सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ने के बाद प्रिंट मीडिया के कर्मियों की जीत हुई. अखबार मालिक हारे. मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने के निर्देश दिए गए. लेकिन अखबार मालिकों ने कई तरीकों-बहानों से वेज बोर्ड देने से बचने की कोशिश की.
जो लोग चुप रहे, उन्हें बिना कुछ दिए चुपचाप लिखवा लिया कि हमें सब कुछ मिल रहा है.
जिन लोगों ने खुलकर मांग की, उन्हें पनिशमेंट ट्रांसफर मिला या नौकरी ले ली गई.
मीडिया हाउसों ने लोगों को परमानेंट रखने की बजाय नौकरी से इस्तीफा दिलाकर कांट्रैक्ट पर रखना शुरू कर दिया ताकि वेज बोर्ड के दायरे में आए ही नहीं.
यही नहीं, कई अखबारों ने तो पत्रकारों की नियुक्ति डिजिटल मीडिया के नाम पर बनाई कंपनी में कर दी और उनसे काम प्रिंट मीडिया का लेते रहे.
कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकारों की उदासीनता, नौकरशाही की किंकर्तव्यविमूढ़ता और मीडिया मालिकों की अमानवीयता के चलते वेज बोर्ड का लाभ कुछ मीडिया हाउसों के कर्मियों को ही मिल पाया.
बावजूद इसके, हर तीन माह पर मजीठिया वेज बोर्ड सबको मिल रहा है, ठीकठाक तरीके से मिल रहा है, इस टाइप की रिपोर्ट श्रम मंत्रालय की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट देने का आदेश दे रखा है. सो आदेश का पालन तो होना ही है. कागजों में मौसम गुलाबी दिखाना ही है. देखिए, अगली त्रैमासिक रिपोर्ट के लिए कैसी तैयारी शुरू हो चुकी है-

One comment on “अखबारों में मजीठिया वेज बोर्ड दिया जा रहा है या नहीं, हर तीन माह पर सुप्रीम कोर्ट में जाता है जवाब”
यदि मीडिया समूह झूठ लिखकर दे रहे है तो उसकी जाँच करके दण्डित करने की जवाबदारी किसकी है?
सीधे सीधे 420 बन जायेगी