चुनाव आयोग के बाहर सैंकड़ों टीवी सेट ले जाकर न्यूज चैनल ऑन कर दे विपक्ष… प्रधानमंत्री की केदारनाथ यात्रा मतदान के दिन प्रभावित करने के अलावा कुछ नहीं है। आज के दिन चैनलों पर इस बहाने चैनलों पर लगातार कवरेज हो रहे हैं। ताकि मतदाता को मतदान के पीछे धार्मिक मेसेज दिया जा सके। हमारे देश में चुनाव आयोग तो है नहीं। नाम का रह गया है। वह पहले भी नहीं रोक सका है। यूपी चुनाव के समय प्रधानमंत्री जनकपुर चले गए थे।
विपक्ष टीवी के इस खेल को समझ नहीं पाया। मैं जानता था कि न्यूज चैनल यही करेंगे। एक साल पहले कहा था कि 2019 में विपक्ष को मीडिया से लड़ना होगा। विपक्ष के नेता इस उम्मीद में रहे कि उन्हें भी जगह मिल जाएगी। मिली भी लेकिन आप नरेंद्र मोदी और अमित शाह को मिले कवरेज़ की तुलना करें तो विपक्ष के सारे नेता मिलकर आधे तक नहीं पहुँच पाएँगे। अफ़सोस विपक्ष ने मीडिया को लेकर जनता के बीच बात नहीं पहुँचाई।
आज भी कम से कम विपक्ष के बड़े नेता चैनलों के न्यूज़ रूम में पहुँच सकते थे। उनके दरवाज़े के बाहर खड़े होकर निवेदन कर सकते थे कि हमें भीतर आने दीजिए। हम न्यूज़ रूम में घूम कर देखना चाहते हैं कि हेडलाइन कैसे मैनेज होती है। फ़्लैश कैसे बनते हैं। न्यूज रूम में एंकरों से पूछना चाहिए कि ये लगातार शिव पुराण क्यों चल रहा है। क्या ये पत्रकारिता है? मगर विपक्ष के लोगों के पास लोकतंत्र के लिए लड़ने का नैतिक बल नहीं है। बड़े नेता घर पर ही बैठे रहेंगे। नैतिक बल होता तो चुनाव आयोग के मुख्यालय के सामने सैंकड़ों टीवी सेट लेकर पहुँच जाते। टीवी सेट को आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरफ मोड़ कर चैनलों पर जो चला है और चल रहा है उसे दिखाते कि देखिए लोकतंत्र की हत्या हो रही है।
आप जो चैनलों पर देख रहे हैं वह भारत के लोकतंत्र की बची-खुची मर्यादाओं को नष्ट करने का कृत्य है। यह प्रतीक भी है कि अब कुछ नहीं बचा है। यह इशारा है कि आप समझ लें। सब कुछ सामने ही तो है। प्रधानमंत्री ने सबके सामने इंटरव्यू की मर्यादा ध्वस्त कर दी। पहले सवाल मँगाया फिर जवाब दिया। क्या पता अपना सवाल भिजवा दिया हो कि यही पूछना है। हम यही जवाब देंगे। आप नहीं समझ सके। मगर यह आप पर भारी पड़ेगा। आज न कल। इसकी क़ीमत आम जनता चुकाएगी।
इसलिए कहा था कि न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दें। बहुतों ने मज़ाक़ उड़ाया। लेकिन मैं अपनी बात इस संदर्भ में कह रहा था। आज भी इस पर क़ायम हूँ। चैनलों के इस खेल को समझे बग़ैर आप चुनाव आयोग से लेकर जाँच एजेंसियों के खेल को नहीं समझ पाएँगे। क़ायदे से चैनलों के ख़िलाफ़ जन आंदोलन होना चाहिए था। टीवी न देखने का सत्याग्रह होना चाहिए था। मुझे पता है कि आप लोकतंत्र के मोल की जगह तानाशाही में ख़ूबी ढूँढ लेते हैं लेकिन मुझे पता है कि आप ग़लती कर रहे हैं।
हम चैनलों को बदल नहीं सके। न बदल सकते थे। मगर जो लगा वो कहा। जो देखा वो आपके बीच रखा। यह जानते हुए भी कि रहना इसी ख़राबे में है। 2007 से लिखा। आम जनता अब चैनलों के फैलाए झूठ में फँस चुकी है। चैनलों के मालिक और एंकर सरकार का खिलौना है। उन्हें बहुत लाभ भी मिला। इन लोगों ने साबित किया कि पत्रकारिता के व्याकरण को बदला जा सकता है। सब कुछ दाँव पर लगाकर कहा कि आप न्यूज़ चैनल न देखें। कुछ हुआ या नहीं, यह शोध का विषय है लेकिन कहने की ज़िम्मेदारी पूरी की। सामने से कहा कि चैनलों पर पाँच रूपया ख़र्च न करें। वहाँ पत्रकारिता हो ही नहीं सकती। उसका ढोंग होगा या फिर प्रोपेगैंडा होगा। चैनलों पर जो आप पाँच रुपया ख़र्च करते हैं, कुलमिलाकर आप चार सौ पाँच सौ ख़र्च करते हैं वो आप किसी ग़रीब को दे दीजिए। आपका पैसा सही काम आएगा। भारत के लोकतंत्र को बर्बाद करने के लिए आप अपनी कमाई से सब्सिडी न दें।
इसलिए आज फिर कहता हूँ कि न्यूज़ चैनल बंद कर दें। वो आपके मताधिकार के विवेक के सामने झाड़ू घुमाकर तंत्र मंत्र करने लगे हैं। आपको मूर्ख समझते हैं। आप अगर देख भी रहे हैं तो देखिए कि कैसे डिबेट के नाम पर आपको जानने के लिए कुछ नहीं मिलता है। वही बकवास चलता रहता है और आप जानकारी के नाम पर उसके बकवास को दोहराते रहते हैं। रिपोर्टर का नेटवर्क ध्वस्त है। सरकारी पक्ष के सवालों पर बहस होती है। बहस के सवाल भी मोटा-मोटी फ़िक्स हैं। आप खुद से पूछिए कि क्या मिल रहा है देखने से। व्हाट्स एप की तरह चैनल भी रोग हो गए हैं। कुछ मिलता नहीं मगर लगता है कि पढ़ रहे हैं। जान रहे हैं। स्क्रोल करते रहते हैं। मेसेज आगे पीछे करते रहते हैं। आप चेतना और सूचना शून्य बनाए जा रहे हैं। सावधान हो जाइये।
sanjeev kumar
May 19, 2019 at 2:33 pm
इस देश में अकेला और अकेला रवीश कुमार की इमानदार पत्रकार है, बांकी सब गोदी मीडिया है। लोगों से न्यूज चैनल नहीं देखने की अपील करता है। स्वंय एनडीटीवी पर क्या चलाता है, उसे खुद पता नहीं होता। अपनी कमीज को साफ और दूसरे की कमीज को गंदी कहने की आदत हो गई है रवीश कुमार की। रवीश सरीखे और भी कई पत्रकार है जो समाज में केवल और केवल नकारात्मक भाव परोसने का काम करते है।
प्रधानमंत्री मोदी की केदारनाथ यात्रा को आचार संहिता का उलंघन बताता है। अरे भाई, किसी की पूजा अर्चना और भक्ति पर सवाल करने वाला रवीश कुमार कौन होता है? मोदी जी पूजा या दर्शन करने के लिए केदारनाथ जाए या जनकपुरधाम, यह उनके विवेक पर अध्यात्मिक भाव पर निर्भर करता है। रवीश कुमार चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहता है, इस देश में चुनाव आयोग कोई संस्था रह ही नहीं गई है?
किसी ने राहुल गांधी से तो सवाल नहीं पूछा कि, वो कैलाश मानसरोवर यात्रा पर क्यों गये? किसी ने प्रियंका वॉड्रा से तो यह सवाल नहीं किया कि, वह बनारस में रोड शो के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर क्यों गई? सवाल यह उठता है, किसी की भक्ति पर कोई कैसे सीधे रूप से सवाल उठा सकता है। जिसकी जब मर्जी होगी तब भी कहीं भी कभी भी जा सकता है।
रवीश कुमार का इस प्रकार का नकारात्मक विचार ठीक उसी प्रकार है जैसे, कबूतर बिल्ली को देखकर अपनी आंखे बंद कर लेता है। उसे लगता है कि बिल्ली भाग गई। रवीश इतना तक कह देता ही देश की जनता टीवी की झूठ में फंस चुकी है। अरे तुम टीवी की स्क्रीन काली करो या सफेद इससे किसी को कोई मतलब नहीं। लेकिन, देश की जनता को कम से कम गुमराह करने का काम ना करो।
Bhavi
May 19, 2019 at 2:50 pm
Mujhe lagta he aapke pass koi or kaam hi nahi bacha he. Aap Kese patrakar he jinhe modifobia ho gaya he or kuchh dikhayi hi Nahi deta. Sir aapko mujh sahit lakhon log pasand karte he plz kuchh or kisi or par bhi likho
सुढिए गोयल
May 20, 2019 at 6:46 am
रवीश कुमार जी bjp या मोदी विरोध मेँ इतने अंधे हो गये हें क़ि पत्रकारिता का धर्म ही भूल गये श्री माँ जी सही प्लेट फार्म मिला होता हमे तो हम आपको patrkaarita दिखाते
हमेशा up बिहार मेँ bjp पर तंज कसने वाले रवीश कुमार को पच्षिम बंगाल और ममता बनर्जी क़ि संविधान विरोधी हर कटे दिखाई नहीं देती
शर्म करो कुछ श्रम करो रवीश जी 19 वर्षो से हम वही कर रव्हे हें जो आप आज कर रहे ही जनाब hrkteb