जे सुशील-
जीवन अब बचा नहीं है. सबकुछ कंटेंट हो चुका है. हम क्या खाते हैं क्या पहनते हैं. कैसे रहते हैं.किससे मिलते हैं. क्या बातें करते हैं. क्या मजाक करते हैं या फिर क्या कटाक्ष करते हैं सबकुछ कंटेंट है. हम कंटेंट हैं.
यह एक कारण है कि मैं कई बार कुछ चीजें बताना नहीं चाहता. कुछ चीजों के बारे में सार्वजिनक रूप से लिखना नहीं चाहता. कुछ तस्वीरें शेयर नहीं करना चाहता. शायद मैं थोड़ा सा जीवन बचा लेना चाहता हूं.
मुझे जो सबसे प्रिय हैं उनकी तस्वीरें लगाने में जितनी झिझक होती है उतनी शायद ही किसी और काम में हो. कभी कभी जब फोटो लगा देता हूं तो पाता हूं उस मनुष्य और मेरे बीच कंटेंट की लकीर कायम हो गई है. उस लकीर को फिर धीरे धीरे मिटाता हूं अपने मन से ताकि हम दोनों का मनुष्य बराबर बना रहे.
इसी तरह कई अनुभवों को लिखने से बचता हूं क्योंकि लिख देने के बाद लगता है कि अपने हिस्से का कुछ शरीर से कट कर निकल गया है. ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि वो अब कंटेंट है जिसका कोई औचित्य नहीं रह गया है. उसकी कोई गरिमा नहीं बची है. उसका कोई सम्मान नहीं बचा है.
एक सुकून दूसरे देश में रहने का यही है कि यहां कम से कम सामान्य बातचीत में सोशल मीडिया का जिक्र बहुत कम होता है. कभी कभार हुआ भी तो वो तीसरे पक्ष के रूप में जैसे कि अखबारों का जिक्र होता है – मसलन ट्रंप ने यह ट्वीट किया आदि आदि आदि.
भारत में अमूमन बातचीत का दायरा फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब और पिछले दिनों रील्स के आसपास ही घूमता रहता है चाहे पत्रकार हों या आम लोग. किसी से कुछ कहने में डर लगता है कि आपकी आपस में की गई बात कहीं कंटेंट न बन जाए.
कुछ महीने पहले किसी से इनबॉक्स में बात हो रही थी. आध्यात्मिक दुनिया के बारे में. मैंने कहा कि मुझे जो पसंद है उनके बारे में. कुछ दिनों बाद देखा कि सामने वाला व्यक्ति खूब लिख रहा है उस (आध्यात्मिक व्यक्ति)के बारे में. मुझे लगा मेरे कपड़े कोई चुरा ले गया.
भारत में एक दिन किसी रिश्तेदार के घर गया (कुछ काम करने होते हैं) तो वहां टीवी पर यूट्यूब चल रहा था जिसमें कोई कस्बाई महिला दाल भात चोखा बना रही थी. न खाना दिखने में सुंदर लग रहा था और न ही खाने को पेश करने का ही कोई तरीका था. लेकिन टीवी पर चल रहा था और लोग देख रहे थे. मैंने पंद्रह मिनट बहुत कष्ट से वो देखा और आग्रह किया कि टीवी बंद कर दें. लेकिन आवाज़ कम हो गई टीवी बंद नहीं हुआ. आठ बाय दस के कमरे में चालीस इंच का टीवी. सामने महिला का पति अपनी तोंद पर थाली रखकर दाल भात को सानते हुए वीभत्स लग रहा था.
मैंने मेजबान से कहा कि आप लोग कैसे देखते हैं ये तो मुझे बताया गया कि यह एक यूट्यूब चैनल है जिसमें यह महिला अपने पति बेटों और बेटी के साथ एक एक घंटे का यही सब खाना पकाना आटा सानना, पड़ोसी से झगड़ा आदि आदि दिखाती है. मेजबान के एक बच्चे ने मां को टोककर कहा- अरे मां यह कंटेंट है और इससे यह महिला महीने के पचास हज़ार रूपए कमाती है.
मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए उसकी मां से कहा- आप भी चैनल क्यों नहीं चलातीं. आप तो इससे अच्छा खाना बना लेंगी. मेजबान के बेटे ने भौंहें चढ़ाकर कहा- मेरा चैनल है देखिएगा. मैं गिटार बजाता हूं. मैंने पूछना उचित नहीं समझा कि वो सिखाता है या बजाता है. मुझे यह भी डर था कि वो कहीं गिटार सुनाने की जिद न करे. उसने लिंक भेजने के लिए वाट्सएप नंबर मांगा लेकिन उसे जानकर निराशा हुई कि मैं वाट्सएप इस्तेमाल नहीं करता.
बाहर निकलते हुए मैंने अपने मित्र से कहा- मैं पिछड़ गया हूं या दुनिया आगे चली गई है. मित्र ने कहा- हां दुनिया इतनी तेज़ी से आगे जा रही है कि पढ़ने लिखने वाला आदमी पीछे छूट गया है.
अब यहां यानि फेसबुक पर भी आता हूं तो देखता हूं कि हर व्यक्ति वीडियो पर या तो खा रहा है. या खाना बना रहा है. या खाना बनाना सिखा रहा है. या फिर खाने की जगहों पर घुमा रहा है. दूसरे नंबर पर राजनीतिक ज्ञान और तीसरे पर सिनेमा का रिव्यू है…….मैंने इन तीनों को गलत नाम दे दिया है. यह सब कंटेंट है.
मैं आप सब कंटेंट हो चुके हैं चाहे कितना भी लड़ लें इन चीज़ों से. चाहे कुछ कर लें.हम मनुष्य कम हुए हैं.
Shiv
August 17, 2023 at 9:22 pm
Absolutely right … totally agreed….
Mai social media bahut Kam ya na ke barabar use krta hu aur bahut sukhi hu….