Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

कल्याण सिंह के हाथों पुरस्कार लेने पर ओम थानवी सोशल मीडिया पर घिरे

Neelabh Ashk : मत छेड़ फ़साना कि ये बात दूर तलक जायेगी. ओम तो गुनहगार है ही, हिन्दी के ढेरों लोग किसी न किसी मौक़े पर और किसी न किसी मात्रा में गुनहगार हैं. इस हमाम में बहुत-से नंगे हैं. पुरस्कार पाने वाले की पात्रता के साथ पुरस्कार देने वाली की पात्रता भी देखी जानी चाहिए। ऐसी मेरी मान्यता है. मैंने साहित्य अकादेमी का पुरस्कार लौटा दिया था. मेरी मार्क्स की पढ़ाई ने मुझे पहला सबक़ यह दिया था कि कर्म विचार से प्रेरित होते हैं. 55 साल बाद तुम चाहते हो मैं इस सीख को झुठला दूं. ओम की कथनी और करनी में इतना फ़र्क़ इसलिए है कि सभ्यता के सफ़र में इन्सान ने पर्दे जैसी चीज़ ईजाद की है. ईशोपनिषद में लिखा है कि सत्य का मुख सोने के ढक्कन के नीचे छुपा है. तुम सत्य को उघाड़ने की बजाय उस पर एक और सोने का ढक्कन रख रहे हो. ये ओम के विचार ही हैं जो उसे पुरस्कार>बिड़ला>राज्यपाल>कल्याण सिंह की तरफ़ ले गये. मैं बहुत पहले से यह जानता था. मुझे कोई अचम्भा नहीं हुआ. मैं ओम की कशकोल में छदाम भी न दूं. और अगर यह मज़ाक़ है तो उम्दा है, पर हिन्दी के पद-प्रतिष्ठा-पुरस्कार-सम्मान-लोभी जगत पर इसका कोई असर नहीं होगा.

Neelabh Ashk : मत छेड़ फ़साना कि ये बात दूर तलक जायेगी. ओम तो गुनहगार है ही, हिन्दी के ढेरों लोग किसी न किसी मौक़े पर और किसी न किसी मात्रा में गुनहगार हैं. इस हमाम में बहुत-से नंगे हैं. पुरस्कार पाने वाले की पात्रता के साथ पुरस्कार देने वाली की पात्रता भी देखी जानी चाहिए। ऐसी मेरी मान्यता है. मैंने साहित्य अकादेमी का पुरस्कार लौटा दिया था. मेरी मार्क्स की पढ़ाई ने मुझे पहला सबक़ यह दिया था कि कर्म विचार से प्रेरित होते हैं. 55 साल बाद तुम चाहते हो मैं इस सीख को झुठला दूं. ओम की कथनी और करनी में इतना फ़र्क़ इसलिए है कि सभ्यता के सफ़र में इन्सान ने पर्दे जैसी चीज़ ईजाद की है. ईशोपनिषद में लिखा है कि सत्य का मुख सोने के ढक्कन के नीचे छुपा है. तुम सत्य को उघाड़ने की बजाय उस पर एक और सोने का ढक्कन रख रहे हो. ये ओम के विचार ही हैं जो उसे पुरस्कार>बिड़ला>राज्यपाल>कल्याण सिंह की तरफ़ ले गये. मैं बहुत पहले से यह जानता था. मुझे कोई अचम्भा नहीं हुआ. मैं ओम की कशकोल में छदाम भी न दूं. और अगर यह मज़ाक़ है तो उम्दा है, पर हिन्दी के पद-प्रतिष्ठा-पुरस्कार-सम्मान-लोभी जगत पर इसका कोई असर नहीं होगा.

Dilip C Mandal : एक मित्र पूछ रहे हैं कि क्या मैं योगी आदित्यनाथ या कल्याण सिंह के हाथों कोई पुरस्कार लेता? चूँकि ऐसा कोई अवसर मेरे सामने नहीं आया है, इसलिए कल्पना से ही उत्तर देना होगा। शायद नहीं। भारत सरकार के दो नेशनल अवार्ड मैंने लिए हैं। एक उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के हाथो और दूसरा तत्कालीन केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री जगतरक्षकन साहेब से। एक प्रेस कौंसिल का और दूसरा सूचना और प्रसारण मंत्रालय का। पुरस्कार पाने वाले की पात्रता के साथ पुरस्कार देने वाली की पात्रता भी देखी जानी चाहिए। ऐसी मेरी मान्यता है। मुझे नहीं लगता कि योगी आदित्यनाथ या कल्याण सिंह मुझे पुरस्कार देने के लिए सही पात्र हैं। मुझे नहीं लगता है कि कभी मौक़ा मिला भी तो मैं इनके हाथों पुरस्कार लेना चाहूँगा। अभी तक तो यही सोच है मेरी। मैं अपने लिए कामना करता हूँ कि मुझमें इतना नैतिक बल बचा रहे कि इन्हें मना कर सकूँ। आमीन!

Advertisement. Scroll to continue reading.

Mohammad Anas : जनसत्ता के पूर्व संपादक श्री ओम थानवी जी द्वारा भाजपा के नेता, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल कल्याण सिंह के हाथों अपनी किताब के लिए पुरूस्कार लिया जाना वाकई आलोचना की श्रेणी में आता है। श्री थानवी जी को यह पुरूस्कार एक प्राइवेट संस्था द्वारा दिया गया है, यदि वह न लेने का नैतिक दबाव बनाते तो संस्था कल्याण सिंह के अलावा किसी और से भी उनको यह पुरूस्कार दे सकती थी या फिर बिमारी का बहाना बना कर राजभवन न जाते। करने को वे बहुत कुछ कर सकते थे। ऐसा मेरा मानना है। पर वे ऐसा कुछ करने का साहस नहीं जुटा सके। अफसोस। राज्यपाल बन जाने भर से कल्याण सिंह के पिछले सारे कारनामें धुल गए? राज्यपाल कौन लोग बनाए गए हैं, किसी से छिपा नहीं है। भाजपा के इस फासीवाद को एक गहरा तमाचा होता यदि ओम थानवी कल्याण के हाथों पुरूस्कार लेने से मना कर देते। क्या आप तालिबान के हाथों, अफगानिस्तान के किसी प्राइवेट संस्था का पुरूस्कार लेना पसंद करेंगे? और यह कहते हुए कि मैंने तालिबान को धार्मिक हिंसा पर लेक्चर दिया। लेकिन इसे आधार बना कर आप ऐसे लोगों से सम्मानित होने को न्यायोचित कैसे कह सकते हैं? दिन रात सांप्रदायिकता पर लेक्चर देने वाले लोग जब दंगाईयों के हाथों से सम्मानित होने को बड़े गर्व से प्रस्तुत कर सकते हैं तो फिर हम ऐसे लोगों के पीछे क्यों खड़े हो? ओम थानवी का सम्मान मेरी नज़र में हमेशा से रहा है। यदि वे कल्याण के हाथ से एक लाख रूपए का इनाम लेने से मना कर देते तो मेरी नज़र और उन तमाम लोगों की नज़र में उनकी इज्जत दो लाख गुना बढ़ जाती।

वरिष्ठ पत्रकार नीलाभ अश्क, दिलीप मंडल और मोहम्मद अनस के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसे भी पढ़ें…

कल्याण के हाथों पुरस्कार लेने का विरोध करने वालों को ओम थानवी ने दुश्मन करार दिया

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.

Om जी के पास के.के. बिड़ला पुरस्‍कार देने वाले को चुनने की सुविधा नहीं थी!

 

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. vikram singh

    September 4, 2015 at 3:29 am

    Shathiyana ise hi kahte hai. On je ke bare me Ambrish je bahut pahle hi bats chuke thhe ki inka koi sidhant nahi hai. Ab om je ka dohra charitra ujagar huwa.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement