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एनडीटीवी वाले रॉय दंपति को बेचने के लिए घेर लिया गया था!

संजय कुमार सिंह-

जब बेचने के लिए घेर लिया जाए… रॉय दंपति ने जो किया उसके बारे में निर्णय लेना बहुत आसान है, कुप्रबंधन के लिए उन्हें दोष देना, अपनी आत्मा बेचने की बात करना, हमें धोखा देना आदि आदि। हम में से कोई भी हॉट सीट पर नहीं बैठा था। वे हमलों का सामना कर रहे थे। उन्हें घेर लिया गया था। वे बंधक जैसी स्थिति में थे। वे तब तक डटे रहे जब तक डटे रह सकते थे। वे तब तक लड़े जब तक लड़ सकते थे। एक अल्पसंख्यक शेयरधारक तब तक कुछ नहीं कर सकता जब तक कि आप ज़ी के सुभाष चंद्रा नहीं हैं और प्रतिष्ठान आपका समर्थन करता है। दुर्भाग्य से, रॉय दंपति एनडीटीवी थे।

उनके मन को समझने के लिए आपको एक उद्यमी होने की जरूरत है। जब आप जीवन के 35 साल, पसीना और पैसा एक ऐसा भव्य और विशाल मंच बनाने के लिए निवेश करते हैं जो समाज को प्रभावित करता है, उसपर असर डालता है और समाज की मदद करता है, तो यह सब त्याग देने का दर्द एक परिवार में मृत्यु की तरह है। बेशक, उनकी कुछ गलतियां थीं। पर वे वर्षों संघर्ष में रहे। उनने हर नियामक, टैक्स वालों और अधिकारों का सामना किया। वे अदालतों, पुलिस थानों, पंचाट और न्यायिक मंचों पर उन कारणों से थे जो वाजिब नहीं हैं। एक समय उन्हें हारना पड़ा। उनका अपना बोर्ड उनके खिलाफ था। वे अब अल्पसंख्यक हैं। और भारत में हम सब अल्पसंख्यकों की किस्मत जानते हैं !!

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मुझे उम्मीद है कि उनके पास एक शांतिपूर्ण सेवानिवृत्त जीवन होगा। उन्हें इसकी आवश्यकता है।

Peri Maheshwer की पोस्ट का अनुवाद। शीर्षक मेरा है। बेचने की मजबूरी को समझो मितरों – के तहत कल रात की एक अलग पोस्ट है जो ये है…

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बेचने की मजबूरी को समझो मितरों

खेल समझने की जरूरत है। वैसे भी अच्छे दिन चल रहे हैं। नामुमकिन मुमकिन है। एनडीटीवी से प्रणय राय और राधिका राय बेदखल हो गए। भलमनसाहत में, अंग्रेजियत की नफासत के साथ दून स्कूल शैली में लिखी विज्ञप्ति के आधार पर कुछ लोग कह और बता रहे हैं कि सब ठीक ठाक है या था। उनका था उनने बेच दिया। माल कमाया, पैसे मिल गए आदि आदि। इस आधार पर कुछ लोग समझ और समझा रहे हैं कि कब्जे का सारा हल्ला यूं ही था।

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तो भाइयों, होस्टाइल कॉरपोरेट टेकओवर ऐसे ही होते हैं। इसे रोकने के कई उपाय हैं, सरकारी स्तर पर। कभी उसकी भी चर्चा करूंगा। फिलहाल यह मामला बेचने का नहीं, जबरन खरीदने का है और जब बेचना मजबूरी थी तो सब सद्भावनापूर्ण माहौल में हुआ तो क्या हो गया? वैसे भी, मजबूरी में सहमति से अपराध कम नहीं होता है। पर कॉरपोरेट मामला अलग है। किसी भी कंपनी में दो तरह का हिस्सा होता है। एक वह जो कर्मचारियों के पास भी बहुत कम मात्रा में हो सकता है। दूसरा जो किसी के पास इतना ज्यादा होता है कि कंपनी पर उसका नियंत्रण होता है।

वैसे भी, यह गांव के खेत पर कब्जे की लड़ाई नहीं थी कि मेढ़ सीधी करने के लिए भाई-भाई को गोली मार सकता है। और ऐसा नहीं हुआ तो कुछ हुआ ही नहीं। पैसे वाले ऐसे ही लड़ते हैं वो मरते-मारते नहीं हैं। कभी कहीं सुना है? गोबरपट्टी में ही भाइयों के बीच भी गोली चलती है और समझौता नहीं होता है। यहां वो होना नहीं था तो कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था।

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यहां सिर्फ नियंत्रण वाला हिस्सा पहले जिन दो लोगों के पास सबसे ज्यादा था वह अब एक व्यक्ति के पास दोनों के कुल हिस्से से ज्यादा हो गया है। क्योंकि इरादतन, योजना बनाकर, नियमानुसार और घोषणा करके (भी) शेयर खरीदे गए हैं। इसे छीनना नहीं कहा जा सकता है और स्वीकार करना तो मुश्कल है ही। रवीश भले कह रहे हैं कि वे बेरोजगार हो गए पर सैकड़ों बेरोजगार को जानता हूं जिनकी कोई सुनने वाला नहीं है। मैंने भी मजबूरी में ही वीआरएस लिया था लेकिन कहता यही हूं कि छोड़ दिया।

इस तरह का अधिग्रहण यानी टेकओवर कमाने के लिए बीमार कंपनी को चलाने या नई तकनीक में निवेश आदि के लिए भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में वह टेकओवर कहलाता है पर होस्टाइल टेकओवर यानी शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण इसी को कहते हैं। जबरन। ऐसा नहीं होना चैये पर हो होने दिया गया है।

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इस पूरे खेल में दरअसल बेचा कुछ नहीं गया है जो कर्ज के रूप में किसी और का था वो किसी और को बिक गया। राय दंपत्ति जैसे थे वैसे ही हैं। कर्ज को शेयर बनाने का खेल हुआ है और इस चक्कर में जिस कर्ज के दम पर राय दंपत्ति सबसे बड़े शेयर धारक थे वह शेयर में बदल गया और कुछ बाजार से खरीद कर कर्ज को शेयर में बदलने वाला समूह अब कंपनी में अधिकतम शेयर का मालिक हो गया।

इसलिए कंपनी पर नए मालिक का कब्जा हो गया। पुराना या संस्थापक मालिक बेदखल हो गया। कंपनी में राय दंपत्ति का जो शेयर था वह (संभवतः) उनके पास है और उसे बेचने या उसके बिकने की कोई खबर नहीं है। इसलिए मामले को समझने की जरूरत है।

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वैसे तो सहमति से तेल मालिश कराना भी गैर कानूनी है और अपराध बलात्कार के बराबर ही है। आम आदमी के मामले में यही होगा। लेकिन कोई ताकतवर अकेले में जबरन तेल मालिश कराये तो सबूत नहीं होगा। कोई गवाह हुआ भी तो गवाही नहीं देगा और सबूत बना ही लिया जाए तो हमेशा कहा जा सकता है कि वह ब्लैकमेल के लिए था। इसलिए वीडियो सबने देखा पर सजा नहीं हुई। ऐसा ही मामला है। बुझाइल?

पुनःश्च – द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार राय दंपत्ति ने अपने शेयर ही बेचे हैं। बाजार से नहीं खरीदा गया है और इसी लिए कहा जा सकता है कि सौदा सद्भावनापूर्ण माहौल में हुआ। हमारी शर्तें मानी गईं आदि। पर बेचने की मजबूरी अपनी जगह है ही।

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