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सुख-दुख

जब नौकरी के लिए अजीत अंजुम से मिले राघव त्रिवेदी… देखें क्या हुआ!

राघव त्रिवेदी-

लिखते हुए अफ़सोस हो रहा है लेकिन मिलने के बाद आप कुछ हैं, मिलने से पहले तक कुछ और हैं। ये बात जायज़ है कि मीडिया हो या सफाईकर्मी काम के घंटों से समझौता नहीं होना चाहिए…

नहीं चाहता था कि ये पोस्ट करूँ लेकिन सत्ता से सवाल करना अलग है और एक बेहतर इंसान होना अलग है, वो आप नहीं हैं।

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मिलने के बाद दी गयी तमाम शर्तें क्रमशः बताता हूँ। इससे पहले भी एक बार ऐसा ही नोटिफिकेशन आया और अजीत जी से मुलाकात हुई…

शर्त 1. ये मेरा चैनल है और इसका चेहरा बनने का प्रयास मत कीजियेगा क्योंकि इसका चेहरा मैं ही हूँ, मैं कुछ भी बोल देता हूँ तो लाख लोग देख लेते हैं आप क्रिएटिव हैं अच्छा बोल लेते हैं लेकिन मेरे चैनल पर चेहरा नहीं बन सकते हैं..

शर्त संख्या 2. देखिये मुझे गुस्सा आता है और काम न होने पर कई बार मैं उल्टा सीधा बोल देता हूँ तो सुनने की भी क्षमता होनी चाहिए.

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शर्त संख्या 3. गूगल से भी ज़्यादा जानकारी होनी चाहिए आप एकदम अपडेट रहिये सुबह 6 बजे तक बड़ी खबरें मुझे भेजिए.

शर्त संख्या 4. रहना आपको मेरी नज़र के सामने ही रहेगा और ऑफिस में हम क्या करते हैं किसी को बताना नहीं है, यूट्यूब या फेसबुक से होने वाली इनकम की चर्चा नहीं करेंगें

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शर्त संख्या 5. एक चीज़ से काम नहीं चलेगा सब कुछ थोड़ा थोड़ा सीखिए और सब कुछ करना होगा.

शर्त संख्या 6. काम के घंटे को लेकर रोज बहस नहीं कर सकता जब तक काम है तब तक करना होगा दिन हो या रात.

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और मेरी बातें आप रिकॉर्ड तो नहीं कर रहे हैं ….? कहीं यूट्यूब पर लगा दें कि मैं ऐसे कहता हूं..

इसी गुलामवाद से तो लड़ाई थी जिसे फिर से शुरू किया जा रहा है।

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मेरा ज़वाब भी पढ़ लीजिए.

इसे व्यक्तिगत आरोप न समझा जाये,बल्कि मीडिया में काम करने वाले लोगों को इस पर बात करनी होगी, लेबर लॉ सबके लिए सेम हैं .

आशीष नौटियाल-

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यूट्यूबर बनाम प्रोफेशनलिस्म बनाम ब्रैण्ड बनाम मीडिया बनाम कॉर्प्रॉट एथिक्स- यह एंट्राप्रिन्योरशिप नहीं आसानन्…

ओवरस्मार्ट बनने की राह में अजित अंजुम पेले जा रहे हैं। यह आत्ममुग्ध इंसानों के साथ आज नहीं तो कल होना ही होता है। अगर नकारात्मकता आपकी पहचान है तो इसे दूसरों पर आप थोप नहीं सकते।
जैसे- आप और सिर्फ़ आप कैमरा पर होना चाहते हैं मगर आप इसके लिए पूरे समाज को ये संदेश नहीं दे सकते कि इन्हें कैमरा पर क्यों नहीं आना चाहिए। आप वहीं पर एक लीडर की जगह sirf यूट्यूवर साबित हो जाते हैं जहां आप दूसरों को प्रोत्साहित करने की जगह सिर्फ़ यह गिनाते रह जाते हैं कि समाज आपसे क्यों अधिक बेहतर नहीं हो सकता।

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  • अंजुम मूड ख़राब होने पर किसी को कुछ भी कह सकते हैं तो आपको प्रोफेशनल ज्ञान की सख़्त कमी है। आप एक स्टाफ़ से कुछ भी नहीं कह सकते। यह पहला उसूल होता है और पहला फ़र्क़ होता है एक आम “यूट्यूबर” और एक प्रोफेशनल के बीच! इसी के लिए लोग प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद ही एंट्राप्रिनयोरशिप की ओर बढ़ते हैं।
  • जैसे एक MBA को यही सिखाया जाता है कि आप लीडर कैसे बन सकते हैं, आप मैनेजर कैसे हो सकते हैं या फ़ोर एक टीम की तरह काम करना क्यों सबसे बेहतर है। यहाँ तक कि स्टाफ़ हायरार्कि के साथ आपको कब कहाँ और किस तरह व्यवहार करना है।

दुर्भाग्य यह है कि आज के समय यूट्यूब कमाई का सस्ता साधन बन गया है और ख़ासकर हर मीडियाकार को यह लगने लगा है कि वो मैनपावर रखने में सक्षम है।

आत्ममुग्ध व्यक्ति दूसरों के स्पेशियलाईज़ेशन, शिक्षा, स्कूल, कोलेज, MBA, iimc का महत्व नहीं समझता क्योंकि वो हर वक़्त खुद में ही व्यस्त रहता है। आत्ममुग्धता ख़ासकर Tv जर्नलिज़्म और मीडिया के व्यवसाय में सबसे जयादाय हावी है। वह सिर्फ़ यह दावे करता देखा जा सकता है कि उसे तो स्टाफ़ की ज़रूरत ही नहीं क्योंकि वो स्वयं सब जानकारी रखता है। यहीं par वो स्टाफ़ के लिए अपने नज़रिए को एक्सपोज कर देता है।

एक एंट्राप्रिन्योर और प्रोफेशनल, जो मैन पावर रखता हो, कभी नहीं कहता कि वह किसी से नहीं मिलता क्योंकि उसे कई प्रकार के लोगों से मिलने के बाद अपनी मैन पावर की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। लेकिन समाचार चैनलों से सिर्फ़ और सिर्फ़ कैमरा के सामने बोलने को समाज पर एहसान मान लेने वाले और इसी भाव से उपजे यूट्यूबर प्रोफ़ेशनल शब्द के इस मर्म को नहीं समझता।

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अजित अंजुम की यूट्यूब से कमाई को गोपनीय रखने की शर्त बिलकुल सटीक है। हर कम्पनी, जब तक वह सिर्फ़ यूट्यूब चैनल नहीं है, का एक बेसिक कोड और एथिक्स होता है। लेकिन उसे अपनी “हायरिंग प्रोसेस” की कूल लगने वाली भोकाल के बारे में यह शायद ही यह पता चल पाया होगा कि उसे ये लिखने में किसी प्रोफेशनल HR की आवश्यकता है। यूट्यूब आधारित मीडिया कारों को बस एक लाइन दिमाग़ में रखनी चाहिए कि यह एंट्राप्रिन्योरशिप नहीं आसान बस इतना समझ लीजे, इक कॉर्प्रॉट लॉज़ का दरिया है और डूब के जाना है

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