राज्य प्रायोजित जासूसी की खबर और सरकार प्रायोजित मीडिया

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संजय कुमार सिंह-

आज के अखबारों में ऐप्पल के अलर्ट की खबर प्रमुखता से होनी ही थी, है भी। खबर गंभीर है पर सरकार की तरफ से उसे कमजोर करने की कोशिश की गई है और अखबारों ने उसका साथ दिया है। मीडिया से मुझे यही शिकायत है। मीडिया अगर सभी बातों को जस का तस रख दे तो माना जा सकता है कि पाठक निष्कर्ष निकाल लेगा पर संदर्भ बताना, पुराने मामले याद दिलाना मीडिया का काम है और इससे जो निष्कर्ष निकलेगा वह अलग होगा। संदर्भ नहीं बताया जाये, सवाल नहीं उठाये जाएं और सरकारी विज्ञप्ति को जस का तस ऐसे आरोप के साथ छाप दिया जाये तो वह ना निष्पक्ष पत्रकारिता है और न संतुलित। पत्रकारिता का काम सच बताना भी है। झूठ को झूठ साबित करना उससे ज्यादा जरूरी है। आजकल मीडिया यह सब नहीं करता है। आइये देखें कैसे?

इंडियन एक्सप्रेस का फ्लैग शीर्षक है, खरगे से ओवैसी, अखिलेश से मोइत्रा को निशाना बनाया जा रहा है। मुख्य शीर्षक है, ऐप्पल फोन के अलर्ट के बाद विपक्ष के कई नेताओं ने जासूसी का आरोप लगाया, सरकार ने आरोप को खारिज किया। इसके साथ ही एक खबर का शीर्षक है, जांच करेंगे, ऐप्पल की सूचना अस्पष्ट है, उनसे जांच में शामिल होने के लिए कहा है। मेरा मानना है कि यह सरकारी खंडन है। इसके अलावा इसमें या खबर भी ऐसी नहीं है कि इसे इतनी प्रमुखता से मूल खबर के साथ छापा जाये। आप जानते हैं कि इस समय महुआ मोइत्रा पर संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप है और महुआ मोइत्रा को एथिक्स कमेटी के पास पेश होना है लेकिन उससे पहले चूंकि आरोप सार्वजनिक हो गये तो महुआ के जवाब भी सार्वजनिक हैं और ऐसे में महुआ के फोन की जासूसी का मतलब है, उन्हें नियंत्रित करने की एक और कोशिश।

मुझे ट्वीटर पर सबसे पहले महुआ का ट्वीट दिखा और फिर राहुल गांधी ने गर्म लोहे पर चोट करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस की और जो माहौल बना वह अखबारों में भले न दिखे पर सरकार को परेशान करने के लिए पर्याप्त है। इसमें राहुल गांधी ने अपना फोन देने की भी पेशकश की। आप जानते हैं कि पांच राज्यों में चुनाव है लेकिन प्रधानमंत्री प्रचार नहीं कर रहे हैं। यह अकारण नहीं होगा पर अभी वह मुद्दा नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस के मुख्य शीर्षक से भी आरोप कमजोर हुआ है। सरकार ने कब आरोपों को स्वीकार किया है और स्वीकार किया होता तो शीर्षक यह नहीं होता। इसलिए मुझे लगता है कि जब सरकारी खंडन साथ में है ही तो यह बताने की जरूरत नहीं थी कि सरकार ने आरोपों को खारिज कर दिया है। बहरहाल मेरी राय में इस कमजोर खंडन से बड़ी खबर यह है सीताराम येचुरी और प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है जबकि शशि थरूर आईटी अधिनियम में बदलाव के पक्ष में हैं।

जो भी हो, इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण है ‘राज्य प्रायोजित’ शब्द का प्रयोग होना। इसे खबरों में ना पर्याप्त महत्व मिला है और ना खंडन में इसका उल्लेख या जवाब है। इस बारे में एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड इस प्रकार है, ऐप्पल ने एक सिस्टम विकसित किया है जो कतिपय पैटर्न या शैली से मेल खाने वाली गतिविधियों को पकड़ता है। ऐसे मामलों में यह एक स्वचालित चेतावनी संदेश भेजता है। इसके साथ बताया है कि ऐप्पल ने इस संदेश को किसी राज्य प्रायोजित हमलावर से नहीं जोड़ा है। वैसे तो यह संदेश से ही स्पष्ट है पर राज्य प्रायोजित का मतलब क्या है और उसे स्पष्ट क्यों नहीं किया गया है। उसपर बात क्यों नहीं है। आइए इसे भी समझ लें।

यहां पेगासस की याद आती है। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले ऐसे ही जासूसी की खबर आई थी और तब पता चला था कि यह सब पेगासस से किया जाता है और पेगासस इजराइल का बना सॉफ्टवेयर है। बहुत महंगा है और सिर्फ सरकारों को बेचा जाता है। तब मुद्दा था कि भारत में लोगों की जासूसी किसने की। क्या भारत सरकार ने पेगासस खरीदा है या किसी और देश की सरकार ने पेगासस से भारत में लोगों की जासूसी करवाई। बेशक सरकार को इसकी जांच करवा कर स्पष्ट करना चाहिये था पर सरकार ने ना पेगासस खरीदना स्वीकार किया ना इससे इनकार किया। यह सरकार जिस ढंग से काम कर रही है उसमें मैंने मान लिया था कि सरकार ने खरीदा होगा और वही जासूसी करवा रही होगी।

हालांकि, सरकार समर्थक इसे नहीं मानते थे और उनका कहना था कि राहुल गांधी को अपना फोन जांच के लिए प्रस्तुत करना चाहिए था उनने नहीं किया तो जांच कैसे होती। मेरा मानना है कि मामला बहुत गंभीर था और अगर जांच जरूरी थी तो करवाई की जानी चाहिये थी और इसलिए जांच नहीं करवाने का कोई मतलब नहीं है। इस दलील का भी नहीं कि शिकायतकर्ता या राहुल गांधी ने अपना ने फोन नहीं दिया। बाद में (सरकारी जांच के लिए) एक नहीं कई पत्रकारों के फोन और लैपटॉप जब्त करने की खबर आई। ऐसा पेगासस के मामले में क्यों नहीं किया गया अब समझना मुश्किल नहीं है और यह भी स्पष्ट है कि पहले ही कार्रवाई की गई होती तो अब जो हुआ वह नहीं होता और सरकार समर्थक मीडया चाहे जो करे सरकार की जो छवि बनी वह नहीं बनती। पर वह अलग मुद्दा है। यहां राज्य प्रायोजित का मतलब पेगासस से हैकिंग का प्रयास हो सकता है पर स्पष्ट तो मीडिया को ही करना है।

खास बात यह है कि इसकी चर्चा नहीं है, चिन्ता नहीं है। इसमें इस बात का भी कोई मतलब नहीं है कि यह संदेश सरकार के विरोधियों और पत्रकारों को ही क्यों मिला। भाजपा के किसी नेता या समर्थक को क्यों नहीं मिला। बात इतने से ही साफ है पर मीडिया इसे छिपा रहा है और अपना काम ढंग से नहीं कर रहा है।

ऐप्पल का अलर्ट हिन्दी में कुछ इस प्रकार होगा, आपका आईफोन राज्य-प्रायोजित हमलावरों के निशाने पर हो सकता है। ऐप्पल को यकीन है कि आप राज्य-प्रायोजित हमलावरों के निशाने पर हैं जो आपके ऐप्पल आईडी से जुड़े आईफोन को दूर से नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। संभावना है कि ये हमलावर आपको व्यैक्तिक तौर पर निशाना बना रहे हैं और यह इस पर निर्भर करता है कि आप कौन हैं और क्या करते हैं। अगर आपका फोन किसी राज्य-प्रायोजित हमलावर का शिकार हो चुका है तो वे आपके संवेदनशील डेटा, संचार, या यहां तक ​​कि कैमरा व माइक्रोफ़ोन तक दूर से नियंत्रित कर सकते हैं। भले ही यह एक निराधार चेतावनी हो सकती है, कृपया इस चेतावनी को गंभीरता से लें।

अगर आपको पूर्व में भी ऐप्पल से खतरे की ऐसी सूचना प्राप्त हुई है तो यह अतिरिक्त सूचना आपको यह बताने के लिए है कि हमारी राय में नई या पुरानी कोशिश जारी रखने का काम हुआ है। ऐप्पल ने आगे की कार्रवाई की भी सिफारिश की है और इसमें अपने फोन को नवीनतम सॉफ्टवेयर से अद्यतन करना शामिल है। ऐप्पल ने अपने ग्राहकों से कहा है कि नवीनतम सॉफ्टवेयर जैसे ही उपलब्ध हो हमेशा अद्यतन करते रहें क्योंकि इसमें नवीनतम सुरक्षा बचाव होता है।

इसका खंडन करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है, मामले की गहराई तक जाने के लिए सरकार पहले ही जांच के आदेश दे चुकी है। हमारे देश में कई आदतन आलोचक है। (वैसे न तो यह अपराध है और ना सरकार को ऐसी आलोचनाओं से मुक्त रहने की आजादी) हम संदेश प्राप्त करने वाले हर व्यक्ति से अनुरोध करते हैं कि वे जांच में सहयोग करें। आप सभी ने ऐप्पल द्वारा जारी परामर्श देखा होगा, यह एक अस्पष्ट परामर्श है। यह कुछ अनुमानों पर आधारित है जो उन्होंने लगाया है। ऐप्पल ने एक बयान जारी किया है कि इस प्रकार की सलाह 150 देशों में जारी की गई है।

दूसरा खंडन रविशंकर प्रसाद का है, सरकार के खिलाफ आरोप लगाने के बजाय इन नेताओं को ऐप्पल के समक्ष मामला उठाना चाहिये। इस पर स्पष्टीकरण देना ऐप्पल का काम है। अगर उन्हें कोई समस्या है तो उन्हें प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिये। उन्हें कौन रोक रहा है। उपरोक्त दोनों बयान नवोदय टाइम्स से लिये गये हैं। नवोदय टाइम्स ने ऐप्पल की सफाई भी छापी है पर इसमें वह नहीं है तो अश्विनी वैष्णव ने कहा है। मुझे लगता है कि ऐप्पल ने कहा होता तो पल्ला झाड़ने के लिए जरूरी था और नवोदय टाइम्स ने छापा भी होता। वैसे भी, ऐप्पल ने ऐसा कहा होता तो यह मामला इतना तूल नहीं पकड़ता और कहा होता तो बहुत महत्वपूर्ण था पर मुझे किसी और अखबार में ऐप्पल के हवाले से नहीं मिला। अगर ऐप्पल ने सिर्फ भारत सरकार से कहा हो तो उसके अलग मायने होंगे और आप समझ सकते हैं। नहीं कहा है तो उसके भी मायने हैं पर मैं उसपर कुछ नहीं कहूंगा।

रविशंकर प्रसाद एफआईआर कराने की बात कर रहे हैं तो उन्हें याद दिला दूं कि पहलवानों की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने कितनी तेज कार्रवाई की थी। अश्विनी वैष्णन ने अपने खंडन में जो कहा है वह ऐप्पल के हवाले से कहीं और नहीं मिला। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस बारे में कहा है, (इंटरनेट से) भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहां उपयोगकर्ताओं को ऐसी सूचना मिली है। खतरे की सूचना देने की सुविधा शुरू होने के बाद से इन्हें भिन्न व्यक्तियों को भेजा गया है जिनके खाते करीब 150 देशों में हैं। जाहिर है कि यह हाल की इस सूचना के बारे में नहीं है और स्पष्ट रूप से ऐप्पल द्वारा यह फीचर शुरू किये जाने के बाद से है जो कई वर्ष पूर्व हो सकता है।

यही नहीं, इससे यह नहीं पता चलता है कि किसी और देश में एक साथ इतने लोगों को भेजा गया है या किस देश में कब कितने लोगों को भेजा गया है या ये सभी भारत और भारतीयों से कनेक्टेड नहीं हैं। फिर भी यह मंत्री के बयान का हिस्सा है और इसलिए अखबारों में प्रमुखता से छपा है। जिन्होंने नहीं छापा है उनपर सरकार विरोधी होने का आरोप लग सकता है।

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