहमाण्ड के शाश्वत सत्य और तत्वज्ञान के गहरे रहस्यों का भी भेद किया है।</p>

पंचूर से गोरक्षपीठ तक का सफर अजय कुमार विष्ट का योगी आदित्यनाथ में कायांतर और परिवर्तन का सफर है। एक गृहस्थोन्मुख जीवन का, संन्यासी जीवन पथ का वरण, और इस वरण के साथ ही, जीवन की कठोरतम और असाध्य जीवन शैली और साधना पद्धति का भी वरण। नाथ पंथियों के आदि अराध्य गुरू शिव और उनकी शिष्य परंपरा में मत्स्येंद्रनाथ और गुरू गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) सरीखे महायोगी हुए हैं। जिन्होंने अपने तप,जप,योग और हठयोग की कठोर साधना से जीवन के यथार्थ और गूढ़ता के मर्म को समझा है, और जीवन के उद्देश्य व उसके सारभूत तत्वों की विशद मीमांसा की है। गुरू गोरखनाथ से गोरक्षपीठ, गोरखपुर जिला और इसी परंपरा से जुडा नेपाल का गोरखा जिला, देश और दुनिया के नाथपंथियों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। शस्त्र और शास्त्र में निपुण संतों की यह परंपरा मानव जन्म और मृत्यु ही नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रहमाण्ड के शाश्वत सत्य और तत्वज्ञान के गहरे रहस्यों का भी भेद किया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कहा जाता है कि राजनीति दीर्घकालिक धर्म है, और धर्म अल्पकालिक राजनीति। जिस देश में राजनीति और धर्म का चोली दामन का संबंध रहा हो। जहां मठों, मंदिरों और अखाड़ों से देश और राज्यों की नीति पोषित और प्रभावित होती रही है, कभी उसी राजनीति ने इन धार्मिक प्रतिष्ठानों के धर्मक्षेत्र को भी प्रभावित किया है। अर्थात् आदिम काल से ही धर्म और राजनीति का गहरा अंतर्संबंध रहा है। और दोनों संस्थाएं एक दूसरे को हमेशा से नियंत्रित और पोषित करती रहीं हैं।

समय की रेखा पर जैसे जैसे आदिम मनुष्य, सभ्यता की नई-नई कहानी लिखता गया, वह एक सभ्य और सुन्दर समाज का हिस्सा बनता गया। धर्म उसे जीवन जीने की कला, आचरण-व्यवहार का तरीका सिखाता गया और वह उससे दीक्षित होता गया। उसके धर्म का आचरण, सार्वजनिक न होकर निजी आचरण था। जो उसकी मान्यताओं और परम्पराओं ने उसे सिखाया था। यही कारण है कि धरती के किसी भी टुकड़े पर आबाद जिन्दगी, अपने पुरातन मान्यताओं, परम्पराओं और धर्म से ही नियंत्रित होती है। ‘धर्म’, जिसे धारण किया जा सके, जीवन में सुगमता और जन-कल्याण की भावना पैदा किया जा सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘सियासत’ भी एक धर्म है। जो राजा अपने राज्य की नीति के अनुरूप आचारण नहीं करता, वह धर्म का निर्वहन नहीं कर सकता है। धर्म और सियासत का अंतिम उद्देश्य जन-कल्याण ही होता। यही धर्म जब अपने रास्ते से भटक जाता है, तो समाज को दिशा नहीं दे पाता है, बल्कि स्वयं दिशाहीन हो जाता है। वहीं सियासत का लक्ष्य, जब जन-कल्याण से हटकर सत्ता को साध लेना, बना जाता है तो सियासत भी ‘जन’ से दूर हो जाती है और समाज को विनाश के रास्ते पर ले जाती है।

इस देश में मठों और मंदिरों की पुरातन परंपरा रही है। यहां आस्था इतनी, कि पत्थर भी पूजा जाता है। कृषि और ऋषि के देश में तक्षशिला और नालंदा जैसा विश्वविद्यालय हमारे ज्ञान-विज्ञान और धर्म के गौरवशाली परम्परा के जीवंत प्रतीक रहे हैं। चाणक्य जैसे विद्वान, जहाँ आचार्य (प्रोफेसर) थे, जिन्हें निजी धर्म से लेकर राजधर्म की परिभाषाएं और नीतियों का विराट अनुभव था। राजधर्म की स्थापना के लिए तो उन्होंने ‘नन्दवंश’ के साम्राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकी, और धर्म से राजनीति को नई दिशा दी थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विदेशी विद्वान मार्क्स ने जिस धर्म को अफीम का नशा कहा था, वह नशा आज भी जन की नसों में तैर रहा है, और उसके मानस को नियंत्रित व प्रभावित भी कर रहा है। यही कारण है कि आज भी, मठों से सियासत संचालित हो रही है और सियासत से मठ। ‘योगी’ जिस परंपरा से दीक्षित हैं, वहां हठयोग का विशेष महत्व है। योग से हठयोग की ओर बढ़ते योगी को नाथपंथ या गोरक्षपीठ की सदियों पुरानी मान्यताओं और धार्मिक परंपराओं के अनुसार दीक्षित और शिक्षित होना पडा है। भगवा भेष और कान में कुण्डल पहना संन्यासी जब गोरक्षपीठ का महन्त या पीठाधीश्वर बनता है, तो उसे सबसे पहले निज माया-मोह का त्याग और परिजनों का पिण्डदान करना पडता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

गोरक्षपीठ का सत्ता-सियासत के साथ कदम ताल मिलाने की पुरातन परंपरा रही है। योगी आदित्यनाथ को नई पहचान और नाम देने वाले उनके गुरूदेव और गोरक्षपीठ के पूर्व महन्त अवैद्यनाथ का भी सत्ता और सियासत से गहरा रिश्ता रहा है। स्वयं कभी भाजपा के शिखरपुरूष और सर्वमान्य नेता रहे अटल बिहारी बाजपेयी और नानाजी देशमुख से इस मठ के गहरे रिश्ते थें। पहली बार गोरखपुर लोकसभा सीट से ‘हिन्दूमहासभा’ के बैनर तले चुनकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुँचे अवैद्यनाथ कुल चार बार सांसद रहे, और इसी जनपद के मानीराम विधान सभा सीट से चार बार विधायक।

हिन्दुत्व और उसकी रहबरी की पुरातन प्रयोगशाला गोरक्षपीठ ने, रामजन्मभूमि मन्दिर आन्दोलन में जो महती भूमिका का निर्वहन किया था, वह अवैद्यनाथ के सियासी चढ़ान का टर्निंग प्वांइट था। ऊँच-नीच और छुआ-छूत जैसी हिन्दू धर्म की सामाजिक कुरीतियों को तोड़ने के लिए स्वयं अवैद्यनाथ ने कभी काशी के डोमराजा के घर भोग तक लगाया था। अवैद्यनाथ से पहले भी इस मठ के महंत दीग्विजय नाथ ने हिन्दू महासभा से जुड़कर हिन्दुत्व की पैरोकारी की और उसके विस्तार और संस्कार के लिए जीवन होम कर दिया। मेवाड़ के महाराणा प्रताप के कुलवंश के एक अबोध बालक से गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर तक का सफर दीग्विजय नाथ के त्याग और समाज के प्रति समर्पण का महान उदाहरण है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मठ की महान परंपराओं और हिन्दुत्व के संस्कारों से अभिसिंचित आदित्यनाथ ने जब गोरक्षपीठ के नये महाराज की जिम्मेदारी ली तो उनके पास मठ की परंपराओं और संघर्षों का एक लम्बा इतिहास और भूगोल था। साथ ही अवैद्यनाथ जैसा धार्मिक और सियासी अनुभव से पका हुआ गुरू महाराज। जिन्होंने एक बालक को सियासी और धार्मिक रूप से दीक्षित कर अपना उत्तराधिकारी बना दिया। यही कारण है कि सन्-1998 में भारतीय संसद में सबसे कम उम्र के सांसद के रूप में योगी आदित्यनाथ ने प्रवेश किया।

कट्टर हिन्दुत्व की छवि में ढला योगी का व्यक्तित्व कब गोरखपुर की सरहदों को पार कर समूचे पूर्वी अंचल में विस्तार ले लिया, यह स्वयं आदित्यनाथ को भी पता नहीं चला। और जब पता चला तो वह न केवल भाजपा के बड़े नेता बन चुके थे, बल्कि संघ के भी दुलारे हो चुके थे। जिनमें संघ कल का अपना नेता देख रहा था और है, जो उसके एजेंडे और सोच का, ना केवल विस्तार कर सकता है बल्कि उसकी दूरगामी सियासत और सामाजिक परियोजनाओं को भी, उसके (संघ के) सांचे में ढाल कर उत्तर प्रदेश की सियासी प्रयोगशाला की सरहदों से निकाल राष्ट्रीय फलक तक विस्तार दे सकता है। क्योंकि संघ अपनी सियासी संधान के लिए हमेशा नेतृत्व की नई नर्सरी तैयार करता है। और देश के सबसे बड़े सूबे में फिलहाल उसका प्रयोग सफल  है। उसका यह दिखना, कितना वास्तविक है, और कितना आभासी है । यह तो आने वाला वक़्त बताएगा। फिलहाल एक हठयोगी का राजयोग चल रहा है, और इस राजयोग में योगी नई लकीरें खींचते दिखाई दे रहें हैं। जो विपक्ष समेत भाजपा और इसके नये शिखरपुरूषों के लिए चिंता की नई लकीरे खींच रहा हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक अरविन्द कुमार सिंह शार्प रिपोर्टर मैग्जीन के संपादक हैं. उनसे संपर्क 09451827982 के जरिए किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement