संजय कुमार सिंह-
मनीष सिसोदिया पर आरोप उत्पाद नीति से सरकारी राजस्व को नुकसान होने और बदले में कमीशन लेने का है। सबूत के रूप में फोन नंबर बदलने और फोन उपकरण नष्ट करने का आरोप है। पैसे लेने-देने के आरोप का कोई सबूत नहीं है। गिरफ्तारी का कारण जांच में सहयोग नहीं करना बताया गया है। हालांकि हिरासत में लेकर पूछताछ करने से सजा भले दी जा सकती है सहयोग मिलने की कोई गारंटी नहीं है। मुख्य आरोप सरकारी नीति से राजस्व की हानि का है। सवाल उठता है कि सरकार का काम ही है नीति बनाना और इससे राजस्व का नफा-नुकसान होता ही है, जनता पर भार पड़ता है या उसे राहत मिलती ही है – यह अपराध कैसे है?
उदाहरण के लिए बिहार में पूर्ण शराबबन्दी है और राजस्व का नुकसान तो हो ही रहा है और यह नुकसान परोक्ष भी है। शराब बंदी के कारण बिहार की बीसियों शादी झारखंड से लोकर गोवा में हो रही है और राजस्व को नुकसान तो हो ही रहा है नागरिकों को परेशानी भी हो रही है और लोक पीकर दूसरे राज्यों में लुढ़के रहते हैं सो अलग। ऐसे आदेश के कारण बिना अपराध कई लोग जेल में हैं जो काम नहीं कर रहे हैं और मुफ्त में जेल की रोटी खा रहे हैं। क्या बिहार सरकार के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। इससे नकली शराब बनाने वालों की चांदी है, बिक रही है लोग पीकर मर रहे हैं सो अलग। जहां तक फोन नष्ट करने का आरोप है – सरकार ने यह भी तो नहीं बताया है कि उसने पेगासस खरीदा है कि नहीं। अपना फोन नष्ट करना अपराध कैसे है?
दिल्ली सरकार की उत्पाद शुल्क नीति में अगर कुछ गड़बड़ी या कमी है तो नोटंबदी से संबंधित नियम या जीएसटी में कमी नहीं थी? रोज क्यों बदलने पड़े और इससे किसी को परेशानी नहीं हुई। राजस्व का घाटा नहीं हुआ? कितने दिन उद्योग धंधे बंद रहे, बैंकों में सामान्य काम नहीं हुआ, घर में शादी थी – पैसे नहीं थे – कौन जिम्मेदार है, किसके खिलाफ कार्रवाई हुई। इसके लिए जिम्मेदार मंत्री / प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो मनीष सिसोदिया के खिलाफ क्यों? नोटबंदी से पैसे कमाने के आरोप तो कइयों पर हैं। उससे पहले नकद भुगतान पर पार्टी कार्यालय के लिए जमीन खरीदने के आरोप आम हैं। जांच भी नहीं हुई। सिर्फ मनीष सिसोदिया क्यों?
अरविन्द केजरीवाल का आरोप है कि उनके दो मंत्री अच्छा काम कर रहे थे उन्हें गिरफ्तार किया गया है क्योंकि भाजपा सरकार नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी की सरकार अच्छा काम करे। भाजपा का क्या जवाब है। क्यों नहीं है? पहली नजर में बात सही लगती है वरना दूसरे मामलों में भी कार्रवाई होती। उन मामलों में भी जिनकी सूची शशि थरूर ने जारी की है। इनमें नारायण राणे से लेकर बीएस येदुरप्पा तक साल मामले शामिल है। इनके अलावा, अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इनमें भ्रष्टाचार का ऐसा मामला है जो स्वयं दावा किया गया है और सिर्फ पुष्टि ही की जानी है लेकिन पूरी तरह सन्नाटा है।
दूसरी तरफ सरकार के खास और उनके खिलाफ हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट का मामला है। इस मामले में सरकार समर्थकों ने हिन्डनबर्ग पर ही आरोप लगाए हैं लेकिन इससे उनके आरोप निराधार या बेमतलब नहीं हो जाएंगे। अडानी समूह को पबलिक इश्यू का पैसा वापस करना, देश के पूंजी बाजार की साख खराब हुई, नियामक एजेंसियों की साख पर बट्टा लगा है और शेल कंपनी (जिन्हें बंद कराने का दावा सरकार 2014-16 से ही कर रही है) से पैसे लगाए जाने के आरोप हैं। क्या ये सब निराधार हैं? अगर हां तो सरकार ऐसा क्यों नहीं कह रही है और इनमें दम है तो जांच कराने में दिक्कत है। जांच नहीं करवाकर अडानी समूह को बचाया जा रहा है या उन एजेंसियों को जिन्होंने समय पर कार्रवाई नहीं।
दूसरी ओर, अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि मनीष सिसोदिया के पास कोई धन नहीं मिला है, उनके रिश्तेदारों के पास भी नहीं। ऐसे में, मनीष सिसोदिया ने पैसे खाए तो गए कहां और जिनने दिए उनके पास कहां से आए। सरकार को पता होना चाहिए। नकद के मामले में नियम इतने सख्त हैं फिर नकद देने वालों के खिलाफ भी तो कार्रवाई कीजिए। जिनके पास नकद थे और मनीष सिसोदिया को दिए उन्हें सामने लाइए और नकद रखने देने का मुकदमा चलाइए – हम आरोप पर यकीन कर लेंगे। चेक से दिया-लिया है तो वो बताइए। वरना ‘पूछताछ’ करते रहिए आरोप लगाना बंद कीजिए। कोई यकीन नहीं करेगा।
जो भी स्थिति हो साफ बताने में क्या दिक्कत है और चुप्पी का मतलब तो यही लगता है कि सबकुछ सर्वोच्च स्तर की जानकारी में हुआ है। इसका भी खंडन नहीं करने का क्या मतलब लगाया जाए। यही ना कि मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी इन सब मामलों से ध्यान हटाने की कोशिश में की गई है। सामान्य स्थितियों में मीडिया इस तरह के सवाल रोज उठा रहा होता और जनता में यह संदेश जाता कि सरकार ने वाकई गड़बड़ी की है अब गोदी मीडिया से यह दिक्कत तो नहीं ही है मनीष सिसोदिया या आम आदमी पार्टी की सरकार को बदनाम करने का अतिरिक्त लाभ है और उसका पूरा फायदा उठाया जा रहा है। इसके अलावा कुछ और स्थिति है तो वह बताया जा सकता है पर चुप्पी तो कोई हल नहीं है। यह अलग बात है कि मौनं स्वीकृति: लक्षणम् का अर्थ अब बदल गया है और बोलने वाला ही चोर बना दिया गया है।