Girish Malviya : तीन बैंकों के आपसी विलय की इतनी बड़ी खबर भी कल देश का सबसे बड़ा अखबार कहे जाने वाले दैनिक भास्कर के दूसरे फ्रंट पेज के छोटे से सिंगल कॉलम में सिमट गयी. यह दिखाता है कि देश मे हिंदी पत्रकारिता किस गर्त में जा रही है. बहरहाल कल मर्जर के इस फैसले से बैंक ऑफ बड़ौदा के शेयरो में गिरावट से निवेशकों को 6 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.
इकनॉमिक टाइम्स लिखता है कि जब सोमवार को तीनों बैंकों के टॉप एग्जिक्युटिव्स को मीटिंग के लिए दिल्ली बुलाया गया था, तो उन्हें इसका तनिक आभास नहीं था कि होने क्या जा रहा है। एक बैंक ने ईटी को बताया, ‘अगर हम पर और हमारे बोर्ड पर छोड़ दिया जाता तो हम बैंकों के इस कॉम्बिनेशन को पसंद नहीं करते। अब जब यह सरकार का फैसला है तो हमारे पास इसे मानने के सिवा कोई विकल्प नहीं है।’
अरुण जेटली कह रहे हैं कि इस विलय से बैंक के किसी कर्मचारी की नौकरी पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा लेकिन सच्चाई सभी को पता है. ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयीज असोसिएशन के महासचिव सी. एच. वेंकटचलम का कहना है कि विलय से बैंक शाखाएं बंद हुई हैं, बैड लोन बढ़े हैं, स्टाफ की संख्या में कटौती हुई और बिजनस भी घटा है। उन्होंने कहा, ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) 200 साल में पहली बार नुकसान में गया है।’ उन्होंने कहते हैं, ‘बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक और विजया बैंक का कुल फंसा हुआ कर्ज 80,000 करोड़ रुपये है। इनके विलय से इन फंसे कर्जों की वसूली नहीं हो जाएगी। दूसरी ओर, पूरा ध्यान विलय के मुद्दे पर चला जाएगा और यही सरकार का गेम प्लान है।’
सरकार के लिए कह देना आसान है लेकिन मानव संसाधन, सूचना व प्रौद्योगिकी, वेतन व भत्ते, प्रणाली आदि का एकीकरण भी आसान नहीं है. जेटली कहते है कि कर्मचारियों के हितों पर प्रभाव नही पड़ेगा लेकिन पिछली बार जब स्टेट बैंक में बैंको का विलय किया गया तब 6 महीनों में 10 हजार कर्मचारियों को नॉकरी से हाथ धोना पड़ा. जो बेरोजगार युवा बैंको की एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं उनके लिए तो यह विलय ओर भी बुरा है.
भारत जैसे बड़े देश में सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकिग के संकुचन के बजाय विस्तार की आवश्यकता है. बैंकों के विलय के बाद शाखाओं के विलय से बैंकिंग व्यवस्था का लाभ ग्रामीण इलाकों के बजाए महानगरों में रहने वाले ही उठाएँगे.
दरअसल बैंकों के विलीनीकरण का एकमात्र उद्देश्य हैं बैलेंस शीट का आकार बड़ा दिखाना है ताकि लोन डुबोने वाले औद्योगिक और व्यावसायिक घरानों को एक ही बैंक से और भी बड़े लोन दिलवाए जा सकें ओर पुराने लोन को राइट ऑफ किया जा सके. ये बैंक छोटे-छोटे व्यापारियों और ग्रामीण क्षेत्र के जमाकर्ताओं की बचत राशि से बड़े उद्योगपतियों को लोन उपलब्ध कराएंगे और छोटे किसानों, व्यवसाइयों, उद्यमियों, छात्रों आदि को सुख सुविधाओं से वंचित रख सूदखोरों के भरोसे छोड़ देंगे, जिनकी लूट और प्रताड़नाओं के चलते किसानों व अन्य की आत्महत्या की खबरें हम अक्सर सुनते रहते हैं.
आर्थिक मामलों के विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.
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