क्या से क्या हो गया इतने थोड़े से समय में। ऐसा लगा पिछले हफ्ते के आखिरी घंटों में जैसे ब्रह्मांड के सारे देवी देवताओं ने मिल कर निर्णय किया हो कि उस व्यक्ति से अपनी छत्र-छाया वापिस लाने का वक्त है जिस पर कल तक वे खास मेहरबान थे। ऐसा जब हुआ तो मोदी सरकार ने गलतियां इतनीं कीं कि मीडिया पागल सा हो गया और कांग्रेस पार्टी को अहसास हुआ कि लोकसभा में कम सीटों के बावजूद कितनी शक्ति होती है विपक्ष में।
नरेंद्र मोदी की छवि में चमक घटने लगी है अगर, तो दोष उनका ही है। विदेशों के इतने दौरे करने के बाद भी कैसे उन्होंने नहीं देखा कि वह एक विश्व स्तर के राजनेता हैं जिनके पास मीडिया सचिव नहीं है अपने कार्यालय में? हमारे अपने भारत देश में भी हर प्रधानमंत्री के पास अपना प्रेस सेक्रेटरी रहा है जवाहरलाल नेहरू के जमाने से। वह भी उस समय जब मीडिया के नाम पर भारत में कुछ मुट्ठी भर अखबारें ही होते थे। आज के दौर में कोई 400 से ज्यादा तो 24 घंटा समाचार चैनल हैं, और उस पर से अखबार इतने ताकतवर कि उनकी गिनती दुनिया के सबसे बड़े अखबारों में होती है। यानी प्रधानमंत्री को जरूरत सिर्फ एक मीडिया सचिव की नहीं बल्कि एक मीडिया सेल की है जो हर मुद्दे पर रोज पत्रकारों के सवालों के जवाब देने को तैयार हो।
पिछले हफ्ते जब मोदी सरकार को अपनी पहली बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा तो कोई नहीं था प्रधानमंत्री की तरफ से बोलने वाला। न ही प्रधानमंत्री की तरफ से स्पष्ट आदेश आया कि ललित मोदी को लेकर सरकार का सोच क्या है। नतीजा यह कि कुछ मंत्रियों और प्रवक्ताओं ने कहा कि ललित मोदी अपराधी हैं, भगोड़ा हैं और अगर भारत वापिस आते हैं तो उनको सीधा जेल भेज दिया जाएगा। कुछ वह थे जो कहते रहे कि ललित मोदी के साथ पिछली सरकार ने इतना अन्याय किया कि वह भागने पर मजबूर हो गए। किसी एक ने हिम्मत करके यह नहीं कहा कि ललित मोदी ने हमेशा भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया है आर्थिक और राजनीतिक तौर पर और मुसीबत के समय फर्ज बनता है उनका समर्थन करना।
सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे ने दोस्ती निभा कर कोई अपराध नहीं किया। उनकी गलती थी कोई तो सिर्फ यह कि उन्होंने ललित मोदी की मदद चोरी-छिपे की। खुलेआम करतीं तो कोई बात न होती। बाद में वसुंधरा राजे ने जब झूठ बोलने की कोशिश की तो जाहिर है मीडिया सबूत ढूंढ़ने में फौरन लग गया। सच बोला होता तो मामला वहीं खत्म हो जाता। मेरा अपना मानना है कि अगर दोनों ने इस्तीफा दिया होता तो मोदी सरकार की इज्जत भी बचती और उनकी शान भी बढ़ जाती। इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री उसको नामंजूर कर सकते थे यह कह कर कि कोई अपराध नहीं किया है इन्होंने ललित मोदी की मदद करके।
वास्तव में न इन्होंने अपराध किया है कोई और न ही साबित कोई कर सका है अभी तक कि ललित मोदी अपराधी हैं। ललित मोदी घमंडी हैं, अपनी दौलत का जरूरत से ज्यादा दिखावा करते हैं और बोलते बहुत हैं लेकिन अपराधी साबित नहीं हुए हैं। अपराध किया होता उन्होंने तो आज तक क्यों नहीं पूर्व सरकार ने उनके खिलाफ कोई एफआइआर दर्ज की है? उनका पासपोर्ट जब रद्द हुआ तब भी यह नहीं बताया गया कि किस आधार पर रद्द किया जा रहा है।
ललित मोदी ने ट्विटर के जरिए बार-बार कहा है कि उनका कसूर सिर्फ इतना है कि आइपीएल इतना कामयाब हुआ दुनिया भर में कि कुछ ताकतवर राजनेता और बीसीसीआइ के कुछ आला अधिकारी उनके दुश्मन बन गए। इंस्टाग्राम और अपनी वेबसाइट पर उन्होंने डाल रखी है इल्जामात की वह पूरी फेहरिस्त जो पिछली सरकार ने उनको भेजी है। इन इल्जामात में दम होता तो क्या अभी तक किसी अदालत में उनके खिलाफ मुकदमा न शुरू हो गया होता? अगर पूर्व सरकार सिर्फ उनसे पूछताछ करना चाहती थी तो यह पूछताछ लंदन में क्यों नहीं हुई? मोदी वास्तव में इतने बड़े अपराधी होते तो क्या कोई भारतीय अदालत उनको पासपोर्ट वापिस लौटाती?
सच तो यह है कि बीसीसीआइ की तरफ से जो उन पर गबन के इल्जाम लगे हैं उनमें भी खोट दिखती है। इसलिए कि बीसीसीआइ में बैठे हैं इस देश के इतने ताकतवर राजनेता जिनकी मर्जी के बिना कैसे ललित मोदी कोई आर्थिक फैसला नहीं ले सकते थे आइपीएल को लेकर? सच शायद यह भी है कि ललित मोदी के खिलाफ अगर कानूनी कार्यवाही शुरू की जाती है तो उन सब राजनेताओं की पोल खुल सकते है जो अभी तक पर्दों के पीछे छुपे बैठे हैं। मेरा मानना है कि बीसीसीआइ की जांच अगर ईमानदारी से की जाती है तो ऐसे राज सामने आएंगे जो देश को हैरान कर देंगे। मालूम पड़ जाएगा हम सबको कि क्रिकेट और राजनीति का कितना पेचीदा रिश्ता है और मालूम यह भी पड़ जाएगा, बीसीसीआइ में जगह पाने के लिए बड़े-बड़े राजनेता क्यों अपना दीन-ईमान बेचने को तैयार हो जाते हैं।
ललित मोदी खलनायक हैं तो बीसीसीआइ में खलनायक और भी हैं। मोदी सरकार के मंत्रियों-प्रवक्ताओं ने थोड़ी सी समझदारी से काम किया होता पिछले हफ्ते तो न मोदी बदनाम होते और न ही सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे। गर्व से कहतीं यह दोनों कि ललित मोदी उनके दोस्त हैं और मुसीबत के समय उन्होंने दोस्ती निभाई और दोस्ती निभाना अपराध नहीं है। लेकिन जब चोरी-छुपे दोस्ती की जाती है तो लोग पूछेंगे जरूर कि ऐसा क्यों हुआ। ऊपर से जब झूठ बोलता है कोई राजनेता तो स्वाभाविक है कि मीडिया तब तक पीछे पड़ी रहेगा जब तक सच सामने न आए।
वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह का विश्लेषण.