आशीष महर्षि-
जिस बात का डर था, वही हुआ. अविनाश श्रीवास्तव चले गए. उम्र में थोड़े से बड़े थे तो हमेशा मुंह से सर ही निकला उनके लिए. हम दोनों में एक अजीब सा रिश्ता था.
कभी हम सहकर्मी हुआ करते थे. कुछ बातें हम दोनों में सामान्य थी. मसलन उन्हें पेड़-पौधों, किताबों और अपने काम को लेकर जुनून था. हर कोई उन्हें अपनी टीम में लेना चाहता था.
दैनिक भास्कर ग्रुप में लंबे समय तक हम दोनों साथ थे. इलाहाबाद से आते थे. लेकिन पूरी तरह भोपाली हो चुके थे. दूसरा, उन्हें महादेव का प्रसाद बहुत पंसद था। ये दोनों बातें मुझे और अविनाश सर को एक सिरे से जोड़ती थीं.
अविनाश सर के फेसबुक पर एक पंक्ति हमेशा मुझे पंसद आती थी…ये जरूरी नहीं कि कुछ कहा ही जाए. हर खाली जगह भरी नहीं जाती. भोपाल में हमेशा एक दोस्त की कमी खलेगी.