सौमित्र रॉय-
जैसा मैंने पहले लिखा था–हिन्डेनबर्ग शॉर्ट पोजीशन का खिलाड़ी है। शॉर्ट पोज़िशन का सीधा अर्थ होता है बिकवाली का सौदा।
यह एक तरह का वायदा कारोबार है, जिसमें जेब में अठन्नी न होने के बावजूद आप अपने सूचना नेटवर्क से करोड़ों कमा सकते हैं।
शॉर्ट करने का अर्थ होता है कि बेचनेवाले के पास भी शेयर (या अदाणी के मामले में बॉन्ड) नहीं हैं, लेकिन उसे पूरी उम्मीद है कि आज उनका जो भाव है, जल्दी ही वो वहां से गिरनेवाला है।
इस उम्मीद को पैदा करने में हिन्डेनबर्ग ने दो साल मेहनत की है। उसने अदाणी ग्रुप की ऐसी कमज़ोर नस पकड़ी है कि सेठ जमीन में धंसे जा रहे हैं।
अदाणी के शेयर्स जितने गिरेंगे, हिन्डेनबर्ग को नहीं, बल्कि उस खरीदार को फायदा होगा, जिससे हिन्डेनबर्ग ने वायदा किया है।
शॉर्ट सौदे का एक पुख़्ता तरीक़ा होता है कि वो शेयर या बॉन्ड किसी से उधार लेकर सामनेवाले को सौंप देता है. और फिर दाम गिरने पर अपना उधार चुका देता है।
मिसाल के लिए– किसी कंपनी का शेयर आज 200 रुपए प्रति शेयर का मिल रहा है। लेकिन मुझे भरोसा है कि यह शेयर जल्दी ही गिरनेवाला है। मैं उसके 100 शेयर इसी भाव पर बेचने का सौदा आपके साथ कर लेता हूं। वायदा है कि अगले हफ़्ते हम यह लेनदेन करेंगे।
हफ़्ते भर में कंपनी का भाव गिरकर 150 रुपए हो गया। जो शेयर 20 हज़ार रुपए के थे, वो 15 हज़ार के रह गए।
अब मैं 15 हजार में बाज़ार से ख़रीदकर आपको शेयर थमा दूंगा और 20 हज़ार रुपए ले लूंगा। इसे शॉर्ट इसलिए कहा जाता है कि मेरे पास उतने शेयर कम हैं यानी नहीं हैं, जिनका मैं सौदा कर रहा था।
लेकिन शेयर का भाव गिरकर 0 भी हो सकता है। यानी इस सौदे में बेचनेवाला ज़्यादा से ज़्यादा 29 हज़ार रुपए ही कमा सकता है। लेकिन उसका जोखिम असीमित है, क्योंकि शेयर अगर गिरने के बजाय बढ़ने लगा तो फिर वो बढ़कर कहीं भी जा सकता है।
अमेरिका के दूसरे कई शॉर्ट सेलर अभी समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंडनबर्ग ने दरअसल क्या सौदा किया है और कैसे?
अमेरिका में अदानी कंपनियों के कुछ 100 करोड़ डॉलर के ही बॉन्ड्स हैं, यानी गिनती इतनी नहीं है कि कोई आसानी से उन्हें उधार ले और शॉर्ट करके बड़ी रकम क़मा ले। इसमें ज्यादा कमाई नहीं है।
कमाई डेरिवेटिव सौदे में है। डेरिवेटिव का अर्थ बाज़ार में ऐसे इंस्ट्रुमेंट या सौदे हैं, जिनमें लेनदेन का फ़ैसला किसी और चीज़ के आधार पर तय होता है।
जैसे सिंगापुर स्टॉक एक्सचेंज में भारत के निफ्टी का एक डेरिवेटिव चलता है, जिसका नाम एसजीएक्स निफ्टी है।
एसजीएक्स निफ्टी में ख़रीद बिक्री करने के लिए किसी को भारत के नियम–क़ानून मानना ज़रूरी नहीं है। लेकिन उसके ऊपर नीचे जाने का फैसला भारत में निफ्टी के ऊपर–नीचे जाने से ही होगा।
ऐसा ही सौदा अदाणी के शेयरों के नाम पर भी हो सकता है कि भारत में किसी कंपनी के शेयर ऊपर जाएंगे या नीचे इसपर अमेरिका में बैठे दो लोग आपस में सौदा कर लें।
हिन्डेनबर्ग ने साफतौर पर यह नहीं बताया है कि उसने किससे शॉर्ट या डेरिवेटिव सौदा किया है। वह एक्टिविस्ट टाइप का शॉर्ट सेलर है।
अमेरिकी क़ानून के तहत इस तरह मंदी के सौदे करने के बाद रिपोर्ट निकालने और मुनाफ़ा कमाने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन अगर यह साबित हो गया कि हिंडनबर्ग ने गलत या भ्रामक जानकारी देकर मुनाफ़ा कमाने की कोशिश की है तो यह अमेरिका के क़ानून के तहत अपराध बनता है।
अगर अपनी जांच पड़ताल से उसने ऐसी जानकारी निकाली है, जो बाकी जनता को उपलब्ध नहीं थी। तब इस जानकारी को सामने लाए बिना सौदे करने को इनसाइडर ट्रेडिंग माना जा सकता है। ऐसा हुआ तो फिर हिंडनबर्ग मुसीबत में आ जाएगा।
मैंने पहले दिन ही लिखा था कि सारा खेल अमेरिका से हो रहा है और निशाने पर मोदी सरकार है।
सेबी और भारत सरकार की चुप्पी बताती है कि हमारी ही दाल पूरी काली है।
अगर हिन्डेनबर्ग को इस खेल में तगड़ा मुनाफा होता है तो बाकी अमेरिकी शॉर्ट सेलर भी खुदाई शुरू कर सकते हैं।
फिर तो हम दावे के साथ यह भी नहीं कह पाएंगे कि मंदिर वहीं बनाएंगे।
Kamlesh patidar
February 11, 2023 at 4:45 pm
बहुत ही शर्मनाक तरीके से किसी मुद्दे को आप रखते है।आप पक्षपात और पूर्वाग्रहों से पूर्ण हो।