महिपाल सिंह-
पश्चिम उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सरदार गुरमुख सिंह चाहल (66) पंचतत्व में विलीन हुए। बृहस्पतिवार की रात लगभग 11 बजे अचानक अमरोहा जनपद (उत्तर प्रदेश) के विजयनगर स्थित गजरौला टाईम्स दफ्तर में हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया। वह अपने पीछे मनिंदर सिंह, हरविंदर सिंह समेत दो बेटों व पत्नी छोड़ गए हैं। उनके अंतिम संस्कार से पूर्व उनकी अंतिम इच्छा अनुसार नेत्रदान के लिए बीती रात्रि में ही मुरादाबाद से सीएल गुप्ता आई इंस्टीट्यूट के चिकित्सकों की टीम आ गई थी ।शुक्रवार को गंगाधाम तिगरी घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, पंजाब केसरी समेत अन्य समाचार पत्रों में सेवारत रहे वरिष्ठ पत्रकार गुरमुख सिंह चाहल वर्तमान में गजरौला टाईम्स के संपादक पद पर कार्यरत थे। उनके निधन की सूचना मिलते ही जिलेभर में शोक की लहर दौड़ गई।
औद्योगिक नगरी गजरौला नगर पालिका चेयरमैन पति एवं पूर्व विधायक बसपा नेता हरपाल सिंह, लायंस क्लब के वरिष्ठ समाजसेवी डा.बीएस जिंदल, पोलैंड में सेवारत डा.दिलबाग जिंदल, वरिष्ठ पत्रकार चमन सिंह, प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया से मुरादाबाद के पत्रकार डा. मुस्तकीम, यूएनआई से वरिष्ठ पत्रकार एमपी सिंह,आजतक चैनल से पत्रकार बीएस आर्या, जिला सूचना अधिकारी सुभाष चंद्र, बिजनौर जिला सूचना कार्यालय में कार्यरत हुकुम सिंह, भाकियू नेता नरेश चौधरी, भरतिया ग्रुप की जुबिलेंट इंग्रेविया लिमिटेड के यूनिट हेड हितेंद्र अवस्थी एवं निदेशक जनसंपर्क सुनील दीक्षित, वेव इंडस्ट्री प्रबंधन, समाजसेवी हाजी अब्दुल सलाम, पत्रकार जयकरण सैनी, पूर्व ब्लॉक प्रमुख कामेंद्र सिंह, व्यापारी शंभू स्वीट्स तथा सभासदों के अलावा अन्य गणमान्य नागरिकों ने वरिष्ठ पत्रकार गुरमुख सिंह चाहल के आकस्मिक निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है।
उल्लेखनीय है कि दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार सरदार गुरमुख सिंह चाहल न केवल समसामयिक मुद्दों में ही दिलचस्पी रखते थे बल्कि वो राजनीति और सामाजिक संरचना, ग्रामीण विकास, अर्थव्यवस्था जैसे विषयों के साथ ही देशभर में चल रहे मुद्दों पर गहरी पकड़ रखने के साथ अपने विचार ख़ूब लिखते थे। जनसरोकार से जुड़ी पत्रकारिता,आम आदमी के सच्चाई को बचाने का संघर्ष, गांव और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ी समस्याओं और चुनौतियों की गहरी समझ रखने वाले गुरमुख सिंह गज़ब के लेखक थे।
बातचीत और लेखन में कोई लाग लपेट नहीं,जैसा दिखा वैसा लिखने की ईमानदारी, भाषा पर अद्भुत पकड़ उनको अन्य पत्रकारों से अलग बनाती थी। वो कहते थे कि मुफ्त आटा चावल बांटने के चक्कर में लागत से कम कीमत पर अनाज खरीदकर किसानों को बर्बाद कर दिया गया है। उनका मानना था कि साहुकारों के पुण्य किसानों के शोषण पर पलते हैं। सरकार द्वारा 2000 रुपए खाते में डालकर महंगाई के रूप में डीज़ल पेट्रोल, गैस,खाद, बीज आदि से किसानों से सालभर में लाखों रुपए वसूले जा रहे हैं। अनाज किसान पैदा करता है और फसलों के रेट सरकार तय करती है जबकि उद्योग पति छोटे बड़े सामान बनाता है और बेचता अपने भाव पर है। आखिर यह कैसा अन्याय है और कब तक चलता रहेगा?
वो कहते थे कि अन्याय के बारे में लोग तभी सोचते हैं, जब वह अन्याय स्वयं उनके साथ होता है।