संजय रॉय-
वरिष्ठ पत्रकार सत्य प्रकाश असीम जी हम सबके बीच नहीं रहे। कोरोना ने असमय ही उन्हें हमसे छीन लिया। फिलहाल मेरे पास कुछ भी कहने के लिए शब्द सामर्थ्य नहीं है।
ओमकारेश्वर पांडेय-
आज फिर एक बहुत दुखद समाचार| वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखक सत्य प्रकाश असीम नहीं रहे| उनका निधन आज सुबह सात बजे देहरादून के कैलाश अस्पताल में कोरोना के कारण हो गया| दिल्ली के अस्पतालों में बेड नहीं मिला, तो चार दिन पहले उन्हें देहरादून में भर्ती होना पड़ा था| उनके सुपुत्र पुनीत प्रकाश उनके साथ थे|
उनकी पत्नी सरोज का निधन 1990 में हो गया था| परिवार में एक पुत्र पुनीत प्रकाश और सुपुत्री एकता हैं| उनके बड़े भाई बनारस में हैं और एक बहन कोलकाता व एक बहन बनारस में हैं|
लगभग चार दशक के पत्रकारीय जीवन में असीम जी ने समाज के जमीनी स्तर से लेकर ऊपर तक विभिन्न वर्ग के लोगों को बेहद करीब से देखा- समझा और अपनी लेखनी से समाज को बहुत कुछ दिया।
पिछले कई सालों से वे पार्किन्संस जैसी बीमारी से ग्रस्त थे| इसके बावजूद अपनी हीलिंग एक्सपर्ट डॉ सुधा के सहयोग से उनका एक काव्य संग्रह – सुन समंदर प्रकाशित हुआ और फिर एक उपन्यास योगिनी मंदिर भी लिखा| यह तस्वीर उनके उपन्यास योगिनी मंदिर के विमोचन की है। परमात्मा असीम जी की आत्मा को शांति प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।
गीताश्री-
जब आपके अपने, आसपास के लोग दुनिया से जाने लगते हैं, ऐसे में लगता है, हम बच कर क्या करेंगे? ये दुनिया अपनों से निर्मित होती है. जिनके साथ आप हँसते बोलते हो. उठते बैठते हो. सुख दुख शेयर करते हो. उनके होने से गुलशन आबाद होता है. जब वे एक एक कर आपके पास से उठ कर जाने लगते हैं तो अवाक छोड़ जाते हैं. सवालों से घिर जाते हैं हम. कैसी दुनिया बचेगी फिर? जो बचेगी , उसमें वे चेहरे नहीं होंगे, वो हँसी नहीं होगी , वो धुन नहीं होगी जो आपके लिए एक दुनिया सृजित करती थीं. बहुत खाली, बहुत तन्हा …
कोई सुबह ऐसी नहीं जो उदास न कर दे. भीतर तक हिला न दे.
इसी मनोदशा के लिए लिखा गया होगा न – दिन ख़ाली ख़ाली बर्तन है, रात है जैसे अंधा कुँआ…!
सारे अशुभ समाचार सुबह -सुबह आते हैं और फिर आपको सन्नाटे में छोड़ जाते हैं.
कितनो की स्मृति -गाथा लिखूँ. कितनों को नमन करुं?
एक ज़िंदगी में अनगिनत अपनों, परिचितों से बनती है. हम सबसे कुछ लेते हैं, हम सबको कुछ देते हैं. हम एक दूसरे को आत्मीयता की खुराक देते हैं.
मैं खोती जा रही हूँ अपनो को … जिनके होने से मेरी दुनिया बनती है.
कल भी और आज भी रोज़ रोज़ ख़ाली होती जा रही महफिल मेरी …
एक थे सत्य प्रकाश असीम. फ़ेसबुक पर असीम भाई के नाम से. “ योगिनी मंदिर” उपन्यास फ़ेम.
मेरे संपादक रहे हैं. आज अख़बार से वर्षों जुड़े रहे. पटना में भी थे.
मैं दिल्ली में मिली थी और उनके साथ आज अख़बार के लिए ख़ूब काम किया. मैंने फ़ीचर लेखन , उनके लयात्मक शीर्षक देना उनसे सीखा. बहुत मान देते थे और हमारे भीतर की खूबियों को पहचान कर तराश देते थे. हम आज तक जुड़े हुए थे. मैसेंजर पर अक्सर बात हो जाती थी. उनकी आवाज़ ने उनका साथ छोड़ दिया था तो लिख कर बातें होती थीं.
पिछले दिनों ही मैसेंजर पर उनसे लंबी बात हुई. मैंने अपने संपादन में कुछ लिखने को कहा. वे बहुत खुश हुए. वादा किया कि जरुर लिखेंगे. मैं जानती थी कि वे स्वास्थ्य की तकलीफ़ों से जूझते रहते हैं, इसलिए मैंने कहा कि आप टुकड़ों में लिख भेजिए, मैं संपादन कर दूँगी. वे तैयार भी हो गए. तब उन्होंने बताया कि परिवार में सबको कोरोना हो गया है, इसलिए लिखना शुरु नहीं किया है. सब ठीक हो जाए तो लिखूँगा.
मेरे पास उनकी सारी बातचीत पड़ी है. मैं प्रतीक्षा में थी… मुझे क्या पता कि उधर मृत्यु दबे पाँव उनके पास पहुँच रही थी.
अचानक फ़ेसबुक पर देखा, प्लाज़्मा के लिए अपील की गई थी. वो खबर मैंने शेयर की. देहरादून में हमारे कॉमन मित्र निर्मल वैद से बात की. उन्होंने आश्वासन दिया कि प्लाज़्मा का इंतज़ाम हो गया है.
और आज सुबह …
मेरी दोस्त विजया भारती ने यह दुखद सूचना दी. हम सब असीम जी के करीबी थे. उन्हें बहुत मानते थे. उनके स्नेहपात्र थे हम.
मन हहर गया. उनके बेटे पुनीत से अभी अभी बात की … मन ना माने.
पुनीत ने बताया कि वे काफ़ी तकलीफ़ में थे.
ओह.
उनके साथ अपना अंतिम संवाद पढती हूँ और दुख से दोहरी हुई जाती हूं.