राममेहर सिंह-
रूबिका लियाकत ज़ी न्यूज़ छोड़ती है फट से “एबीपी न्यूज़” ने आफर किया और उनको वहां दूसरे दिन नौकरी मिल गई।
सुधीर चौधरी ज़ी न्यूज़ छोड़ता हैं , फट से “आजतक” ने आफर किया और उनको वहां दूसरे दिन नौकरी मिल गई।
चित्रा त्रिपाठी सुबह “आजतक” छोड़ कर शाम में “एबीपी न्यूज़” ज्वाइन करती हैं और अगली सुबह फिर “आजतक” ज्वाइन कर लेती हैं।
ऐसे ही सुशांत सिन्हा साल भर ट्विटर पर ज़हर उगलता रहा उसे टाइम्स आफ इंडिया ने नौकरी पर रख लिया।
देश के जितने ज़हरीले पत्रकार हैं सब सुबह नौकरी छोड़ते हैं, शाम को दूसरी जगह नौकरी पा जाते हैं।
देश के सबसे लोकप्रिय और विश्वसनीय पत्रकार रवीश कुमार BBC HINDI पर यह स्वीकारते हैं कि “पिछले 2 महीने में एक भी मीडिया समूह का उनके पास नौकरी तो छोड़िए। एक फोन भी नहीं आया।”
कौन यह सब कंट्रोल कर रहा है ?
यदि आपको स्थिति समझ में नहीं आ रही तो आप अंधे बहरे और मानसिक विक्षप्त हैं।
सुभाष चंद्र कुशवाहा- बेशक, आप जोड़ सकते हैं, आरोप लगा सकते हैं कि फलाने मैटर पर रविश कुछ बोले क्या? चिलाने पर कोई प्राइम टाइम किए क्या? यह सब आपकी दकियानूसी सोच है। ऐसी सोच आपके खिलाफ होती है। इससे बचें और प्रतिबद्ध लोगों की जाति न देखें, जातिवादी नजरिया देखें।
रामा शंकर सिंह- सच के साथ तन कर खड़े होने की क्या क़ीमत चुकानी पड़ाती है यह कायर लिजलिजा रीढहीन और झूठपसंद समाज कैसे समझ पायेगा ? जीवन भर पहले ऐसे लोग ज़िल्लत भुगतते हैं और जीवन के बाद इनके नामों पर कोई पुरस्कार या कीं विश्वविद्यालय में एक चित्र लग जाता है। धन्य हो भारत और उसका चरणचाटू पत्रकारिता प्रतिष्ठान ! नेहरू इंदिरा राजीव सबने अपने लिये चापलूस पत्रकारिता बनाई पर दास पत्रकारिता गढ़ने का पाप निस्संदेह मोदी को ही जाता है।
Ajay Yadav
January 2, 2023 at 8:01 pm
रविश कुमार सच्ची पत्रकारिता के माइल स्टोन है। उन्हें काम देने का किसी में हौसला नहीं है। पर उनके साथ आज भी आम मीडिया के लोगों की बड़ी आबादी है। जरूरत सिर्फ उनके आवाज देने की है। सब तन मन धन से साथ देने के इन्तजार में है।