-नदीम एस. अख्तर-
मुनव्वर रानाओं के बयानों और मंदिर में नमाज़ पढ़ने जैसे धर्म के ठेकेदारों से सावधान रहिए!
जिन मूर्खों का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं, वह मंदिर में जाकर नमाज़ पढ़ रहे हैं। काहे भाई? देश-दुनिया का हाल नहीं मालूम? या तुम्ही पांचवक़्ती नमाज़ी पैदा हुए हो? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि इस्लाम में सफर में नमाज़ में रियायत दी गई है? और अगर पढ़ना ही था, तो कहीं भी पढ़ लेते! नीयत करके बैठे-बैठे और खड़े-खड़े भी पढ़ सकते थे। इस्लाम में नीयत की बरकत है।
आपने हज की नीयत करी लेकिन वह पैसा किसी गरीब की बेटी की शादी में दे दी। या फिर मां-बाप के इलाज में लगा दिया। आपका हज मुकम्मिल हुआ क्योंकि अपने नीयत कर ली थी। नहीं जा पाए, कोई बात नहीं। रोज़ा रखिये या नमाज़ पढ़िए, बिना नीयत किए या बांधे ये हो नहीं सकता। फिर क्या ज़रूरत थी मंदिर के अंदर नमाज़ पढ़ने की। ये सोचना चाहिए था कि दूसरे मज़हब वालों की भावनाएं आहत हो सकती हैं। या फिर आप पर आरोप लग सकता है कि आप साजिशन मंदिर को मस्ज़िद बनाने के अभियान में तो नहीं निकले हैं? जैसा देश, वैसा भेष।
सबसे बड़ी चीज है आपसी विश्वास और सौहार्द्र की। अगर ये है तो मस्ज़िद के प्रांगण में हवन कर लो, कौन मना करेगा। और चाहो तो मंदिर प्रांगण में इफ्तार कर लो। सभी लोग शरीक होंगे। और जब वैमनस्य है, एक-दूसरे के खिलाफ दिमाग में ज़हर है तो धर्म को नितांत निजी रखो और ये ख्याल कि आपकी धार्मिक गतिविधि से दूसरे धर्म वालों को कोई असुविधा ना हो। मंदिर-मस्जिद घूमकर, दीवाली के दीए जलाकर, होली खेलकर या ईद में गले मिलकर आपसी भाईचारा कायम नहीं होता। ये तब होता है, जब दिल मिलेंगे।
सो मुझे तो मुनव्वर राना समेत ये सारे लोग किसी खेल के हिस्सेदार लगते हैं। मुनव्वर बुढ़ापे में गला काटने जैसा बेहद शर्मनाक और भड़काऊ बयान दे रहा है। ये आदमी जाकर मंदिर में नमाज़ पढ़ रहा है। उधर पाकिस्तान में दलालों को अचानक पुलवामा हमला याद आ गया और उधर के दलाल बयान दे रहे हैं। फ्रांस के कार्टून मामले पर भारत के मुसलमानों से प्रदर्शन करवाए जा रहे हैं।
मेरी मित्र सूची में खुद एक नेता टाइप दाढ़ी वाला है, जो बिहार चुनाव में प्रचार कर रहा है लेकिन फेसबुक पर फ्रांस मामले पे दिल्ली में प्रदर्शन करने को मुसलमानों से आह्वान कर रहा था। उधर योगी जी लव जिहाद पे बयान दे रहे हैं। यानी पूरा मामला हिन्दू-मुसलमान-पाकिस्तान का बनाया जा रहा है, बना दिया गया है और बिहार में वोटिंग हो रही है। अन्य जगहों पे भी उपचुनाव हो रहे हैं।
क्या आपको ये सब नॉर्मल लगता है? दलाल टीभी मीडिया जिस तरह इन मुद्दों को चुन-चुनकर खबर दिखा रहा है, बहस करवा रहा है, क्या वह अनायास है? राजनीति में अंदर जितने खेल होते हैं, उसका 10 फीसद भी बाहर नहीं दिखता। इस दफा तो पाकिस्तान तक मामला चला गया और ऐन वक्त पर वहाँ के दलाल सक्रिय हुए।
बहरहाल, मुनव्वर राना और मंदिर में नमाज़ पढ़ने जैसे धर्म के ठेकेदारों से सावधान रहिए। ना तो मुनव्वर का बयान इस्लाम की शिक्षा के अनुकूल था और ना मंदिर में नमाज़ पढ़ने की बात। इस्लाम में साफ कहा गया है कि ऐसी कोई बात या हरकत ना करो, जिससे दूसरे के धार्मिक अधिकार या आस्था का हनन हो। और नमाज़ का क्या है? अकेले पढ़ लो, पहाड़ पे, रेगिस्तान में, समुद्र के टापू पे, कहीं भी पढ़ लो। बैठ नहीं पा रहे तो इशारे से लेटे-लेटे पढ़ लो। नमाज़ कोई दिखावा नहीं। बस आपकी नीयत अपने खुदा से मानसिक तौर पे जुड़ने की होनी चाहिए। वरना पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ने वाला भी यही दुआ करता है कि ऐ अल्लाह! मेरी नमाज़ कुबूल कर लो। किसी को नहीं मालूम कि उसकी नमाज़ कुबूल हुई या नहीं? बात नीयत की है।
हमारे यहां एक कहावत है- सिर सजदा में और पिछवाड़ा धोखेबाजी में। ठीक उसी तरह-मुंह में राम, बगल में छुरी। यानी बात आपके मन से पवित्र और सच्चे होने की है। नमाज़ नहीं पढ़ पाए, क़ज़ा हो गई तो उसे अगली नमाज़ में भी पढ़ सकते हैं। वो भी नहीं कर पाए तो उसके भी बाद वाली नमाज़ में माफी मांग लीजिए कि वक़्त पे आपको याद नहीं कर पाए। और अगर महीनों से नमाज़ नहीं पढ़ रहे तो भी माफी मांग लीजिए। नुक्ते से खुदा से जुदा हो जाता है। ये ऐसे नहीं है। हो सकता है कि कोई जीवनभर गुनाह करता रहा हो लेकिन उसकी कोई अदा ऊपर वाले को पसंद आ गयी और उसे सारे गुनाहों से मुक्ति मिल गई! कोई जीवनभर परहेज़गार रहा हो पर हो सकता है कि उसका एक अपराध, उसकी सारी इबादत पर भारी पड़े! ये फैसला तो खुदा/ईश्वर को करना है। इंसान के हाथ में सिर्फ दुआ मांगना है। इस्लाम यही कहता है।
इसलिए फरेबियों से सावधान!! मुनव्वर राना इतने कमअक्ल तो नहीं ही हैं कि उनको ना मालूम हो कि वह जो कह रहे हैं, उसकी प्रतिक्तिया देश में क्या और कैसी होगी। कम कहा है, ज्यादा समझिएगा।