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साहित्य

‘रेत समाधि’ का अंग्रेज़ी अनुवाद न हुआ होता तो यह उपन्यास कहां होता और हिंदी कहाँ होती?

अभिरंजन कुमार-

गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास रेत समाधि के अंग्रेज़ी अनुवाद को बुकर पुरस्कार मिलना लेखिका की उपलब्धि हो सकती है, हिंदी की उपलब्धि कैसे है? हिंदी को कौन पूछ रहा है? अगर इसका अंग्रेज़ी अनुवाद न हुआ होता, तो यह उपन्यास कहां होता? और हिंदी कहाँ होती?

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माफ कीजिएगा, यह हिंदी पर अंग्रेज़ी के बर्चस्व और देसी पुरस्कारों पर विदेशी पुरस्कारों के बर्चस्व का जश्न हम मना रहे हैं।

लगता नहीं कि हम लोग 75 साल पहले स्वतंत्र हो चुके दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के स्वाभिमानी नागरिक हैं, जिनकी अपनी भाषाएं भी दुनिया की दूसरी भाषाओं से कम समृद्ध नहीं है! धन्यवाद।

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अभिषेक पाराशर-

”रेत समाधि” का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ और फिर ”टूंब ऑफ सैंड” को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला. भारतीय भाषाओं में जो कुछ भी अच्छा लिखा जा रहा है, उसकी पहचान का विस्तार उनकी अपनी भाषा में उस दायरे में नहीं हो पाता, जो अंग्रेजी सहजता से हासिल कर लेती है. अंग्रेजी की एक औसत किताब भी ठीक ठाक बिक जाती है और हिंदी या भारतीय भाषाओं में लिखी गई बेहतरीन रचनाओं (जिनकी संख्या वास्तव में बेहद कम है) को उनके हिस्से की उपलब्धि या सम्मान मिलने में समय लग जाता है.

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हिंदी भाषी होने और पढ़ने में बेहद सेलेक्टिव होने के बावजूद इस उपलब्धि जो खुशी मिली है, उसे शब्दों में नहीं बता सकता. लेखिका सोशल मीडिया पर उपलब्ध नहीं है और अगर उन्होंने ऐसा कुछ बेहतरीन सृजित किया है, तो इसके लिए कुछ श्रेय उनके सोशल मीडिया पर नहीं होने को भी दिया जा सकता है.

कई लोग इस किताब की तुलना मार्केज के उपन्यास ‘एकाकीपन के सौ वर्ष’ से कर रहे हैं. इस तुलना ने पढ़ने की जिज्ञासा को और बढ़ा दिया है. मार्केज का ”एकाकीपन के सौ वर्ष” आपको हतप्रभ कर देता है और जिन लोगों ने यह तुलना की है, उनमें से कुछ ऐसे हैं, जिनकी बातों पर भरोसा किया जा सकता है.

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1 Comment

1 Comment

  1. महेन्द्र 'मनुज'

    May 28, 2022 at 7:22 pm

    कुतर्क ही मान लेना दोस्तों , अनुवाद में कितना श्रम, समय और समर्पण खपता है, इसका ऑकलन शायद नहीं हुआ ! रेत समाधि को चुनना निश्चित ही डेजी के अंतस को भाया होगा , अन्यथा की स्थिति में सैकड़ों नामचीन्ह लेखकों की दर्जनों रचनाये भी होड़ में रहती हैं।

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