Rajiv Nayan Bahuguna : कमर वहीद नकवी के शुभ नाम से मैं विज्ञ था। लेकिन अखबार की नौकरी में आने के बाद जब भी कोई उनका ज़िक्र करता, तो नकवी – राम कृपाल कहता। इससे मुझे लगा की शायद यह कोई आधुनिक सेकुलर है, जो गुरमीत राम रहीम सिंह टाइप नाम मिक्स करता है। बाद में विदित हुआ की यह सलीम – जावेद या नदीम – श्रवण टाइप जोड़ी है, और नकवी तथा राम कृपाल दोनों भिन्न व्यक्ति हैं। नकवी छींट की शर्ट पहनने वाले, क्षीण काय लेकिन भारी आवाज़ वाले व्यक्ति थे। मुंह में खैनी दाब कर चुप रहने वाले लेकिन अपनी गतिविधियों से एक मुखर व्यक्ति थे। उनसे मिलने के कुछ ही मिनट बाद मैं समझ गया की यह मुसलमान राजेन्द्र माथुर की जाति का है।
Qamar Waheed Naqvi
बहुत कम बोलने वाले Qamar Waheed Naqvi से कुछ उगलवाना दुरूह था। वह एक तरह के मौनी बाबा थे। शब्दों की तरह पैसे में भी कृपण तो नहीं पर मितव्ययी थे। शराब वर्षों पहले तिलान्जित कर चुके थे, लेकिन भोजन भी सादा और शाकाहारी था। अपनी बचत के शब्द और धन यथा स्थान खर्च करते। एक बार एक दिवंगत मूर्धन्य लेकिन आर्थिक क्षीण पत्रकार की सहायता के लिए मैंने एक आयोजन किया। नकवी ने उसमें सभी राज पुरुषों और व्यवसायियों से बड़ी रक़म दे कर उन सबकी नाक काट ली। कभी मेरे साथ भी ढाबे या होटल में खाने बैठे, तो जी खोल कर खर्च करते थे।
एक उदार, वैज्ञानिक तथा तार्किक दृष्टिकोण से सज्जित Qamar Waheed Naqvi अंध विश्वासी भी थे। तंत्र तो नहीं, पर मन्त्र पर विश्वास करते थे। हमारे दफ्तर का एक अधेड़ और निपट घामड़ सब एडिटर उनके पास देर तक बैठ कर उनसे ग्रह नखत के बारे में बतियाता। उन्हें संभवतः मूर्ति पूजा पर भी विश्वास था। एक बार शिव जी का एक विग्रह खरीदने वह मेरे साथ देर तक संग तराशों की बस्ती में घूमे। गाड़ियों की बैटरी के बारे में चर्चा करना भी उनका प्रिय शगल था। बातों ही बातों में मैं इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि उनके परिजन संभवत काशी में बैटरी का काम करते थे। खबर को चटपटा बनाने का हुनर उन्हें खूब आता था, लेकिन दूसरी ओर उनके भीतर कहीं सामाजिक प्रतिबद्धता भी गहरे पैठी थी। हिंदी के इस हद तक पंडित थे कि संस्कृत निष्ठ शब्दों से भी पार पा लेते, जब कि तब तक पत्रकारिता में भाषा का भ्रष्टाचार शुरू हो गया था और कुत्सित भाषा लिखी जाने लगी थी।
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी और यायावर राजीव नयन बहुगुणा द्वारा फेसबुक पर लिखे जा रहे ‘मेरे सम्पादक – मेरे संतापक’ सीरिज से. इस लिखे पर वरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी ने अपनी तरफ से जो टिप्पणी / प्रतिक्रिया की है, वह यूं है….
Qamar Waheed Naqvi : तंत्र-मंत्र वाली बात तो मैं नहीं जानता और यह भी नहीं कह सकता कि किसने मुझे कितना जाना और समझा है. मैं आपको इतना कह सकता हूँ कि ज्योतिष में मेरी किसी समय बड़ी रुचि थी. जयपुर के जिस सज्जन के बारे में Rajiv Nayan Bahuguna ने लिखा है, वह उन दिनों मेरे साथ काम करते थे और ज्योतिष में उनकी रुचि भी थे, पेशेवर ज्योतिषी नहीं थे, ज्योतिष का अध्य्यन करते रहते थे. उनसे अकसर इसी विषय पर चर्चा होती थी. बाद में दिल्ली आने पर मैंने भारतीय विद्या भवन से दो वर्ष का ज्योतिष पाठ्यक्रम पूरा किया, एक साल स्वर्ण पदक के साथ और एक साल रजत पदक के साथ. उसके बाद पाँच-छह साल तक वहीं शोध कक्षाओं में रहा, ज्योतिष पर कुछ लेख भी लिखे जो श्री के. एन. राव के सम्पादन में वहाँ से निकलने वाली ज्योतिष पत्रिका में छपे भी. ये सभी बातें मेरे साथ काम कर चुके बहुत-से सहयोगियों को पता भी हैं और इसमें कुछ भी गोपनीय या छुपाने जैसा नहीं है. और, यह भी कि ज्योतिष अन्धविश्वास नहीं है, लेकिन सच यह है कि जो लोग अपने को ज्योतिषी बताते घूमते हैं, उनमें से 99.99% को ज्योतिष का आधा ज भी नहीं आता और वह अन्धविश्वास फैलाते फिरते हैं. ज़्यादातर पत्रकारों को भी इसकी कोई समझ नहीं है, इसलिए वह ऐसी बात कहते हैं. अन्यथा ज्योतिष पढ़ने के लिए सात-आठ जीवन का समय भी कम है! बहरहाल, अब ज्योतिष छूट चुका है क्योंकि नौकरी की व्यस्तताओं के कारण अध्ययन-अभ्यास हुआ नहीं और सब धीरे-धीरे छूट और भूल-बिसर गया.
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