रायबरेली के वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र सिंह के पिता नारायण प्रताप सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. श्री सिंह पेशे से किसान थे. मार्च 2018 में पहली बार उन्हें बुखार की शिकायत हुई। स्थानीय इलाज के बाद डॉक्टरों के पैनल ने जांच करवाई जिसमें शरीर में खून की कमी देख उच्च अस्पताल में ले जाने की सलाह दी. महेंद्र अपने पिता को सहारा अस्पताल लखनऊ ले गए. सहारा अस्पताल के डाक्टरों ने किसिम-किसिम की जांच समेत बोन मैरो (अस्थि मज्जा) की भी जांच कराई. इसके बाद बताया कि उन्हें बोन मैरो अप्लासिया की बीमारी है.
उल्लेखनीय है कि बोन मैरो अप्लासिया में मरीज के शरीर में बोन मैरो यानि अस्थि मज्जा सूख जाता है और खून बनना क्रमश: बन्द हो जाता है. इस अवस्था में बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है. बोन मैरो ट्रान्सप्लांट के लिए श्री सिंह को फिर से पीजीआई ले जाया गया. वहां एक सारे टेस्ट दुबारा किये गए. इसके बाद डाक्टरों ने बताया कि पिताजी को ब्लड कैंसर है.
इस नई जानकारी के बाद ब्लड कैंसर का इलाज शुरू हुआ. फिर कैंसर की दवाएं देने के अलावा कीमोथेरेपी की प्रक्रिया भी शुरू हुई. डाक्टरों ने सब कुछ करने के बाद उन्हें स्वस्थ बताते हुए डिस्चार्ज कर दिया और दवाएं रेगुलर लिए जाने की हिदायत देते हुए घर ले जाने को कह दिया. कुछ समय बाद में पिताजी को फिर से दिक्कत शुरू हुई तो डॉक्टरों को दिखाया गया. नए सिरे से जांच के बाद पता चला कि अब उन्हें हेपेटाइटिस बी के संक्रमण ने घनघोर रूप से घेर रखा है. इसके बाद फिर उन्हें इसी पहली मार्च को फिर से पीजीआई ले जाया गया.
डॉक्टरों की टीम ने कई तरह की जांच के बाद बताया कि पिताजी को अब लिवर सिरोसिस की बीमारी ने कब्जे में कर रखा है. डाक्टरों ने इस बीमारी को खतरनाक बताते हुए इलाज की प्रक्रिया शुरू की. पुत्र महेंद्र ने इसके लिए डाक्टरों के पैनल को तैयार किया और फिर बड़े पैमाने पर जांच व इलाज की प्रक्रिया शुरू की गई. लेकिन ये कोशिश कामयाब न हो सकी.
22 मार्च को डाक्टरों ने बताया कि उनकी सारी कोशिशें के बावजूद पिताजी बचाए न जा सके.
पिता की शुरुआती बीमारी से लेकर मौत के समय तक साथ रहे महेंद्र सिंह के ऊपर इस घटनाक्रम के बाद ग़मों का पहाड़ टूट पड़ा. खबर मिलते ही अस्पताल में तमाम शुभचिंतक और साथियों का तांता लग गया. किसी को भी इस अनहोनी पर एक बार में विश्वास नहीं हुआ.
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र के पिता जी नारायाण प्रताप सिंह ने ब्लड कैंसर को चुनौती देने के बाद शुरुआती दौर में सफल रूप से बाहर आ गए थे लेकिन इस बीमारी ने दुबारा उन्हें इस कदर शिकंजे में कसा कि मौत उनसे हार न सकी.
होनी का लिखा कौन टाल सकता है.
देर रात तक जिले के वरिष्ठ नागरिकों, जनसेवकों, पत्रकार साथियों और अधिकारियों ने मृतक नारायण प्रताप सिंह के पुत्र महेन्द्र सिंह को घर जाकर जाकर ढांढस बंधाया और श्रद्धांजलि अर्पित की.