इंदौर में पत्रकार जगत मजीठिया के मामले में अब भी खुलकर सामने नहीं आ रहा है। ज्यादातर पत्रकार संगठन भी मौन हैं। मजीठिया वेज बोर्ड मामले को लेकर प्रबंधन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दबंग दुनिया के एक पत्रकार प्रमोद दाभाडे और उनके एक साथी ने उठाई है।सूत्रों का दावा है कि इंदौर में कई सहायक श्रमायुक्तों को अलग-अलग जिलों के प्रभार सौंपा गया है, लेकिन वे केवल अपने केबिन में दुबककर बैठे हैं। इन्हें मीडिया कार्यालय में जाकर कार्रवाई करने में पसीने आ रहे हैं।
एक सहायक श्रमायुक्त ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बड़े अधिकारी ही कार्रवाई नहीं करना चाहते हैं। इनके पास जमकर पैसा आया है इसलिए यह किसी पर हाथ डालने से डर रहे हैं। कायदे से यह किया जा सकता है कि ग्वालियर की टीम इंदौर में इंदौर की टीम ग्वालियर में प्रेस मालिकों के संस्थान पर छापमार कार्रवाई कर दस्तावेज जब्त कर निकल जाए, लेकिन इतनी हिम्मत श्रमायुक्त द्वारा दिखाई नहीं जा रही है।
इंदौर में कई ऐसे अखबार हैं, जहां पत्रकार और कर्मचारियों को मजदूरों से भी कम वेतन मिल रहा है, लेकिन नौकरी के डर से एक भी पत्रकार व कर्मचारी खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि 8 अगस्त 2016 को प्रमोद दाभाडे की शिकायत पर मजीठिया के संबंध में प्रमोद दाभाड़े और उनके साथी को सुनवाई के लिए श्रम आयुक्त कार्यालय में बुलाया गया था , लेकिन दबंग दुनिया अखबार की ओर से कोई हाजिर नहीं हुआ। इसलिए अगली तारीख 31 अगस्त 2016 लगा दी गई।
इधर प्रेस क्लब के चुनाव में 3 करोड़ रुपए खर्च करने से जुड़े विवाद में हाईकोर्ट में कई याचिका लगाने वाले चुनाव जीतने के बाद गुपचुप बैठकर रह गए हैं। जबकि इस चुनाव में प्रमोद दाभाडे द्वारा जमकर मजीठिया वेतन आयोग का मुद्दा उठाया गया था। इस टीम द्वारा मजीठिया वेतन के संबंध में सी फार्म भर कर उसी आधार पर
श्रमायुक्त कार्यालय में केस दर्ज किया गया है। इस संबंध में वकीलों का कहना है कि श्रमायुक्त को यह अधिकार ही नहीं है। केवल श्रमायुक्त कोर्ट से आरसी जारी होने पर उगाही करवा सकते हैं, लेकिन आपकी सुनवाई नहीं कर सकते हैं।
इधर भडास में लगातार चल रही मजीठिया वेतन आयोग की खबर से कई अखबार मालिकों ने अपने अपने ऑफिस में भड़ास को लॉक कर दिया है। प्रमोद की तरफ से प्रेस क्लब व मीडिया के 450 सदस्यों को प्रेस-1 और प्रेस 2 नामक दो ग्रुप में जोड़कर बाकायदा भडास में छपी खबरों की जानकारी दी जा रही है।फिलहाल इतना तो तय है भड़ास का खौफ अखबार मालिकों को बेचैन किए है।
एक पत्रकार द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट पर आधारित