अरुणेश सी दवे-
2020 में जिस शेयर की कीमत महज 150 रूपए थी उसको 4000 तक पहुंचा 3300 में जनता को चिपकाने का प्रयास असफल होने के बाद अडानी ग्रुप के शेयर कहां थमेंगे कोई नहीं जानता।

फिल्हाल विदेशी बैंक अडानी के बांड को बतौर कोलेटरल लेना अस्वीकार करना शुरू कर चुके हैं। आगे हर महीने करोड़ों रुपए इन्हें बांड धारकों को अदा करने हैं। हिंडनबर्ग के अनुसार इन्होंने अपनी कमाई और कैश इन हैंड दिखाने में हेराफेरी की है और ऐसा कर खरबों रुपए का कर्ज लिया है।
इनकी योजना अपने शेयरों को जनता को बेच कर्ज अदा करने की थी जिस पर फिल्हाल पानी फिर गया है और जो कुछ पैसे अंटी में थे वो भी FPO को फेल होने से बचाने के लिए खुद ही खरीदने में खर्च हो गए।
इनको अरबों का कर्ज देने वाली और इनके शेयरों में निवेश करने वाले एलआईसी एसबीआई जैसी संस्थाओं के शेयर भी गिर रहे हैं।
जो लोग भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान बता रहे हैं उनकी जानकारी के लिए इस मामले के उजागर होने से भारत की अर्थव्यवस्था, उसके फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन और आम शेयर धारक बहुत ही कम नुकसान में बच निकले हैं। इनका चकरा अगर पूरा घूम गया होता तो भारत का भगवान ही मालिक था।
जिस बात को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा है वह है भारत की साख, इस पूरे प्रकरण ने यह साबित कर दिया है कि भारत की तमाम संस्थाएं न केवल निकम्मी हैं बल्कि जानकारी होने के बावजूद अपराधी पर कार्यवाही नहीं करती और भारत की किसी कंपनी की बैलेंस शीट, उसके ऑडिटर विश्वास के योग्य नहीं है। और भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक अपराधियों से मित्रता है। ऐसा रूस और तुर्की के जैसे तानाशाही के तहत चल रहे देशों में ही होता है किसी वाइब्रेंट लोकतंत्र और मजबूत अर्थव्यवस्था में नहीं।


