Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

यूपी सियासत में बढ़ी मुस्लिम वोटों के सौदागरों की संख्या, मुलायम अब हिन्दू कार्ड भी खेल रहे

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक कालखंड ऐसा भी रहा था, जब परस्पर विरोधी भाजपा नेता कल्याण सिंह और समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की सूबे की सियासत में तूती बोलती थी। भाजपा नेता और मुख्यमंत्री रह चुके कल्याण सिंह को उनके समर्थक हिन्दू हदय सम्राट की उपाधि देते नहीं थकते थे तो मुलायम सिंह की छवि मुल्ला मुलायम वाली थी।  दोनों की ही सियासत को परवान चढ़ाने में अयोध्या से जुड़े एक विवाद(राजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मसला)का अहम रोल रहा। कल्याण सिंह ने जहां भगवान राम के नाम का जाप कर-करके अपनी हिन्दुत्ववादी छवि को चमकाया, वहीं मुलायम ने बाबरी मस्जिद के सहारे मुसलमानों के बीच अपना जनाधार बढ़ाया। हाल यह था कि कल्याण सिंह के समर्थक मुलायम का नाम सुनते ही लाल- पीले हो जाते थे तो मुलायम समर्थक कल्याण सिंह का नाम आते ही मुट्ठी तान लेते थे।

<p><span style="font-size: 8pt;">अजय कुमार, लखनऊ</span> </p> <p>उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक कालखंड ऐसा भी रहा था, जब परस्पर विरोधी भाजपा नेता कल्याण सिंह और समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की सूबे की सियासत में तूती बोलती थी। भाजपा नेता और मुख्यमंत्री रह चुके कल्याण सिंह को उनके समर्थक हिन्दू हदय सम्राट की उपाधि देते नहीं थकते थे तो मुलायम सिंह की छवि मुल्ला मुलायम वाली थी।  दोनों की ही सियासत को परवान चढ़ाने में अयोध्या से जुड़े एक विवाद(राजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मसला)का अहम रोल रहा। कल्याण सिंह ने जहां भगवान राम के नाम का जाप कर-करके अपनी हिन्दुत्ववादी छवि को चमकाया, वहीं मुलायम ने बाबरी मस्जिद के सहारे मुसलमानों के बीच अपना जनाधार बढ़ाया। हाल यह था कि कल्याण सिंह के समर्थक मुलायम का नाम सुनते ही लाल- पीले हो जाते थे तो मुलायम समर्थक कल्याण सिंह का नाम आते ही मुट्ठी तान लेते थे।</p>

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक कालखंड ऐसा भी रहा था, जब परस्पर विरोधी भाजपा नेता कल्याण सिंह और समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की सूबे की सियासत में तूती बोलती थी। भाजपा नेता और मुख्यमंत्री रह चुके कल्याण सिंह को उनके समर्थक हिन्दू हदय सम्राट की उपाधि देते नहीं थकते थे तो मुलायम सिंह की छवि मुल्ला मुलायम वाली थी।  दोनों की ही सियासत को परवान चढ़ाने में अयोध्या से जुड़े एक विवाद(राजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मसला)का अहम रोल रहा। कल्याण सिंह ने जहां भगवान राम के नाम का जाप कर-करके अपनी हिन्दुत्ववादी छवि को चमकाया, वहीं मुलायम ने बाबरी मस्जिद के सहारे मुसलमानों के बीच अपना जनाधार बढ़ाया। हाल यह था कि कल्याण सिंह के समर्थक मुलायम का नाम सुनते ही लाल- पीले हो जाते थे तो मुलायम समर्थक कल्याण सिंह का नाम आते ही मुट्ठी तान लेते थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

टकराव दोनो दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तक ही नहीं सिमटा था दोनो नेता (कल्याण-मुलायम) भी एक-दूसरे के खिलाफ ‘तलवार’ निकाले रहते थे। दोनों ही नेता उने मंचों और समारोह से भी दूरी बनाकर चलते थे, जहां दोनों का आमना-सामना हो सकता था, लेकिन समय बलवान होता है।  जो लोग कल्याण सिंह और मुलायम को नदी के दो पाट मानते थे, उनके जेहन में शायद कभी अमर सिंह का नाम नहीं आया होगा।  जो काम सबके लिये असंभव था, उसे अमर सिंह ने कर दिखाया।  वर्ष 2009 में समाजवादी पार्टी के आगरा अधिवेशन में अमर सिंह के प्रयास से कल्याण-मुलायम एक मंच पर नजर आये तो यूपी की सियासत में हाहाकार मच गया।

चर्चा यह भी छिड़ी थी की कल्याण सिंह (उस समय भाजपा से बाहर चल रहे थे) को समाजवादी पार्टी ज्वांइन कराकर लोकसभा चुनाव  लड़ने का आफर तक दिया गया था। कल्याण-मुलायम को एक मंच पर लाने और कल्याण को सपा के टिकट पर चुनाव लड़ाने के पीछे की सियासी सोच यही थी कि किसी तरह से मुलायम की मुल्ला मुलायम वाली छवि जिसके कारण हिन्दू वोटर सपा से बिदक रहे थे,  का रंग थोड़ा फीका किया जा सके।  परंतु इस पर बात बनती उससे पहले ही समाजवादी पार्टी में बवाल खड़ा हो गया।  आजम खान ही नहीं सपा के अन्य कई मुस्लिम नेताओें ने भी बगावत कर दी।  विरोधी हमलावार हो गये तो आम मुसलमान के बीच भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई। मुलायम के मुंह लगे आजम खान ने इस प्रकरण से नाराज होकर समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया।  सपा में सब कुछ अप्रत्याशित हो रहा था।  मुलायम ने अपना दांव उलटा पड़ते देख, कदम पीछे खींच लिये तो अमर सिंह का पार्टी में रूतबा कम हो गया।  कालांतर में जिसकी परिणिति अमर की समाजवादी पार्टी से विदाई के रूप में हुई।  6 जनवरी 2010 को अमर सिंह ने सपा के सभी पदों से इस्तीफा दिया तो 2 फरवरी 2010 को पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह वह दौर था जब बड़ी तादात में लोग यह मानने लगे थे कि समाजवादी पार्टी में अमर सिंह का कद मुलायम से भी बड़ा हो गया है, लेकिन कल्याण प्रकरण के बाद अमर सिंह के लिये समाजवादी पार्टी में रहना मुश्किल हो गया।  अमर सिंह जिन्हें बाद में समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था।  अब करीब छहःवर्षो के पश्चात एक बार फिर उनकी(अमर सिंह)सपा में वापसी की चर्चा छिड़ी है। भले ही आजम खान यह कहते हुए घूम रहे हों कि अमर सिंह दगा कारतूस हैं, सपा में वापस नहीं आ रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि अमर की वापसी की खबरों ने आजम ही नहीं उनके जैसे तमाम सपा नेताओं की नींद उड़ा रखी है।

खैर, यहां चर्चा अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में वापसी की संभावनाआंें को लेकर नहीं हो रही है।  इस घटना का जिक्र प्रसंगवश किया गया था। दरअसल,  तब भी मुलायम पार्टी का वोट बैंक बढ़ाने को लेकर चिंतित थे और आज भी उनकी यही फिक्र हैं। मुलायम को डर सता रहा है कि कहीं एम-वाई (मुस्लिम-यादव) के सहारे 2017 की बैतरणी पार करने की उनकी तमन्ना अधूरी न रह जाये। इसीलिये मुलायम सिंह यादव मुसलमानों को लुभाने के साथ-साथ हिन्दुत्व के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने में जुट गये हैं।  एक ओर नेताजी को वह अमर सिंह याद आ रहे हैं जो हिन्दुत्व क प्रतीक कल्याण सिंह को उनके (मुलायम सिंह) करीब लाये थे तो दूसरी तरफ नब्बे के दशक में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना पर भी मुलायम अफसोस जाहिर कर रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बताते चलें, मुलायम उस समय मुख्यमंत्री थै।  लाखों की संख्या में कारसेवक रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के पास जमा हो गये तो बतौर सीएम उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया, जिसमें 16 कारसेवकों की मौत हो गई थी।  तब से लेकर आज तक इस मुद्दे पर शांत रहने वाले मुलायम ने हाल ही में एक न्यूज चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा था कि वह एक दर्दनाक फैसला था, लेकिन उस समय मेेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। मुलायम का हिन्दू प्रेम ऐसे ही नहीं जागा है। इसके पीछे सटीक कारण हैं। राजनीति की पैनी नजर रखने वाले नेताजी जानते हैं कि 2017 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अलावा भी मुस्लिम वोटों के कई सौदागर मैदान में ताल ठोंकते दिखाई देंगे। चाहें ओवैसी हो या नीतिश-लालू की जोड़ी अथवा बहुजन समाज पार्टी सबकी नजरें मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की है, जबकि हिन्दू वोटरों का सौदागर सिर्फ भाजपा बनी हुई है।  ऐसे में मुलायम को हिन्दू वोट बैंक में सेंध लगाना ज्यादा आसान लगा तो उन्होंने हिन्दुत्व के एजेंडे को ही आगे बढ़ा दिया। 

सपा प्रमुख मुलायम ने यह पैतरा ऐसे समय में चला है जब समाजवादी पार्टी और अखिलेश सरकार मिशन 2017 का लक्ष्य हासिल करने के लिये चारो तरफ हाथ-पैर मार रही है।  पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात की बेहद चिंता सता रही है कि सपा के वोट बैंक में बिखराव हो रहा है। समाजवादी पार्टी को मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव की तो चिंता है ही इसके अलावा भी सपा जिन पिछड़ों को अपनी सियासी पूंजी मानती थी, उसमें से यादवों को छोड़कर करीब-करीब अन्य सभी पिछड़ा वर्गो का सपा से मोहभंग होता दिख रहा है। समाजवादी पार्टी के नेता जानते हैं कि भले ही 2012 के विधान सभा चुनाव में उनके खाते में 224 और बसपा के खाते मं 80 सीटें आईं थीं, लेकिन दोनों पार्टिंयों को मिलने वाले वोट प्रतिशत में मात्र तीन प्रतिशत का अंतर था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

समाजवादी पार्टी को 29.2 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 80 सीटंे जीतने वाली बसपा का वोट प्रतिशत 25.9 था। भाजपा 15 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे और कांग्रेस 11.6 प्रतिशत वोट हासिल कर चौथे स्थान पर रही थी।  2014 के लोकसभा चुनाव आते-आते समाजवादी पार्टी का जनाधार 07 प्रतिशत घट गया। सपा को मात्र 22.2 प्रतिशत वोट मिले।  वहीं बसपा को 2012 के विधान सभा चुनावों के मुकाबले 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 06 प्रतिशत का नुकसान हुआ था।  बसपा 20 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी थी। लोकसभा चुनाव के समय यूपी में भले ही बसपा का वोट बैंक घटा था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वह सबसे अधिक वोट पाने वाले दलों में तीसरे नंबर पर रही थी। बसपा को पूरे देश में 4.1 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि समाजवादी पार्टी  3.4 प्रतिशत वोटों के साथ तृणमूल कांग्रेस के बाद पांचवें स्थान पर रही थीं। हॉ,  यह जरूर था कि सपा से अधिक वोट पाने के बाद भी बसपा का एक भी सांसद नहीं जीता था, जबकि सपा पांच सीटों पर जीतने में कामयाब रही थी।

2014 के लोकसभा चुनाव के समय यूपी में मोदी अपने आप को पिछड़ों के नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर चुके थे, अब बसपा भी गैर यादव पिछड़ोे पर डोरे डालने लगी है।  दूसरी तरफ मुसलमान भी समझ नहीं पा रहा है कि समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया मुलायम सिंह पर कितना भरोसा किया जाये। इसकी वजह भी है।  2012 में समाजवादी पार्टी ने चुनाव के समय मुसलमानों से जो वायदे किये थे, उन्हें अखिलेश सरकार भले ही पूरे कर देने की बात कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।  मुसलमानों को इससे कोई फायदा नहीं हुआ है।  इसके अलावा अखिलेश कैबिनेट में भी उस अनुपात में मुस्लिम नेताओं को नहीं लिया गया है, जिस अनुपात में वह जीतकर आये थे। इसी प्रकार मुलायम सिंह का बार-बार दादरी के बिसाहड़ा में भीड़ द्वारा अखलाक नामक व्यक्ति की हत्या के लिए बीजेपी के तीन नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना और यह कहना कि अगर प्रधानमंत्री कहें तो वह उन तीनों के नाम बताने को तैयार हैं। वाली बात मुसलमानों को रास नहीं आ रही है। वह सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसी कौन सी मजबूरी है जो मुलायम उक्त बीजेपी नेताओं का नाम सार्वजनिक नहीं करके उन्हें बचा रहे हैं। ऐसी ही बातों और बीजेपी के प्रति नेताजी का अक्सर दिखता झुकाव मुसलमान वोटरों को रास नहीं आता है। यह परेशानी सबब न बन जाये इसी चिंता में डूबे मुलायम और समाजवादी सरकार ने अब हिन्दूु कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

2012 के विधान सभा चुनाव के समय सपा को मुस्लिम वोटों की चिंता सता रही थी तो 2017 में उसे हिन्दू वोट बैंक की भी चिंता सताने लगी है। संभवताःइसी लिये पिछले वर्ष सितंबर के महीने में अखिलेश सरकार द्वारा हिन्दुओं की सबसे पवित्र धार्मिक मानसरोसवर यात्रा पर जाने वाले भक्तों के लिये सब्सिडी 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दी गई थी। इससे पूर्व अखिलेश सरकार द्वारा  शुरू की गई ‘समाजवादी श्रवण यात्रा’ भी इसी कड़ी का एक हिस्सा था। जिसके माध्यम से प्रदेश के बुजुर्ग श्रद्धालुओं को यूपी सरकार के खर्चो पर पूरे देश के धार्मिक स्थलों की यात्रा कराई जा रही है। अभी तक हजारों बुजुर्ग इस यात्रा का फायदा उठा चुके हैं। इसी तरह से अखिलेश सरकार 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्यभर के मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करने जा रही है।

अखिलेश सरकार की सवर्ण समाज के वोटों पर नजर है।  उत्तर प्रदेश में अधिकतर मंदिरों का प्रबंधन सवर्ण जातियों से आने वाले पुजारियों के हाथ में है।  यूपी सरकार की कोशिश है कि हर जिले में कम से कम एक मंदिर का जीर्णोद्धार हो। इस सिलसिले में राज्य सरकार की धार्मिक मामलों के विभाग ने हर जिले के जिलाधिकारी को अपने जिले से एक महत्वपूर्ण मंदिर का ब्यौरा उपलब्ध कराने के लिए कहा है।  विभाग के निर्देश के बाद अब तक 34 जिलों से सरकार को प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इसी प्रकार वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह मथुरा और विध्यांचल के मंदिर मंे भी रिसीवर नियुक्त कर न्यास बनाये जाने की चर्चा चल रही है ताकि यहां आने वाले भक्तों को सुविधाएं मिल सकें। अभी इन मंदिरों में पंडो और मठाधीशों का दबदबा है, जिनके बारे में यहां आने वाले श्रद्धालुओं का अनुभव अच्छा नहीं है।  यह लोग मंदिर पर आने वालेे चढ़ावे से लेकर श्रद्धालुओं को प्रसाद, दान-पुण्य के नाम पर खूब लूटते हैं। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

खैर, बात अगर कारसेवकों पर गोली चलाने के लिये मुलायम सिंह द्वारा दुख व्यक्त करने की कि जाये तो मामला यहीं तक सीमित नहीं है।  अयोध्या को लेकर समाजवादी सरकार काफी नरम रूख अपनाये हुए है। बीते साल के मध्य में राजस्थान से जब पत्थरों की खेप अयोध्या पहुंची तो ऐसा लगा कि अखिलेश सरकार इस पर कोई सख्त कदम उठायेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि समाजवादी पार्टी के नेता बुक्कल नबाव स्वयं अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण की वकालत करते हुए मीडिया में दिखाई देने लगे। वह मंदिर निर्माण के लिये दान देने की भी बात कर रहे थे। नबाव साहब की बातों को गंभीरता से इस लिये जा रहा है क्योकि उनकी गिनती मुलायम सिंह के करीबियों में होती है। अयोध्या में मंदिर निर्माण की वकालत करने के चलते अखिलेश सरकार के राज्य मंत्री ओमपाल नेहरा को भले ही पद गंवाना पड़ गया था, लेकिन बुक्कल नबाव पर आंच तक नहीं आई।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिये राजस्थान से पत्थर आ रहे थे और अखिलेश सरकार चुप्पी साधे हुए थी। इस संबंध में जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछा गया तो उन्होंने कोई कार्रवाई करने की बजाये यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ‘‘अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर में हर हाल में न्यायालय के निर्देशों का पूरी सख्ती से कार्यान्वयन एवं अनुपालन सुनिश्चित कराया जाएगा।  प्रदेश में कानून व्यवस्था को खराब करने की किसी को इजाजत नहीं दी जाएगी क्योंकि अयोध्या का यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। ’’जबकि इससे पूर्व गृह विभाग के प्रमुख सचिव देवाशीष पांडा ने कहा था कि राज्य सरकार राम मंदिर के लिए अयोध्या में पत्थर नहीं आने देगी। ‘‘चूंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, लिहाजा सरकार अयोध्या मुद्दे के बाबत कोई नई परंपरा शुरू करने की इजाजत नहीं देगी।’’ वहीं एडीएम सिटी आरएन शर्मा ने भी कहा था कि पत्थर दान व राजस्थान से पत्थर मंगाए जाने की न कोई अनुमति ली गई है,  न ही उनके संज्ञान में मामला है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का निर्माण ऐसा मसला है जिसपर हमेशा वोट बैंक की सियासत होती रहती है। अयोध्या में पत्थर लाये जाने की घटना पर अखिलेश सरकार ने भले ही(हिन्दुत्व के एजेंडे को धार देने के लिये) चुप्पी साध ली थी, लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती ने इसके सहारे मुसलमानों को रिझाने का मौका नहीं खोया।  माया ने अखिलेश सरकार पर पत्थरों को अयोध्या आने से नहीं रोकने के लिये तंज कसते हुए इसे समाजवादी पार्टी और भाजपा की सांठगांठ बता कर राजनैतिक चाल चल दी। बसपा सुप्रीमों मायावती बीजेपी-सपा के बीच गठजोड़ की बात करके मुस्लिम वोटरों में संशय पैदा करने का कोई भी मौका छोड़ती नहीं हैं।  बहरहाल,  तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच 2017 में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता है।

लेखक अजय कुमार यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement