मैं हमेशा कहता हूँ कि अच्छा, बुरा कुछ नहीं होता। अति ही बुराई है। सद्कर्म की भी अति हो जाये, तो परिणाम नकारात्मक ही आता है। आप आगे को भागिए और भागते रहिये, तो एक दिन लौट कर वहीं आ जायेंगे, जहां से चले थे, ऐसे ही पीछे को दौड़ने पर होगा। पीछे को दौड़ने वाला भी रुके न, तो वो भी एक दिन वहीं आ जायेगा, जहां से भागा था, इसीलिए बीच की अवस्था को शिखर कहा जाता है, संतुलन जीवन की सर्वश्रेष्ठ अवस्था है। शिखर पर ठहरे रहना होता है, मतलब संतुलन बनाये रखना होता है, लेकिन कोई शिखर पर पहुंचने के बाद भी संतुलन न बना सके, तो उस पार नीचे जाने का ही रास्ता होता है फिर। खैर, मन धर्म-अध्यात्म और कर्म पर चर्चा का नहीं है। मन है शाहजहांपुर के पत्रकार जगेन्द्र कांड पर बात करने का। इस प्रकरण में भी समाजसेवा की थोड़ी अति हो गई, जिससे परिणाम अपेक्षित नहीं आ पा रहा है। लखनऊ के चर्चित अधिवक्ता प्रिंस लेनिन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में ही गहन अध्ययन के बाद जगेन्द्र प्रकरण में जनहित याचिका दायर की थी, जिस पर सरकार से जवाब माँगा गया। आशा थी कि बहस के बाद सीबीआई जांच के आदेश हो जायेंगे, उससे पहले दिल्ली के पत्रकार सतीश जैन ने उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर दी, जिस पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और प्रदेश सरकार से जवाब माँगा है।
दिल्ली के पत्रकार सतीश जैन की भी मंशा बहुत अच्छी रही होगी, लेकिन इससे उच्च न्यायालय- लखनऊ पीठ टालने की स्थिति में आ गई और 24 जून को अगस्त के प्रथम सप्ताह तक सुनवाई टाल भी दी, यह सब अति की समाजसेवा के चलते ही हुआ है, वरना परिणाम बेहतर आने की संभावना थी। अब भी सब कुछ खराब नहीं हुआ है, अभी सही करने का समय है, लेकिन अब दिल्ली के पत्रकार सतीश जैन को थोड़ा अधिक ध्यान देना पड़ेगा, उन्हें इस प्रार्थना पत्र का प्रिंट निकाल कर उच्चतम न्यायालय तक पहुंचाना होगा, क्योंकि पूरा प्रकरण इसी प्रार्थना पत्र पर टिका हुआ है, क्योंकि घटना के दिन जगेन्द्र को जिस मुकदमे में पुलिस गिरफ्तार करने गई थी, उस मुकदमे की तहरीर बाद में बदली गई थी। पूर्व में लिखी गई तहरीर में जगेन्द्र पर आरोप नहीं था, लेकिन बाद में जगेन्द्र को आरोपी बना दिया गया। पूर्व में दी गई तहरीर भी पुलिस को रिसीव कराई गई थी, फिर भी पुलिस ने दूसरी तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया और यह सब जानते हुए भी पुलिस जगेन्द्र के पीछे पड़ी थी।
शाहजहांपुर की कांशीराम नगर कालौनी निवासी अमित प्रताप सिंह भदौरिया नाम के युवक ने जगेन्द्र के विरुद्ध 22 अप्रैल को जानलेवा हमला करने का मुकदमा कोतवाली चौक में दर्ज कराया था, इस मुकदमे को लेकर ही पुलिस जगेन्द्र के पीछे पड़ी थी और 1 जून को जगेन्द्र के जलने की वारदात हो गई, जिसे पुलिस आत्महत्या करार दे रही है, जबकि जगेन्द्र ने मृत्यु से पूर्व कहा था कि उसे पुलिस ने जलाया है। जगेन्द्र की मृत्यु के बाद उनके बेटे राहुल ने राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा और कोतवाल श्रीप्रकाश राय सहित छः लोगों को नामजद करते हुए कई अज्ञात लोगों के विरुद्ध जगेन्द्र को जिंदा जला देने का मुकदमा लिखाया था।
अमित प्रताप सिंह भदौरिया ने ही 10 अप्रैल को चौक कोतवाली क्षेत्र की पुलिस चौकी अजीजगंज के चौकी प्रभारी शाहिद अली को हस्तलिखित तहरीर रिसीव कराई थी, जिसमें अन्य कई लोगों पर जानलेवा हमला करने और अपहरण का प्रयास करने का आरोप लगाया था, साथ ही इस तहरीर में जगेन्द्र को बचाने वाला दर्शाया गया था। इस तहरीर में स्पष्ट लिखा है कि हमलावर उसे पकड़ कर ले जा रहे थे, लेकिन जगेन्द्र और जितेन्द्र द्वारा चेतावनी देने पर छोड़ गये, लेकिन इस तहरीर पर मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। कोतवाली चौक में 22 अप्रैल को मुकदमा दर्ज किया गया, जिसमें जगेन्द्र पर जानलेवा हमला करने का आरोप है। जाहिर है कि दूसरी तहरीर मनगढ़ंत है, झूठी है, फर्जी है, जिसके आधार पर जानते हुए पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया और फिर पुलिस जगेन्द्र के पीछे पड़ गई, उसी का दुष्परिणाम है कि आज जगेन्द्र नहीं है, मतलब संपूर्ण प्रकरण का आधार यही तहरीर है, इसलिए दिल्ली के पत्रकार सतीश जैन से आग्रह है कि वे इस तहरीर का प्रिंट निकाल कर अपने अधिवक्ता तक पहुंचाने का कष्ट करें, ताकि उच्चतम न्यायालय सही निर्णय ले सके। अगर, कोई सतीश जैन से परिचित हो, तो उससे भी आग्रह है कि वो यह सब सतीश जैन के संज्ञान में लाने का कष्ट करें।
बी पी गौतम से संपर्क : bpgautam99@gmail.com