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सुख-दुख

दुनिया की इस इकलौती सफेद मादा जिराफ और उसके बच्चे को मार दिया गया!

Kabir Sanjay-

आप जानते हैं कि दुनिया के अनोखे सफेद मादा जिराफ और उसके बच्चे को कुछ ही दिनों पहले केन्या में मारा जा चुका है। अब पूरी धरती पर सिर्फ एक सफेद नर जिराफ बचा है। जिस तेजी से जिराफों का शिकार किया जा रहा है उसमें यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह जिराफ भी कब तक बचा रहेगा।

कुछ दिनों पहले मैंने हॉट स्टार पर एक डाक्यूमेंटरी फिल्म देखी। द रियल पैंथर। बड़ी बिल्लियों को लेकर हमारे यहां अक्सर ही पैंथर शब्द का प्रयोग किया जाता है। लेकिन, यह जानवर कौन सा है, इसको लेकर आमतौर पर लोग कंफ्यूज हो जाते हैं। क्या यह शेर है। या फिर बाघ। या फिर तेंदुआ या चीता। कुछ लोग चीते को पैंथर कहते हैं तो कुछ लोग बाघ को।

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सच्चाई यह है कि पैंथर कोई अलग जीव नहीं हैं। यह तेंदुआ है जो रंग बदलकर काला हो गया है। काला तेंदुआ।

पैंथर के बारे में अगर जानना चाहते हैं तो रूडयार्ड किपलिंग की जंगलबुक के बघीरा को याद कीजिए। वही जो मोगली का दोस्त है। काले रंग का। पेड़ों पर चढ़ जाता है और मोगली की जान बचाता है। शेरखान का दुश्मन है। तेंदुए के शरीर पर आमतौर पर पीली या धूसर खाल पर काले रंग की हल्की पंखुड़ियां बनी होती हैं। इसी के चलते कुछ जगहों पर इसे गुलदार भी कहते हैं।

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कुछ जेनेटिक बदलावों के चलते कई बार गुलदार की पूरी खाल काली हो जाती है। इसमें उसके शरीर पर पड़ी पंखुड़ियों वाले चकत्तों का रंग तो ज्यादा काला होता है। लेकिन, पूरी काली खाल में इसका अलग से पता नहीं चलता।

एक ऐसे जंगल में जहां पर सबकुछ पीला और धूसर हो वहां पर ऐसे जानवर के लिए शिकार बेहद मुश्किल साबित होता है। द रीयल पैंथर में भी इसे बहुत खूबसूरती से फिल्माया गया। पैंथर को अपनी काली खाल का अहसास है। वह जब भी शिकार करने निकलता है, उसकी पहले से चुगली हो जाती है। सूखे के मौसम में वह खाने के लिए भी तरस जाता है। उसे सूझता ही नहीं कि वह अपने आपको कैसे छिपाए। फिर बारिशें आती हैं। जंगल पत्तों से भर जाता है। उनकी परछाइयों से जंगल के नीचे अंधेरा जैसा हो जाता है। काला तेंदुआ अपने आप को पेड़ों की परछाइयों में, काली झाड़ियों में छिपाना सीख जाता है। एक नए जानवर का एडाप्टेशन होता है।

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यह खूबसूरत काला तेंदुआ हमारे यहां काबीनी के जंगलों में रहता है। ओडीशा में भी इसे देखा जा चुका है। जीन में आया यह बदलाव हो सकता है कि आने वाले सालों में चलकर एक नई प्रजाति को जनम दे।

सफेद जिराफ भी ऐसे ही एक खास किस्म के जेनेटिक बदलावों से गुजर रहे थे। इसे ल्यूसिज्म कहा जाता है। जिसमें जिराफ की खाल तो सफेद हो जाती है लेकिन आंखों की पुतलियां और आसपास का हिस्सा काला ही रहता है। जीन में होने वाले ऐसे बदलाव इस पूरे मसले को समझने में भी सहायक होते हैं।

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लेकिन, हम ऐसे बदलावों को होने कहां दे रहे हैं। म्यूटेशन अगर प्रकृति के अनुकूल हो तो लाखों सालों में वह एक नई प्रजाति को जनम दे देता है।

लेकिन, क्या हमारी मानवजाति कुदरत को काम करने के लिए इतना वक्त देने को तैयार है।

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सफेद जिराफ का हश्र देखकर तो लगता है कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है।

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