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उत्तर प्रदेश

यूपी में पुलिस से ज्यादा खतरनाक हैं उसके ‘लठैत’

संजय सक्सेना, लखनऊ

लखनऊ। अगर आप उत्तर प्रदेश में हैं या फिर किसी काम से आ रहे हैं तो यूपी पुलिस ही नहीं उसके ‘लठैतों’ से भी होशियार रहें, जो काम यहां की पुलिस वर्दी में नहीं कर पाती है,उसे वह अपने लठैतों के बल पर पूरा कर लेती है। आपको यह लठैत हर उस स्थान पर मिल जाएंगे,जहां पैसा उगाही का ध्ंाधा फलता-फूलता है। खासकर रेलवे स्टेशन, बस अड््डे और बाजार इनके प्रमुख ठिकाने होते हैं। इसके अलावा चैराहों पर भी यह लठैत पुलिस के लिए टैंपो, रिक्शा वालों से अवैध वसूली करते दिख जाते हैं।

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चाहें सड़क पर दौड़ रहे डग्गामार वाहन हों से वसूली हो या फिर पैसा लेकर खोंचते या दुकान लगवाने का खेल अथवा नंबर दो का माल ले जाने वालों और नो इंट्री जोन में मुट्ठी गरम करके बड़े वाहनों को प्रवेश की छूट देना। अवैध शराब बिक्री, सब कुछ पुलिस के यह लठैत ही संभालते हैं। सड़क को पार्किंग में बदल देने की महारथ रखने वाले पुलिस के ‘लठैत’ आम आदमी के लिए किसी यमदूत से कम नहीं होते हैं। गाली-गलौच से लेकर मारपीट करने तक में इनको महारथ हासिल है। इन लठैतों की सड़क पर बादशाहत चलती है तो पुलिस की तिजोरी भरती है।

एक मोटे अनुमान के अनुसार लखनऊ में प्रतिदिन करीब दो करोड़ रूपये की अवैध वसूली होती है। यही हाल अन्य जिलों का भी है। अगर यह पैसा सरकारी तिजोरी में चला जाए तो सरकार मालामाल हो जाए। उत्तर प्रदेश का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां अवैध वसूली का धंधा सरकारी संरक्षण में फलफूल नहीं रहा हो। अवैध वसूली करने वालों के खिलाफ अक्सर कार्रवाई किए जाने की भी खबरें आती हैं, लेकिन इसे औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं होता है। कड़वा सच यह है कि अगर अवैध वसूली थम जाए और पुलिस तथा नगर निगम ईमानदारी से अपना काम करे तो अतिक्रमण खत्म जायेगा। डग्गामार वाहन सड़क पर नहीं दिखेंगे। अवैध तरीके से बनाई गई पार्किंग खत्म हो जाएगी। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सरकार में बैठे मंत्री और शासन-प्रशासन संभालने वाले जिम्मेदार अधिकारी इस ओर से आंख मंूदे रहते हैं। जिस थाना क्षेत्र में जितनी अधिक अवैध कमाई होती है वहां पोस्टिंग के लिए उतनी ‘कीमत’ चुकानी पड़ती है। थाने बिकते हैं जैसी खबरें इसी लिए बनती हैं,जो इस सिंस्टम में फिट नहीं बैठता है उसे थाने का ‘मुंह’ कम की देखने को मिलता है। ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों को फूड सेल, पीएसी और पुलिस ट्रेनिंग जैसे पुलिस संगठनों में अपनी पूरी नौकरी गुजार देना पड़ती है।

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थोड़े समय पहले की ही बात है जब डीजीपी ओपी सिंह ने अवैध वसूली की रोकथाम के लिए आदेश जारी करते हुए कहा था कि कहीं पुलिस खुद वसूली कर रही है तो कहीं उनके दलाल कर रहे हैं। इसे रोकने के लिए उन्होंने पूर्व में वसूली के आरोप के घेरे में आए ट्रैफिक और पुलिसकर्मियों की सूची बनाकर उनपर कड़ी नजर रखने का आदेश दिए थे,लेकिन हालात बदले नहीं।

डीजीपी ने स्वयं खुलासा किया था कि चेकिंग के नाम पर पुलिस बाहर से आने वाले वाहनों से बड़े पैमाने पर अवैध वसूली करती है। यही नहीं अवैध वाहन चलवाने का ठेका लेकर और स्टैंडों से भी वसूली की जा रही है। इसमें पुलिस, ट्रैफिक पुलिस के दलाल भी सक्रिय हैं। इसकी वजह से पुलिस की छवि धूमिल हो रही है। खासतौर पर ट्रैफिक पुलिस का भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा सामने आ रहा है जिसे सख्ती से रोकने की आवश्यकता है।डीजीपी का कहना था कि ड्यूटी समाप्त होने के बाद भी बहुत सारे पुलिसकर्मी रोड पर चेकिंग करत रहते हैं। कुछ पुलिसवाले अपने ड्यूटी पॉइंट से इतर दूसरी जगहों पर चेकिंग करने पहुंच जाते हैं, जहां उनका वसूली का अड्डा है। इस पर रोक लगाने के लिए सीनियर अफसर हर रोज जीडी रजिस्टर पर ड्यूटी चेक करके औचक निरीक्षण करेंगे।

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लखनऊ के भीड़भाड़ वाले इलाके चारबाग, कैसरबाग, पालिटेक्निक चैराहा, अमीनाबाद, निशातगंज पुल के नीचे, चैक,आलमबाग में नहरिया चैराहें आदि पर इस तरह की वसूली आम बात है। स्थिति यह है कि व्यस्थ्य इलाकों में पुलिस वाले बैठे मोबाइल से जूझते रहते हैं और उसके लठैत और दलाल डंडा लिए सड़क पर तांडव करते हैं। लखनऊ स्टेशन से जब आप बाहर निकलते हैं तो बड़े शायराना अंदाज में लिखा मिलता है,‘ मुस्कुराए आप लखनऊ में हैं।’

‘मुस्कुराइए आप लखनऊ में है,’ उत्तर प्रदेश पर्यटक विभाग ने राजधानी में आने वाले पर्यटकों लुभाने के लिए यह टैग लाइन इजात की थी। अदब, अदायगी और इबादत जैसे शब्द भले ही नवाबो के इस शहर के पर्याय बने हुआ है लेकिन आज वह भी सिर्फ रुपहले परदे और किताबो तक सीमित है। नवाबो के इस प्राचीन पद्धति पहले आप पहले आप की संस्कृति आज आधुनिकता की चकाचोंध कही धूमिल सी हो चुकी है। देश विदेश से आने वाले आगंतुको का प्रवेश द्वार हमारा चारबाग स्टेशन एवं चैधरी चरण सिंह हवाई अड्डा का वातावरण आज तो कुछ ऐसा है की मुस्कुराने के छोडिये जनाब सैलानियों को अपनी जान बचाने का मौका नहीं मिलता है। ऑटो-रिक्शा रिक्शा और टेम्पो चालक उन्हें इस कदर अपनी और खीचेते जैसे यह स्टेशन नहीं रस्साकसी का मैदान हो. तहजीब और नजाकत के शहर का सिर्फ यह छोटा सा उदाहरण भर सारी स्थितियों को बयां कर देता है। यह तो रही बाहर से आने वाले आगंतुको की बात अगर बात करे इस शहर की तहजीबदारो यहाँ के निवासियों की तो शायद उन्होंने भी सदियों पुरानी पहले आप पहले आप की तहजीब अब रास नहीं आ रही है और उन्होंने इससे भी से तौबा कर ली है क्योकि उन्होंने भी शायद लगाने लगा है की दूसरों को उनकी उम्मीद से जादा तरजीह और सम्मान देना बेकार की बाते हैं।

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शायद इसी लिए टैग लाइन ‘मुस्कुराएं आप लखनऊ में हैं’ के उलट स्टेशन से बाहर निकलते ही लखनऊ के मुख्य चारबाग स्टेशन के बाहर का नजारा बिल्कुल उलट नजर आता है। तहजीब का यह शहर ‘बेशर्म’ होकर सामने खड़ा दिखता है। सड़क अतिक्रमण और अनाप-शनाप तरीके से खड़े वाहनों से पटी नजर आती है। ठेले और फुटपाथ घेरकर खाने-पीने का सामना बेचने वाले सड़क को कूड़ा घर बना देते हैं। स्टेशन से बाहर निकलते ही डग्गामारी कर रहे बस, आटो, टैम्पों चालकों का झुंड सवारियों पर टूट पड़ता है। आपको कहीं भी जाना हो, इनसे बच नहीं सकते हैं। हालात यह है कि जहां सरकारी बस का किराया पांच रूपए निर्धारित है, वहां के डग्गामारी करने वाले बस चालक 10 से 20 रूपए तक (जैसा यात्री दिखे) वसूल लेते हैं। कोई टिकट नहीं, शिकायत नहीं। यही हाल आॅटो-टैम्पों और ई-रिक्शा चलाने वालों का है। आप ठगी का शिकार होकर चुपचाप रहने को मजबूर हो जाते हैं। बाहर से आए लोगों को होटल ले जाने के लिए रिक्शा चालकों में मारमारी होती है, जिसके एवज में रिक्शा और आॅटो चालकों को होटल की तरफ से भारी कमीशन दिया जाता है। वैश्यावृति यहां चरम पर नजर आती है। अक्सर बाहर से आए लोग इन लड़कियों के चक्कर में फंस कर अपना सब कुछ लुटा देते हैं। पुलिस आंख पर पट्टी बांधे रहती है। उसका सारा ध्यान तो ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने में रहता है।

शायद इसी लिए आम धारणा यह बनी हुई है कि नाका थाना जिसके अंतर्गत चारबाग का भी एरिया आता है सबसे मंहगा ‘बिकता’ है। इस बात में इस लिए दम भी नजर आता है क्योंकि बड़े-बड़े अधिकारी भी इस तरफ से आंखें मूंदे बैठे रहते हैं,जिसके चलते चारबाग अराजकता का अड्डा बन गया है। इसी तरह से अन्य थानों की भी रेटिंग की जाती है।

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लेखक संजय सक्सेना लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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