महक सिंह तरार-
बचत आधी, कर्ज बेहिसाब व आपकी आमदनी डबल! अभी सरकारी नुमाइंदे का बयान आया की आम भारतीय की आमदनी डबल हो गई है। सोचो कोई अनपढ़ तुम्हारी जेब काट ले, फिर तुम्हारी ख़ाली जेब का मखौल विदेश में उड़ाये, तुम फिर उधार ले लेकर उसे टैक्स दो व बाप भी कहो! और बाप कहे की मैंने तुम्हारी इनकम डबल कर दी, है ना शर्मनाक …..
…पर तुम्हें शर्म नहीं आती क्यूँकि तुम तो महान हो…कोई तुम्हारे पैसे लूट ले तो तुम्हें फ़र्क़ नही पड़ता.. आख़िर तुम भारत की उस महान माँ-बाप जोड़ी की औलाद हो जिन्होंने तुम्हें धार्मिक पाठ पढ़ाया जैसे… गरीब पक्के ईमानदार व अमीर बैईमान ही होते है। पैसे वाले ख़राब पर गरीब दैवीय गुणसंपन्न होते है। पैसा क्या है हाथ का मेल ही तो है, फिर आ जायेगा …… तो फिर तुम्हें पैसे लुटने का ग़म काहे होता बे… भले दोबारा पैसा कमाने में *** का गुड़गाँव बन गया हो।
नीचे दो चार्ट लगा रहा हूँ। पहला बताता है कि पिछले साल आपकी घरेलू बचत आधी हो गई है व दूसरा बताता है कि पिछले दशक में आपके क़र्ज़े दुगने हो गये हैं। पर मुझे इसका डर नहीं, मुझे डर इस पोस्ट के सेकंड पार्ट से है…
एक बंदे की मार्केटिंग एक्स्पर्टीज़ ऐसी ज़बरदस्त है कि वो सारे विपक्ष को, नक़ली बुद्धिजीवियों को, अधे के लालची पत्रकारों को अपने प्रोपेगंडा में लपेट लेता है। ध्यान से याद करो किन किन ने पिछले महीने बिरयानी भसड़ पर, क्रिकेट-बॉलीवुड पर, मूर्थल वाले भावी IAS आकास पर, रामनवमी में जनक से सवालो पर, आरिफ़-सारस की प्रेम कथा पर, अतीक अहमद के मूत इत्यादि ग़ैर उत्पादक मुद्दों पर पोस्ट करके आपका कोर मुद्दों से ध्यान भटकाया है…
यार चलते चलते छोटी सी बात बताता हूँ। LPG तो बिलकुल आम आदमी की जेब में सीधा पैसा डालने-निकालने का खेल है। तो उसी का एग्जाम्पल देता हूँ
2004-2014 तक मनमोहन ने आम आदमी की जेब में सिर्फ़ एलपीजी की मद में 2,14,000 करोड़ रुपये दिये, मने सब्सिडी और इसके बावजूद मिसेज़ ईरानी से लेकर सारे तथाकथित फ़िल्मस्टारों तक ने उन्हें LPG महंगी करने पर गरियाया।
पिछले नौ साल में एक बंदे ने सब्सिडी दी मात्र 36,500 करोड़ यानी के अगर महंगाई का हिसाब या इकॉनमी ग्रोथ को भी भूल जाऊँ तो उसने इनडायरेक्टली आम आदमी की जेब से एक लाख सत्तातर हज़ार पाँच सौ करोड़ निकाल लिये(यार को भी देने थे ना) मगर सारे देश के पेट्रोल पम्प पर लगे बोर्ड बताते है की बंदे ने उज्ज्वला योजना से गरीब की जेब भर दी।
सोचो
एक सरदार जी ने तुम्हारी 2.14 लाख करोड़ से मदद की मगर मदद करके भी बदनाम, दूसरा 1,77,500 करोड़ तुम्हारी जेब से खींच कर भी “सबका साथ सबके विकास” का दावा छाती ठोक कर कर पाता है।
इस सामाजिक सोच का क्षरण होने का कारण क्या है, क्यूँ असल मुद्दों को फेसबुक सेलिब्रिटीज़ द्वारा दरकिनार किया जाता है। आख़िर क्यों सरेसाम लूटने वाले से लुट कर भी लुटे लोग लुटेरे को बाप कहते है ?