मुंबई : मोदी सरकार ने १० जुलाई को हुई कैबिनेट बैठक में हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल 2019 को मंजूरी दे दी है। इस नये बिल में पत्रकारों के लिये बने श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और अन्य प्रावधान) अधिनियम 1955 के साथ साथ श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम 1958 को भी शामिल किया गया है। इसके तहत कर्मचारियों के कार्यालय, सुरक्षा, स्वास्थ्य और वर्किंग कंडीशन को लेकर कई कदम उठाए गए हैं। हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल के प्रावधानों के अनुसार दफ्तर में अब महिलाओं के लिए वर्किंग आवर 6 बजे सुबह से 7 बजे शाम के बीच ही रहेगा। अगर 7 बजे शाम के बाद वर्किंग आवर तय किया जाता है तो महिला कर्मचारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की होगी।
इसी तरह ओवरटाइम लेने से पहले कर्मचारी की सहमति लेनी जरूरी होगी और महीने में अधिकतम ओवरटाइम 100 घंटे की बजाय 125 घंटे हो सकेंगे। इसके आलावा ग्रैंड पैरेंट्स को मिलने वाली सुविधाएं अब डिपेंडेंट ग्रैंड पैरेंट्स को भी मिल सकेंगी। कंपनी में बच्चों के लिए क्रेच (बच्चों का पालना घर) और कैंटीन जैसी सुविधा जरूरी होगी। वहीं तय उम्र के बाद कर्मचारियों के लिए मुफ्त हेल्थ चेकअप की सुविधा होगी। इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ही ”श्रमिक सम्मान योजना” के तहत मजदूरों को 3000 प्रति महीना पेंशन के बिल को हरी झंडी दे दी गई थी। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ”कोड आफ आक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन बिल, 2019” को मंजूरी दी है।
यह बिल अपने आप में काफी महत्वपूर्ण बिल माना जा रहा है क्योंकि इस बिल में कंपनियों पर कर्मचारियों के हितों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी दी गई है। इस बिल के मुताबिक कामगारों की न्यूनतम मजदूरी प्रतिदिन के हिसाब से 178 रुपये तय की गई है। इसका मतलब यह हुआ कि देश के किसी भी राज्य में मजदूरों को 178 रुपये से कम दिहाड़ी (मजदूरी) नहीं दी जा सकती है। हालांकि सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि अगर कोई राज्य 178 रुपये से अधिक मजदूरी देता है तो उसका स्वागत है।
इसके अलावा मजदूरों को हर महीने की एक निश्चित तारीख को वेतन दे दी जाएगी। वास्तव में देश में अन्य विविधता की तरह मजदूरों की श्रेणी में भी विविधता पाई जाती है और अलग-अलग क्षेत्रों में काम करनेवाओं के लिए अलग अलग कानून बनाए गए हैं। कई बार कानूनों की विविधता के कारण मजदूरों को सुविधाएँ मिलने और उनके लिए सेवा की शर्ते लागू होने में कठिनाई हो रही थी। इसी कारण एकरूपता के मद्देनजर सरकार ने 13 अलग अलग श्रम कानूनों को मिलाकर एक नए कानून बनाने का फैसला किया गया है।
नए कानून में कारखाना अधिनियम 1948 , खदान अधिनियम 1952; बंदरगाह श्रमिक (सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण) कानून, 1986 , भवन और अन्य निर्माण कार्य (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) कानून 1996, बागान श्रम अधिनियम 1951, संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 , अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम 1979, श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और अन्य प्रावधान) अधिनियम 1955, श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम 1958, मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम 1961, बिक्री संवर्धन कर्मचारी (सेवा शर्त) अधिनियम 1976, बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार शर्तें) अधिनियम 1966 और सिनेमा कर्मचारी और सिनेमा थिएटर कर्मचारी (अधिनियम 1981) जैसे कानूनों को मिला दिया जाएगा और सभी के लिए एक ही कानून लागू होगा।
एक अनुमान के मुताबिक इस नए कानून से 40 करोड़ कामगारों को फायदा होगा। खनन और बंदरगाह जैसे क्षेत्र में जहां एक भी कर्मचारी काम करता है, कानून उस पर लागू होगा। वास्तव में देश में कई ऐसे कारोबार हैं जहां कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र नहीं मिलता। बिल में उसका भी प्रावधान किया गया है। सरकार ने दावा किया है कि देश के कार्यबल के लिये स्वस्थ और सुरक्षित कामकाज की स्थितियाँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से नई श्रम संहिता का दायरा मौजूदा बड़े औ़द्योगिक क्षेत्रों से बढ़ाकर उन सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों तक कर दिया गया है जहाँ 10 या उससे अधिक लोग काम करते हैं। इसमें सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और कार्यस्थलों में कामकाज की बेहतर स्थितियाँ श्रमिकों के कल्याण के साथ ही देश के आर्थिक विकास के लिये भी पहली शर्त है क्योंकि इनसे देश का स्वस्थ कार्यबल ज्यादा उत्पादक होगा और कार्यस्थलों में सुरक्षा के बेहतर इंतजाम होने से दुर्घटनाओं में कमी आएगी। यह कर्मचारियों के साथ ही नियोक्ताओं के लिये भी फायदेमंद होगा। लेकिन सवाल खड़ा होता है कि महज कानून बना देने से कर्मचारियों को फायदा नहीं होने वाला है क्योंकि कई कंपनियां कानून को लागू नहीं करती हैं और कर्मचारी विषम परिस्थिति में और जैसे तैसे काम करने को मजबूर होते हैं।
ऐसे में सरकार को कानून बनाने के साथ उसे लागू करने को लेकर भी सजग होना होगा तभी कर्मचारी लाभान्वित हो सकेंगे। सिर्फ कागजों पर कानून बना देने से मजदूरों और कर्मचारियों को भला नहीं होने वाला है। बहरहाल काफी समय से हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल जैसे कानून की आवश्यकता महसूस की की जा रही थी। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने अब नया कानून तैयार किया है। फिलहाल कानून को मंत्रिमंडल की हरीझंडी मिल गई है और जल्द ही इसे लोकसभा और उसके बाद राज्यसभा में पेश किया जाएगा। उसके बाद कानून देशभर में लागू होगा। उम्मीद है नए कानून के आने से देश में निजी क्षेत्र में काम करनेवाले पत्रकारों को राहत मिलेगी।
फिलहाल पत्रकारों के लिये बने पूर्व के कानून को नये बिल में शामिल करने को लेकर देशभर के पत्रकार संगठनों और मीडिया हाउसों में उहापोह की स्थिती है। कुछ लोग इसे सही बता रहे हैं तो कुछ इसे पत्रकारों के लिये बने पूर्व के कानून से छेड़छाड़ बता रहे हैं। फिलहाल इस पर अध्ययन किया जा रहा है।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५
Madan Tiwary
July 14, 2019 at 7:08 pm
इसमे सजा के प्रावधान क्या है ?या यह सिर्फ हाथी का दांत है ?याद रखिये यह। कोड है ,कोई एक्ट नही, अगर इसका उलननघन होता है तो सजा का क्या प्रावधान है ?मुझे लगता है कि शशिकांत जी आप कानून को समझते कम है व्याख्यित ज्यादा करते है, सरकार जब किसी पूंजीपति के पक्ष में कोई एक्ट या कोड या रूल्स लाती है तो वह इस तरीके से ड्राफ्ट किया जाता है कि आम व्यक्ति को लगे कि वह उसके फायदे के लिए है ,178 न्यूनतम मजदूरी और ओवर टाइम की अवधि 100 से 125 घण्टे बढाने का मतलब समझ रहे है ? अब यह फालतू का तर्क मत दीजियेगा कि ओवर टाइम के लिए कामगारों की सहमति अनिवार्य होगी , यह बचकाना तर्क होगा 20 j के तहत तकरीबन सभी अखबारकर्मियो से अखबार मालिकों ने दस्तखत करवा लिया था ? हटाइये इस तरह के वाहियात पोस्ट को ,मुझे आप कामगारों के हितैषी कम दुश्मन ज्यादा नजर आ रहे है।