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उत्तर प्रदेश

मुख्यमंत्री जी! पत्रकारों को कोसना छोड़िए, लॉ एंड ऑडर सम्हालिए

इलाहाबाद। सूबे में पटरी से उतर चुकी कानून व्यवस्था ने समाजवादी सरकार की उपलब्धियों पर ग्रहण लगाने का काम किया है। और अखिलेश यादव हैं कि सफाई दर सफाई देने को मजबूर हो रहे हैं। मुट्ठीभर मतलब परस्त अधिकारी और सपा के माई बाप बनने का दावा करने वाले स्वार्थी नेता सपा सरकार के लिए मुसीबत बन गए हैं। आम जनता के बीच ये किसी खलनायक से कम नहीं साबित हो रहे हैं। इनके कारण सरकार मुफ्त में बदनाम होने को अभिशप्त है।

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इलाहाबाद। सूबे में पटरी से उतर चुकी कानून व्यवस्था ने समाजवादी सरकार की उपलब्धियों पर ग्रहण लगाने का काम किया है। और अखिलेश यादव हैं कि सफाई दर सफाई देने को मजबूर हो रहे हैं। मुट्ठीभर मतलब परस्त अधिकारी और सपा के माई बाप बनने का दावा करने वाले स्वार्थी नेता सपा सरकार के लिए मुसीबत बन गए हैं। आम जनता के बीच ये किसी खलनायक से कम नहीं साबित हो रहे हैं। इनके कारण सरकार मुफ्त में बदनाम होने को अभिशप्त है।

सूबे के किसी भी जिले में देख लीजिए। क्या वजह है कि ज्यादातर जिलों में लॉ एंड ऑडर औंधे मुंह पड़ा है। न्याय की फरियाद करने थाने जाने वाली बलात्कार की शिकार महिला से पुलिस थाने में बलात्कार कर डालती है। घूस लेते पकड़ने जाने पर घूस देकर छूटने की परंपरा भी यूपी में ही फल-फूल रही है। कोई नागरिक विचाराधीन कैदी होने पर वोट तक नहीं डाल पाता पर विचाराधीन कैदी अगर नेता हुआ तो वो बाकायदे चुनाव लड़ सकता है और जीत गया तो विधानसभा लोकसभा में माननीय का दर्जा पाकर समाज में सीना ताने पुलिस सिक्योरिटी में घूमता है।

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कल तक पुलिस को देख छिपने को मजबूर होने वाला इलाके का छंटा बदमाश लालबत्ती वाली कार में घूमता हुआ पूरे सिस्टम को बत्ती लगाता है। उसी सिस्टम में आपकी पार्टी और सरकार भी फंसी है। दागदार खादी, दागदार खाकी और मुंहलगे अफसर की सक्रिय तिकड़ी ने कितना ज्यादा बंटाधार किया है, यह गंभीर चिंतन और जांच का विषय बनना चाहिए। मुख्यमंत्री अखिलेश के हालिया दिए गए दो बयानों का जिक्र गौरतलब है।
 
पहला बयान, भाजपा के लोग थाने के गेट पर खड़े रहते हैं और अपराधों के बारे में दुष्प्रचार करते हैं। दूसरे दिन ही एक और बयान ने अखिलेश यादव की बौखलाहट को सार्वजनिक कर दिया। वो बयान था, नकल करके पास होने वाले ही पत्रकार बनते हैं। विश्वास नहीं होता कि मुख्यमंत्री जैसी जिम्मेदार कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति इतना गैरजिम्मेदाराना और ओछा बयान कैसे दे सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि थाने के भीतर छद्मवेशी सपाइयों की भीड़ के चलते सो-काल्ड भाजपाइयों को थाने के गेट पर डटे रहना पड़ता हो। सत्ता के नाम पर कई नए नए पार्टी के लोग तैयार हो जाते हैं और थाना, तहसील ब्लाक ऑफिसों में अड्डा बना लेते हैं। यहां तक कि कई कर्मचारी भी उसी सत्तासीन दल के एजेंट की तरह कार्य करने लगते हैं।
 
एक उदाहरण, जिसे ज्यादातर लोग जानते भी हैं। यूपी में बसपा की सरकार थी। प्रतापगढ़ के राजा भैया के उत्पीड़न का वह दौर चरम पर था। कुंडा के सीओ थे राम शिरोमणि पांडेय। उनको डंडा पांड़े के नाम से भी जाना गया। बसपा एजेंट की तरह खुलेआम कार्य करते हुए एक दौर वह भी आया जब वे चुनाव के लिए बसपा से टिकट भी दिलाने का दावा करने लगे। बसपा से टिकट चाहने वालों के बीच यह चर्चा-ए-आम था कि पांडेजी के बसपा सुप्रीमो मायावती से ताल्लुकात बेहतर हैं, पांडेजी चाह लेंगे तो विधायकी का टिकट पक्का।

खैर, सड़क हादसे में पांडेजी की मौत हो गई। किसी ने मायावती को पांडेजी की मौत की जानकारी दी तो मायावती के मुंह से बेसाख्ता निकला- कौन पांडे, ऐसे किसी भी आदमी को वे नहीं जानती। यह एक उदाहरण है जो ऐसे कर्मचारी अफसर को सीख देने वाला है जो किसी की भी सरकार आने के बाद उसके एजेंट बनकर काम काज करने के आदी हैं।

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अब बात अखिलेश बाबू के इस बयान पर कि नकल करके पास होने वाले ही पत्रकार बनते हैं। दुनिया जानती है और आप भी कभी-कभी झटके में ही सही सच्चाई बयां कर डालते हैं। ये बताइए कि यूपी में परीक्षा प्रणाली दूषित है क्या? नकल की मंडी बनाने में सपा और मुलायम सिंह का कितना बड़ा योगदान है? परीक्षा में नकल को बढ़ावा देकर नकलचियों की बेतहाशा संख्या किसने बढ़ाई? नकल और नकलची बढ़ने से ही तो पत्रकारों की संख्या बढ़ी।

अखिलेश बाबू! इस मुसीबत की जड़ भी तो सो-काल्ड धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव ही रहे हैं। अखिलेश बाबू! कभी कभी कुदरत बदला लेती है। नकल को बढ़ावा देकर नकलचियों की संख्या बढ़ाकर यूपी की तरूणाई को बर्बाद करने का जो पाप किया गया है, शायद यह उसी का नतीजा है। जरूरत आइने को बदलने की नहीं, चेहरा बदलने का है। तभी शायद सीन बेहतर दिख सकेगा।

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हां, एक बात और! मैं किसी पार्टी का समर्थक, सदस्य और नेता नहीं हूं और ना ही नकल मंडी वाली परीक्षा पास करके पत्रकार बना हूं। जब राजनीति में लंठ-गंवारों की बढ़त शुरू हुई तभी से पत्रकारिता करने की ठानी। पत्रकारिता में सक्रिय हूं और पत्रकारिता कर भी रहा हूं। कुछ खबरों की कटिंग अटैच कर रहा हूं। इसे देखिए और असलियत बूझिए। हां, एक बात और कि यह किसी नकल करके परीक्षा पास करने वाले पत्रकार की नहीं बल्कि पढ़े लिखे पत्रकारों की रिपोर्टिंग है। दुष्यंत की इन लाइनों के साथ बात खत्म।

हंस हंस के कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं। 

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इलाहाबाद से वरिष्ठ पत्रकार शिवाशंकर पांडेय की रिपोर्ट। लेखक दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान आदि अखबारों में कई साल कार्य कर चुके हैं। संपर्कः मो-9565694757, ईमेलः [email protected]

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