यशवंत सिंह-
फोर्टिस बंधक प्रकरण से ये समझ में आया कि हर किसी को न्यूनतम मेडिकल हेल्थ कवर रखना चाहिए. हेल्थ एक ऐसा सब्जेक्ट है जिसके बारे में कोई पहले से धारणा नहीं बना सकता. पहले से कोई अंदाजा नहीं लगा सकता. आज ही अखबार में पढ़ रहा था कि पैंतालीस साल के एक बंगाली अभिनेता शूटिंग कर रहे थे, पेट में मरोड़ उठा, अस्पताल गए और मर गए. ऐसी खबरें सोचने को मजबूर करती हैं कि हम आखिर विकास के कैसे दौर में आ गए हैं कि जीवन का ही नहीं पता है. ऐसी खबरें ये भी बताती हैं कि हेल्थ बीमा कवर को लेकर हमें एलर्ट रहना चाहिए.
जो बेहद गरीब हैं उन्हें सरकार की जो भी स्वास्थ्य की योजनाएं हैं, उससे जुड़ना चाहिए. इसके लिए प्रयास करना चाहिए. वो योजनाएं कितनी कारगर हैं या नहीं हैं, ये अलग विषय है. अगर योजना में आप एनरोल हैं तो फिर नेक्स्ट लेवल की लड़ाई ये होगी कि आपको उस योजना का लाभ मिले. पर जब एनरोल ही नहीं हैं तो कैसे लड़ेंगे?
इसी तरह जो नौकरीपेशा हैं, जो कारोबारी हैं, वो अपने मासिक आय के एक छोटे से हिस्से को जरूर हेल्थ के लिए सेफ रखें. वे इसे मेडिकल बीमा के रूप में इनवेस्ट कर सकते हैं या फिर अलग से नगद रख सकते हैं बैंक में. ज्यादा बेहतर आप्शन मेडिकल हेल्थ कवर है.
दो साल तक लगातार मेडिकल हेल्थ कवर रखने से आप लगभग सभी बीमारियों के इलाज में क्लेम मांगने के हकदार हो सकते हैं.
तो सभी से कहना चाहूंगा कि भाइयों, बीमा कवर लें. बजट के हिसाब से लें. न्यूनतम वाला लें, पर लें जरूर. जिस दिन हमारे शासक इलाज को मूलभूत अधिकार में शामिल कर लेंगे और सारे निजी सरकार अस्पताल फ्री में इलाज करने के लिए आदेशित कर दिए जाएंगे, तब किसी हेल्थ बीमा की जरूरत नहीं रहेगी. पर ऐसे अच्छे दिन हमको तो नहीं लगता कि भारत में आने वाला है.
पर सैद्धांतिक रूप से मैं मानता हूं कि पढ़ाई और स्वास्थ्य, दोनों को मूलभूत अधिकार बनाया जाना चाहिए. इसके बगैर हम एक सभ्य समाज सभ्य देश की कल्पना नहीं कर सकते. सबको मुफ्त शिक्षा सबको मुफ्त इलाज. दो बेहद जरूरी मुद्दे हैं. पर जाति और धर्म की राजनीति से किसी को फुर्सत मिले तब तो सोचे.
संपर्क- [email protected]