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सियासत

सिसोदिया को जमानत नहीं मिलने के साइड इफेक्ट… क्या केजरीवाल को जेल और ‘आप’ पर प्रतिबंध लगेगा?

संजय कुमार सिंह-

आज के अखबारों में छपी खबरों से लगता है कि मनीष सिसोदिया को जमानत नहीं मिलने का कारण यह है कि अब रद्द की जा चुकी दिल्ली की उत्पाद नीति लागू थी तो 10 महीने में 14 थोक शराब विक्रेताओं को करीब 338 करोड़ रुपये का अत्यधिक लाभ हुआ। मैं नहीं कहता कि यह रिश्वत लेने के लिए नहीं किया गया होगा या जमानत नहीं देना गलत है। पर मेरा कहना है कि सरकार का काम है नीति बनाना। उससे किसी को नफा होगा और किसी को नुकसान। इसके लिए जमानत नहीं देना अलग बात है पर सरकार ने अपना काम सही किया या नहीं यह कैसे तय होगा? कौन करेगा?

दूसरी ओर मनीष सिसोदिया को जमानत नहीं मिलने का खामियजा यह नजर आ रहा है कि आज ही खबर है कि इस मामले में अब दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को पूछताछ के लिए बुलाया गया है और हम पहले पढ़ सुन चुके हैं कि सरकार की योजना आम आदमी पार्टी पर प्रतिबंध लगाने की है। मेरा मानना है कि अगर नीति में बदलाव की जरूरत समझी गई तो की गई और इसमें कुछ गलत नहीं है। सरकार का यही काम है। इसीलिए चुनी जाती है। जनता गलत मानेगी तो हरा देगी। इस तरह के आरोपों और अब फैसले से भी पार्टी बदनाम हो रही है जबकि उसकी राजनीति प्रशंसनीय है।

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अगर यह गलत है कि सरकारी नीति से किसी की कमाई हो जाए तो ऐसे ढेरों मामले मिलेंगे सिर्फ इस एक मामले में कार्रवाई क्यों? और कमाई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से भी होते हैं तो क्या वहां भी नीयत पर शक किया जाये? अगर यह मान लिया जाए कि इसका मकसद शराब व्यापारियों की कमाई करवाकर उनसे बाद में पैसे लेना था तो जाहिर है पार्टी के चुनाव लड़ने के लिए ही लिया जाना होगा। सत्तारूढ़ दल यही साबित करना और कहना चाहता है और इसीलिए पार्टी को भी लपटने की कोशिश चल रही है। आज ही केजरीवाल को बुलाया जाना संयोग नहीं है।

पार्टी के लिए इस तरह पैसे लेना भी अगर गलत है तो इलेक्ट्रल बांड से लेना क्यों सही और उसमें भी यह नहीं बताना कि इलेक्ट्रल बांड किसने दिये या फिर पीएम केयर्स ही। पर अभी मेरा मुद्दा वह सब नहीं है। मेरा मुद्दा किसी भी निर्वाचित सरकार का काम और उसका निर्णय है। बिहार सरकार को लगा कि शराब बंदी होनी चाहिए तो उससे कइयों को नुकसान हुआ। आस-पास के राज्यों के शहरों को लाभ हुआ। बहुत सारे लोगों को बिहार छोड़ना पड़ा। यहां पैसे लेने के आरोप न हों, नहीं लिये गये हों पर नुकसान और फायदा तो हो ही रहा है और राजनीतिक चंदा इसी आधार पर दिया-लिया जाता है।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि नागरिकों को इलेक्ट्रल बांड के धन का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है। जनहित के काम करने वाली पार्टियों को इस तरह रास्ते से हटा दिया जाये तो जनता चुनेगी किसे? उसके पास विकल्प कहां रहेंगे। आम आदमी पार्टी की सरकार ने अगर शराब नीति से पैसे कमाये या भविष्य में कमाने का बंदोबस्त किया भी हो तो काम भी किये हैं। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में उसका काम मिसाल है। पर अस्पताल नहीं खोलकर बीमा कराने से बीमा कंपनियों का लाभ तो तय है जनता का इलाज हो जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। वैसे भी अस्पताल नहीं होंगे, दाखिला ही नहीं मिलेगा तो बीमा के पैसे से कोई क्या करेगा?

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मुद्दा यह भी नहीं है। मुद्दा यह है कि भाजपा की नीति सही और दूसरों की गलत है तो जनता किसी और को क्यों चुनेगी और यह चुनाव के महत्व को ही खत्म करने की दिशा में बढ़ना नहीं है। प्रचारक यही बता रहे हैं इस तरह की सोच और सरकार के ऐसे काम को समर्थन मिलने से हम तानाशाही की ओर बढ़ते लगते हैं। आप पर प्रतिबंध की मांग वह साइड इफेक्ट है जो अंबानी को देश चलाने वाली कंपनी में बदल देगा और उसकी फीस भाजपा को इलेक्ट्रल बांड से मिलती रहेगी। पर इसे रोका कैसे जाये अगर आम आदमी पार्टी पर प्रतिबंध लग जाये और प्रचारकों के लिए राहुल गांधी को पप्पू साबित करना संभव है। मुश्किल दिन आने वाले हैं।

महुआ मोइत्रा के आरोप और मोदी सरकार का समर्थन

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एथिक्स केमेटी को जवाब देने से पहले महुआ मोइत्रा ने दुनिया को बता दिया है कि उनके खिलाफ मामला कितना कमजोर है या उन्हें फंसाने की कोशिश किस स्तर पर है। साथ ही, वे डरने वाली नहीं हैं। अव्वल तो एथिक्स कमेटी को बिना ठोस सबूत के मामले को हाथ में लेना ही नहीं चाहिये था। फिर महुआ ने कहा कि उन्हें पहले बुलाया जाए और यह भी कहा कि उन्हें क्यों समय दिया जाये। सारा मामला मीडिया में आता रहा तो उन्होंने भी मीडिया में अपना पक्ष रखना शुरू किया और इसमें टाइम्स नाऊ को जो जवाब दिया वह भी सार्वजनिक हो गया। बाद में उन्होंने अपना जवाब खुद भी ट्वीट कर दिया और विरोधियों पर एक के बाद एक हमला करती रहीं।

एक साथ कइयों से लड़ते-भिड़ते महुआ ने साबित किया है कि वे डरने वाली नहीं हैं और अकेले सबसे निपटने का माद्दा रखती हैं। इस क्रम में महंगे आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल ने उन्हें संदेश भेजकर कहा है कि राज्य प्रायोजित हैकर्स उनके फोन को हैक करने के प्रयास कर रहे हैं। इससे पहले सरकार द्वारा जासूसी करने वाला सॉफ्टवेयर पेगासस मुद्दा रहा है। आप जानते हैं कि सरकार ने इस सॉफ्टवेयर को खरीदना स्वीकार नहीं किया है और ना ही यह कहा है कि उसने नहीं खरीदा है। इस बीच, पेगासस से भारतीय नागरिकों की जासूसी कौन करा रहा है यह सवाल अनुत्तरित है। नहीं हो रही है यह आश्वासन भी नहीं है।

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इन सबके बीच यह आरोप भी है कि इसे मुहैया कराने तथा इस बारे में मोदी सरकार के स्टैंड के अनुकूल व्यवहार के लिए इजराइल को मोदी सरकार का समर्थन मिला है। दूसरी ओर, वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग ने पता लगाया है कि भीमा कोरेगांव के संदिग्ध, एक्टिविस्ट रोना विल्सन का लैपटॉप हैक किया गया था और उन्हें फंसाने के लिए 10 संदिग्ध लेटर उसमें प्लांट किए गए। आर्सेनल की रिपोर्ट कहती है कि विल्सन के कंप्यूटर में 2016 और 2018 के बीच लगभग दो वर्षों में कुछ गड़बड़ियां की गई थी।

यह अलग बात है कि एनआईए ने इसे ‘तथ्यों से छेड़छाड़’ करार दिया है पर इस मामले की संतोषजनक जांच नहीं हुई है और सरकारी एजेंसियों के खिलाफ ऐसी रिपोर्ट देने वाली अमेरिकी कंपनी के खिलाफ किसी सरकारी कार्रवाई की भी सूचना नहीं है। महुआ मोइत्रा का फोन हैक करने की कोशिश इस शासन में सामान्य हो सकती है। पर लोकतंत्र किधर जा रहा है और हमारी सरकार शासन के नाम पर क्या कर रही है यह सोचना बनता है। कुछ लोग इस सारी स्थिति के लिए सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहराते हैं पर मेरा मानना है कि संघ परिवार के समर्थन के बिना मोदी अकेले इतने मजबूत नहीं हैं। और 2013-14 में या 2002 के बाद उनका समर्थन करना तथा अभी भी करना दो अलग चीजें हैं।

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